Jharkhand Scam Exposed: 20 करोड़ के घोटाले में बड़ा रैकेट बेनकाब, संतोष बना मास्टरमाइंड!

झारखंड के पेयजल एवं स्वच्छता विभाग में हुआ 20 करोड़ रुपये का बड़ा घोटाला। मास्टरमाइंड संतोष कुमार समेत कई अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध। जानिए इस पूरे घोटाले की अंदरूनी कहानी।

Apr 10, 2025 - 09:24
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Jharkhand Scam Exposed: 20 करोड़ के घोटाले में बड़ा रैकेट बेनकाब, संतोष बना मास्टरमाइंड!
Jharkhand Scam Exposed: 20 करोड़ के घोटाले में बड़ा रैकेट बेनकाब, संतोष बना मास्टरमाइंड!

झारखंड एक बार फिर से सुर्खियों में है — इस बार वजह है 20 करोड़ रुपये का पेयजल विभाग घोटाला, जिसमें परत दर परत खुलासे सामने आ रहे हैं। ये घोटाला केवल कुछ गड़बड़ियों का मामला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित भ्रष्टाचार रैकेट की कारगुज़ारी है, जिसमें विभागीय अधिकारियों से लेकर कोषागार कर्मचारियों तक की मिलीभगत सामने आई है।

घोटाले का मास्टरमाइंड कौन?

सरकारी जांच रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि इस घोटाले का मास्टरमाइंड रोकड़पाल संतोष कुमार था। वह न सिर्फ नकली निकासी का मोहरा था, बल्कि पूरा पैसा सीधे उसके खाते में जमा होता था। जालसाजी इतनी बारीकी से की गई थी कि Pay-ID में डीडीओ के नाम पर कार्यपालक अभियंता का नाम दर्ज था, लेकिन मोबाइल नंबर संतोष कुमार का। यानी विभागीय फॉर्मलिटी में सब कुछ सही लगता था, लेकिन कंट्रोल पूरी तरह घोटालेबाज़ों के हाथ में था।

पैसा आता कहां से था और जाता कहां?

बड़ी चालाकी से स्वर्णरेखा शीर्ष कार्यप्रमंडल के दो DDO कोड – RNCWSS001 और RNCWSS0017 – का इस्तेमाल कर अवैध निकासी की गई। पैसे का फ्लो ऐसा था कि पहले संतोष के खाते में जाता, फिर वहां से बंटवारा होता। ये सब इतनी सफाई से किया गया कि कई महीनों तक किसी को भनक तक नहीं लगी।

कौन-कौन हैं संदेह के घेरे में?

जांच में लेखापाल अर्चना कुमारी, शैलेंद्र सिंह और दीपक कुमार यादव के नाम सामने आए हैं। इसके अलावा कार्यपालक अभियंता प्रभात कुमार सिंह, विनोद कुमार, राधेश्याम रवि और चंद्रशेखर भी शक के घेरे में हैं।

इतना ही नहीं, कोषागार विभाग के भी कई अधिकारी घोटाले में संदिग्ध पाए गए हैं – मनोज कुमार, डॉ. मनोज कुमार, सुनील कुमार सिन्हा और सारिका भगत। इन लोगों ने वित्तीय नियमावली की खुलेआम धज्जियां उड़ाईं।

कब-कब और कैसे हुआ खेल?

एक रिपोर्ट के अनुसार, यह घोटाला अलग-अलग समय पर कार्यपालक अभियंताओं की तैनाती के दौरान अंजाम दिया गया। सभी DDO पद पर कार्यरत थे और उनकी मिलीभगत से ही यह निकासी संभव हो सकी। वहीं, प्रमंडलीय लेखा पदाधिकारी जैसे कि अनिल डाहंगा, रंजन कुमार सिंह और परमानंद कुमार की भूमिका भी संदेहास्पद रही।

सरकार की जांच और उसका असर

झारखंड सरकार की अंतर विभागीय जांच समिति ने जब स्वर्णरेखा प्रमंडल की छानबीन की, तो इस घोटाले की नींव से लेकर उसकी संरचना तक का नक्शा सामने आया। रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से यह बताया गया कि यह कोई अकेले व्यक्ति का खेल नहीं था, बल्कि एक पूरा नेटवर्क था, जो सिस्टम की खामियों का फायदा उठाकर सरकारी खजाने को चूना लगा रहा था।

क्या यह पहली बार हुआ?

अगर इतिहास की ओर नजर डालें, तो झारखंड में पेयजल विभाग पहले भी कई बार अनियमितताओं को लेकर विवादों में रहा है। वर्ष 2018 और 2021 में भी इस विभाग पर फंड मिसमैनेजमेंट के आरोप लगे थे। लेकिन इस बार मामला बड़ा है, क्योंकि इसमें ट्रेजरी लेवल पर मिलीभगत पाई गई है, जो सीधे वित्तीय प्रणाली पर सवाल उठाती है।

अब आगे क्या?

अब जबकि रिपोर्ट सार्वजनिक हो चुकी है, सरकार पर यह दबाव है कि सभी दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो। वहीं जनता की निगाहें यह देखने पर टिकी हैं कि क्या इस बार कार्रवाई सिर्फ ट्रांसफर और सस्पेंशन तक सीमित रहेगी या किसी को जेल की हवा भी खानी पड़ेगी?


यह घोटाला सिर्फ 20 करोड़ रुपये की लूट नहीं है, यह भरोसे की चोरी है। जब पानी जैसी मूलभूत जरूरत के लिए दी गई राशि तक को लूटा जाता है, तो सवाल उठते हैं कि आम आदमी किस पर भरोसा करे?

झारखंड का यह पानी घोटाला भविष्य में किस दिशा में जाएगा – यह देखना बाकी है। लेकिन एक बात तय है – अब जनता चुप नहीं बैठेगी।

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।