जितिया व्रत 2024: पंचांग अनुसार 25 सितंबर को रखा जायेगा जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें सही तिथि, मुहूर्त और महत्व

जितिया व्रत 2024 इस साल 25 सितंबर को रखा जाएगा। जानें जीवित्पुत्रिका व्रत की सही तिथि, मुहूर्त और महत्व, साथ ही मिथिला और बनारस पंचांग के अनुसार व्रत का शुभ समय।

Sep 25, 2024 - 13:47
Sep 25, 2024 - 12:16
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जितिया व्रत 2024: पंचांग अनुसार 25 सितंबर को रखा जायेगा जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें सही तिथि, मुहूर्त और महत्व
जितिया व्रत 2024: पंचांग अनुसार 25 सितंबर को रखा जायेगा जीवित्पुत्रिका व्रत, जानें सही तिथि, मुहूर्त और महत्व

जितिया व्रत 2024: संतान की लंबी आयु और स्वास्थ्य के लिए रखा जाने वाला महत्वपूर्ण उपवास
हिंदू धर्म में जितिया व्रत, जिसे जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है, विशेष रूप से माताओं द्वारा अपनी संतान की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और उनके कल्याण के लिए किया जाता है। यह व्रत आश्विन माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को रखा जाता है। इस वर्ष जितिया व्रत 25 सितंबर 2024 को रखा जाएगा। यह व्रत संतान की सुरक्षा और समृद्धि के लिए निर्जला (बिना जल के) उपवास के रूप में किया जाता है, जिसमें महिलाएं पूरे दिन बिना अन्न या पानी ग्रहण किए उपवास करती हैं।

व्रत की सही तिथि और मुहूर्त
पंचांग के अनुसार, इस साल जितिया व्रत की तिथि अलग-अलग पंचांगों में भिन्न हो सकती है। मिथिला पंचांग को मानने वाली महिलाएं 24 सितंबर 2024 को जितिया व्रत रखेंगी, जबकि बनारस पंचांग के अनुसार यह व्रत 25 सितंबर 2024 को किया जाएगा। व्रत का पारण यानी उपवास तोड़ने का समय भी दोनों पंचांगों में अलग-अलग है।

  • मिथिला पंचांग:
    24 सितंबर को शाम 6.06 बजे तक सप्तमी तिथि रहेगी। महिलाएं इस दिन सुबह सरगही ओठगन (स्नान के बाद कुछ अन्न ग्रहण करना) करेंगी और 25 सितंबर को निर्जला व्रत रखेंगी। अष्टमी तिथि 25 सितंबर को शाम 5.05 बजे तक रहेगी, जिसके बाद व्रत का पारण शाम 5.15 बजे के बाद किया जाएगा।

  • बनारस पंचांग:
    बनारस पंचांग के अनुसार, 25 सितंबर को जितिया व्रत रखा जाएगा। अष्टमी तिथि 25 सितंबर को शाम 4.56 बजे तक रहेगी। व्रत का पारण 26 सितंबर की सुबह 4.35 बजे से 5.23 बजे के बीच होगा।

जितिया व्रत का महत्व
जितिया व्रत का धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से संतान की आयु लंबी होती है और वह जीवन में स्वास्थ्य और समृद्धि प्राप्त करती है। इसके अलावा, इस व्रत के पुण्य प्रभाव से वे महिलाएं भी संतान प्राप्त करती हैं, जिनकी संतान की कामना होती है। संतान की सुरक्षा और उनके बेहतर भविष्य के लिए जितिया व्रत एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है।

व्रत की परंपरा और विधि
जितिया व्रत की परंपरा मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और मिथिला क्षेत्र में अधिक प्रचलित है। इस व्रत का आरंभ 'नहाय खाय' से होता है, जिसमें महिलाएं व्रत से एक दिन पहले (23 सितंबर) पवित्र स्नान करके पूजा पाठ करती हैं और फिर सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। इस दिन प्याज, लहसुन और मांसाहार का सेवन वर्जित होता है।

अगले दिन, सप्तमी तिथि (24 सितंबर) को महिलाएं सरगही ओठगन करती हैं, यानी सुबह भोजन ग्रहण करती हैं, ताकि वे पूरे दिन निर्जला व्रत कर सकें। अष्टमी तिथि (25 सितंबर) को वे निर्जला व्रत रखती हैं और अष्टमी समाप्त होने के बाद पारण करती हैं।

व्रत का पारण और नियम
जितिया व्रत का पारण अष्टमी तिथि समाप्त होने के बाद किया जाता है। मिथिला पंचांग के अनुसार, 25 सितंबर की शाम 5.15 बजे के बाद व्रत का पारण किया जाएगा। वहीं, बनारस पंचांग के अनुसार, 26 सितंबर की सुबह 4.35 बजे से 5.23 बजे के बीच व्रत का पारण होगा। पारण करते समय महिलाएं सबसे पहले जल ग्रहण करती हैं और फिर अन्य सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं।

धार्मिक कथा और आस्था
जितिया व्रत के पीछे एक प्रमुख धार्मिक कथा जुड़ी हुई है। पौराणिक कथा के अनुसार, राजा जीमूतवाहन ने अपनी संतान की रक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। उन्होंने गरुड़ के सामने खुद को प्रस्तुत किया ताकि नागराज की संतान सुरक्षित रह सके। उनके इस महान त्याग से प्रभावित होकर जितिया व्रत की परंपरा शुरू हुई। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

जितिया व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि यह मातृत्व प्रेम और संतान के प्रति समर्पण का प्रतीक भी है। इस व्रत के माध्यम से महिलाएं अपनी संतान के दीर्घायु और सुखमय जीवन की कामना करती हैं। पंचांग के अनुसार सही तिथि और मुहूर्त का ध्यान रखते हुए इस व्रत को करना अत्यधिक शुभ माना जाता है।

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Chandna Keshri चंदना केशरी, जो गणित-विज्ञान में इंटरमीडिएट हैं, स्थानीय खबरों और सामाजिक गतिविधियों में निपुण हैं।