Jamshedpur Badadev Mahotsav : गोंड समाज का बड़ादेव महोत्सव: जब परंपराओं में झूले, संस्कृति में झूमे, और सवालों की धारा बह निकली!
गोंड समाज के बड़ादेव महोत्सव में परंपराओं और संस्कृति का अनोखा संगम हुआ। जानिए कैसे गुरुद्वारा मैदान में झंडा फहराने से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रम और झूलों तक ने सबका दिल जीता।
बर्मामाइंस गुरुद्वारा मैदान में गोंड समाज के बड़ादेव महोत्सव सह मिलन समारोह का आयोजन हुआ, और हर ओर बस उत्सव की धूम थी। लेकिन क्या यह महज एक कार्यक्रम था, या परंपरा और संस्कृति का ऐसा संगम जो हमें सोचने पर मजबूर कर दे?
अध्यक्ष दिनेश साह गोंड की अगुवाई में हुए इस भव्य आयोजन में परंपरागत गोगो पूजा ने हर किसी का ध्यान खींचा। पूजा में मुख्य भूमिका निभाई इलाहाबाद से पधारे भुमक शिवशंकर गोंड ने। सवाल उठता है, इतनी विविधता और सांस्कृतिक रंगों को एकत्रित करने का राज आखिर क्या है?
गोंडवाना का झंडा भी गर्व से फहराया गया, और वह भी वरिष्ठ सदस्य चिरंजी लाल के हाथों। यह पल सिर्फ एक रस्म नहीं थी, बल्कि समाज की एकजुटता का प्रतीक था। लेकिन सोचने वाली बात है, आज के इस दौर में क्या यह एकजुटता सिर्फ महोत्सव तक ही सीमित है?
विशेष अतिथि और बच्चों की मुस्कान:
कार्यक्रम की शान बढ़ाई मेराकी ट्रस्ट की सचिव रीता पात्रा और गोंड समाज के प्रदेश अध्यक्ष गुरु चरण नायक ने। इनके अलावा झारखंड आंदोलनकारी अजीत तिर्की और अन्य सामाजिक संगठनों ने भी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई।
बच्चों के लिए इनाम और झूले की व्यवस्था की गई थी। उनकी खुशी देखकर हर किसी का दिल पिघल गया। लेकिन सवाल यह है, क्या समाज के ये नन्हे फूल सिर्फ महोत्सव में ही चमकते हैं या पूरे साल भी इन्हें उतना ही महत्व मिलता है?
सांस्कृतिक कार्यक्रम और व्यंजन:
सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने ऐसा समां बांधा कि हर कोई मंत्रमुग्ध हो गया। रामानंद प्रसाद, मदन प्रसाद, और मनोज प्रसाद जैसे नामों ने अपनी उपस्थिति से इसे और खास बना दिया। खाने-पीने की व्यवस्था इतनी शानदार थी कि हर कोई इसकी तारीफ करता दिखा।
पर क्या महोत्सव के खत्म होते ही यह उत्साह भी खत्म हो जाता है? क्या यह आयोजन समाज की स्थायी समस्याओं के समाधान का जरिया बन सकता है?
समारोह का समापन:
कार्यक्रम के अंत में हीरदय नंद ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। लेकिन असली सवाल तो यही है कि ऐसे आयोजनों का असली उद्देश्य क्या है? क्या यह समाज को एकजुट रखने का प्रयास है या सिर्फ परंपराओं का पालन?
बड़ादेव महोत्सव न केवल परंपरा का उत्सव था, बल्कि यह एक मौका था यह सोचने का कि समाज की संस्कृति, एकता और खुशियों को कैसे लंबे समय तक बनाए रखा जाए।
अब आप सोचिए, क्या ऐसे आयोजनों से समाज में असली बदलाव आता है या यह बस एक त्योहार की तरह आता है और चला जाता है? अगली बार जब आप ऐसे किसी आयोजन में जाएं, तो इन सवालों को अपने साथ जरूर ले जाएं।
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