Ranchi Malnutrition: झारखंड में 39% बच्चे कुपोषित, फिर भी इलाज को तरस रहे मासूम!
झारखंड में 39% बच्चे कुपोषित हैं, लेकिन इलाज के लिए रिम्स पहुंचने वाले बच्चों की संख्या न के बराबर है। जानिए क्यों कुपोषण झारखंड के बच्चों की जिंदगी पर बना हुआ है खतरा!
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रांची: झारखंड में बच्चों का कुपोषण एक गंभीर समस्या बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, झारखंड में 39% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। वहीं, अति गंभीर रूप से कमजोर बच्चों की संख्या 9.1% दर्ज की गई है। लेकिन विडंबना यह है कि रिम्स के रेफरल कुपोषण उपचार केंद्र में पिछले डेढ़ साल में सिर्फ 84 बच्चों का ही इलाज किया गया है।
झारखंड में कुपोषण का भयावह आंकड़ा
झारखंड के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कुपोषण की स्थिति चिंताजनक है। शहरी क्षेत्रों में 26.8% और ग्रामीण क्षेत्रों में 42.3% बच्चे बौनेपन (stunting) का शिकार हैं। पांच साल से कम उम्र के 22.4% बच्चे कमजोर (wasted) हैं, और 67.5% बच्चों में एनीमिया पाया गया है।
रिम्स में इलाज से क्यों वंचित रह रहे हैं बच्चे?
राज्य के मेडिकल कॉलेजों और जिला अस्पतालों को यह निर्देश दिया गया है कि कुपोषित बच्चों को इलाज के लिए रिम्स के रेफरल सेंटर में भेजा जाए, लेकिन सख्ती और निगरानी के अभाव में यह प्रक्रिया ठप पड़ी है।
रिम्स में मैनपावर की कमी भी एक बड़ी समस्या है। पहले यहां न्यूट्रिशनिस्ट, काउंसलर, रसोइया और वार्ड बॉय की कमी के कारण बच्चों के लिए पोषण युक्त भोजन तक की व्यवस्था नहीं हो पाई थी। हालांकि, फिलहाल यह सेंटर चालू है और डॉ. दिव्या सिंह इस सेंटर में कुपोषित बच्चों का इलाज कर रही हैं। लेकिन समस्या यह है कि अभिभावकों को इसके बारे में सही जानकारी नहीं है, जिससे बच्चे इलाज तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं।
इतिहास से सीख नहीं ले रहा झारखंड?
झारखंड में कुपोषण कोई नई समस्या नहीं है। 2014 में जब NFHS-4 की रिपोर्ट आई थी, तब भी राज्य में कुपोषण का स्तर काफी ऊंचा था। हालांकि, सरकार ने कई योजनाएं लागू कीं, लेकिन हालिया आंकड़े बताते हैं कि अब भी राज्य के बच्चों को भरपूर पोषण नहीं मिल रहा।
सरकार की योजनाएं कितनी कारगर?
18 जनवरी 2025 से झारखंड सरकार ने 'शिशु शक्ति खाद्य पैकेट' योजना शुरू की है। यह पैकेट प्रोटीन, विटामिन और सूक्ष्म पोषक तत्वों से भरपूर है। इसकी शुरुआत पश्चिम सिंहभूम के चक्रधरपुर प्रखंड से पायलट प्रोजेक्ट के तहत की गई। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह योजना उन बच्चों तक पहुंच रही है, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है?
समस्या का समाधान क्या है?
- सरकार को जिला स्तर पर निगरानी मजबूत करनी होगी, ताकि कुपोषित बच्चों को सही समय पर इलाज मिल सके।
- रिम्स के रेफरल सेंटर का प्रचार-प्रसार बढ़ाना जरूरी है, ताकि अधिक से अधिक अभिभावकों को इसकी जानकारी मिले।
- गांवों में आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं की भूमिका बढ़ानी होगी, ताकि बच्चों को जल्द से जल्द उपचार मिल सके।
झारखंड में कुपोषण की समस्या कोई मामूली बात नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि आज भी हजारों बच्चे पोषण के अभाव में अपनी जिंदगी खो रहे हैं। सरकार और प्रशासन को इस ओर ध्यान देना होगा, नहीं तो आने वाले वर्षों में स्थिति और भयावह हो सकती है।
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