Jharkhand School Dropout Rate : झारखंड में बढ़ा बच्चों का ड्रॉप आउट रेट, जानिए वजह और सुधार की योजनाएँ
झारखंड में बच्चों के ड्रॉप आउट रेट में कक्षा बढ़ने के साथ बढ़ोतरी, जानें क्या हैं कारण और सरकार की योजनाएं।
झारखंड में शिक्षा का स्तर बढ़ाने के लिए कई योजनाएँ चलाई जा रही हैं, लेकिन एक और बड़ी चुनौती सामने आ रही है— बच्चों का ड्रॉप आउट रेट। जैसा कि केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय की 'यू डायस' रिपोर्ट में सामने आया है, राज्य में कक्षा बढ़ने के साथ बच्चों का स्कूल छोड़ने की संख्या भी बढ़ जाती है। क्या कारण है इसके पीछे? क्या शिक्षा विभाग इस समस्या को हल करने के लिए कोई ठोस कदम उठा रहा है? जानिए इस खबर में।
कक्षा के साथ बढ़ता ड्रॉप आउट रेट
राज्य में बच्चों का ड्रॉप आउट रेट कक्षा बढ़ने के साथ दोगुना हो जाता है। पांचवीं कक्षा तक नामांकन लेने वाले बच्चों में से 4.9 प्रतिशत बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं, जबकि कक्षा 12वीं तक यह आंकड़ा बढ़कर 10.3 प्रतिशत तक पहुंच जाता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि कक्षा तीसरी से पांचवीं तक ड्रॉप आउट रेट 4.9 प्रतिशत है, जबकि छठी से आठवीं कक्षा तक यह दर बढ़कर 9 प्रतिशत हो जाती है। यह आंकड़े चिंताजनक हैं, क्योंकि कक्षा नौवीं से बारहवीं तक बच्चों का ड्रॉप आउट रेट 10.3 प्रतिशत तक पहुंच जाता है।
मगर, 12वीं तक पहुंचने में कमी
हालांकि, राज्य में एक सकारात्मक बदलाव भी देखा जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में कक्षा नौवीं से 12वीं तक बच्चों के ड्रॉप आउट रेट में कमी आई है। 2019 में यह आंकड़ा 13.5 प्रतिशत था, जो अब घटकर 10.3 प्रतिशत हो गया है। इसका मतलब है कि हाइस्कूल के स्तर पर कुछ सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी यह प्रतिशत काफी ज्यादा है।
क्या हैं कारण?
ड्रॉप आउट रेट बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं। सबसे बड़ा कारण है आर्थिक स्थिति। झारखंड में कई बच्चे ऐसे हैं जिनके परिवार में शिक्षा के प्रति जागरूकता की कमी है और जो गरीबी के कारण बच्चों को स्कूल भेजने में असमर्थ हैं। इसके अलावा, लड़कियों का स्कूल छोड़ने का रुझान ज्यादा देखा जा रहा है। कक्षा छठी से आठवीं तक की छात्राओं का ड्रॉप आउट रेट 8.6 प्रतिशत है, जो लड़कों के मुकाबले कम नहीं है।
शिक्षा विभाग की पहल
स्कूल शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने इस समस्या से निपटने के लिए कई योजनाएँ बनाई हैं। विभाग हर साल ड्रॉप आउट बच्चों का सर्वे करता है, ताकि उन्हें फिर से स्कूल में शामिल किया जा सके। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष कक्षाएँ भी शुरू की हैं, जहां बच्चों को उनकी उम्र के अनुसार शिक्षा दी जाती है। इसके साथ ही, एकल शिक्षा योजनाओं और मध्याह्न भोजन योजनाओं को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई में रुचि बनी रहे।
क्या है भविष्य?
झारखंड सरकार ने ड्रॉप आउट रेट को कम करने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की है, लेकिन इससे निपटने के लिए समाज का भी सहयोग जरूरी है। बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार सबसे अहम होना चाहिए, और इसके लिए सिर्फ सरकार ही नहीं, बल्कि समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी।
आखिरकार, यह समस्या कैसे सुलझेगी?
यह सवाल हर किसी के मन में उठता है, लेकिन इसका समाधान तब ही संभव है जब समाज, सरकार और शिक्षा विभाग एक साथ मिलकर काम करें। बच्चों के शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है।
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