Child Rescue: नन्हे फरिश्ते का मिशन, चांडिल स्टेशन पर दो नाबालिगों को सुरक्षित किया गया
ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के तहत चांडिल स्टेशन पर नाबालिगों की सुरक्षित बरामदी। जानें कैसे चाइल्डलाइन और RPF ने मिलकर दो नाबालिगों को उनके घरवालों तक पहुंचाया।
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10 जनवरी को एक ऐसी घटना घटी, जिसने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि जब कड़ी निगरानी और जिम्मेदारी का संकलन होता है, तो कोई भी असामान्य घटना आम नहीं रह जाती। ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के तहत चांडिल स्टेशन पर दो नाबालिग लड़के और लड़की को सुरक्षा के लिए बचाया गया। यह एक बेहद दिलचस्प और भावनात्मक कहानी है, जिसे जानकर आप भी चौंक जाएंगे।
देर रात लगभग 9 बजे, जब चांडिल स्टेशन पर शिफ्ट ड्यूटी पर तैनात आरपीएफ के एएसआई मनोज कुमार अपने साथियों के साथ स्टेशन परिसर की रूटिंग चेकिंग कर रहे थे, तो उनकी नजर एक नाबालिग लड़के और लड़की पर पड़ी। ये दोनों बच्चे चांडिल स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर 02 के अंतिम छोर पर कंक्रीट की बेंच पर बैठकर कुछ बेचैनी से बातचीत कर रहे थे। कुछ भी असामान्य लगता है, और एएसआई मनोज कुमार ने तुरंत पूछताछ करना शुरू किया।
जब दोनों बच्चों से पूछताछ की गई, तो यह बात सामने आई कि ये दोनों अपने घरवालों को बिना बताए घर से भाग आए थे। न तो वे यह बता पा रहे थे कि वे कहां जा रहे थे, और न ही वे किसी से मदद मांगने के बारे में सोच रहे थे। लेकिन जैसा कि अक्सर बच्चों के मामले में होता है, उन्हें ऐसी स्थितियों का सही अंदाजा नहीं होता। इस पर, एएसआई मनोज कुमार ने तुरंत एक सही कदम उठाया।
इन्हें तुरंत आरपीएफ पोस्ट चांडिल लाया गया, जहां सुरक्षित और मैत्रीपूर्ण वातावरण में इन दोनों बच्चों को रखा गया। उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से कोई भी परेशानी न हो, इसके लिए पूरा इंतजाम किया गया। साथ ही, उनके परिवारों से संपर्क किया गया। बच्चों ने जो मोबाइल नंबर दिए थे, उन पर उनके माता-पिता को सूचित किया गया। इस बीच, डीसीपीओ सरायकेला खरसावां को भी मामले की सूचना दी गई।
जैसे-जैसे मामला सामने आया, चाइल्डलाइन सरायकेला के अधिकारी भी इस पूरे अभियान में शामिल हो गए। 11 जनवरी को, चाइल्डलाइन की महिला कर्मचारी और डीसीपीओ सरायकेला के अधिकारी पोस्ट पर पहुंचे। दोनों बच्चों को उनके माता-पिता के हवाले किया गया, और इस प्रकार यह ऑपरेशन सफलतापूर्वक पूरा हुआ।
यह घटना न केवल एक ऑपरेशन का हिस्सा थी, बल्कि यह एक उदाहरण है कि कैसे समय पर कार्रवाई और सही दिशा में प्रयास किसी भी संकट से निपटने में मदद कर सकते हैं। ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते के तहत चाइल्डलाइन और आरपीएफ ने यह साबित कर दिया कि बच्चों के प्रति हमारी जिम्मेदारी सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है, बल्कि वास्तविक कामों में भी दिखनी चाहिए।
इतिहास की एक झलक:
चाइल्ड लाइन जैसी संस्थाओं का इतिहास बहुत ही दिलचस्प और प्रेरणादायक है। चाइल्डलाइन की शुरुआत 1996 में भारत में हुई थी, जब भारतीय बच्चों के अधिकारों की रक्षा और उनकी सुरक्षा की आवश्यकता महसूस की गई। यह संस्था बच्चों को शारीरिक, मानसिक और कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है। उनके द्वारा किए गए ऑपरेशन आज भी समाज के लिए एक उम्मीद की किरण बने हुए हैं, और यह कहानी उन्हीं प्रयासों का हिस्सा है।
आजकल की तकनीकी दुनिया में, चाइल्डलाइन जैसे संगठन बच्चों की समस्याओं को हल करने के लिए न केवल ग्रामीण इलाकों में काम करते हैं, बल्कि शहरी इलाकों में भी उनकी सुरक्षा और कल्याण को सुनिश्चित करते हैं। यह ऑपरेशन यह सिद्ध करता है कि बच्चों की सुरक्षा के लिए हर जगह एक मजबूत नेटवर्क की आवश्यकता है।
इस तरह की घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि एक मजबूत तंत्र और तत्परता से हम किसी भी संकट का समाधान निकाल सकते हैं। चांडिल स्टेशन पर किए गए इस ऑपरेशन ने यह साबित किया कि अगर हम बच्चों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को पूरी गंभीरता से निभाएं, तो हम उन्हें सुरक्षित और खुशहाल जीवन दे सकते हैं। ऑपरेशन नन्हे फरिश्ते ने एक और बार यह दिखाया कि समाज में बदलाव लाने के लिए एकजुट होकर कार्य करना कितना महत्वपूर्ण है।
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