Jharkhand HighCourt: चेक बाउंस केस में पुलिस जांच नहीं, सीधे कोर्ट करेगी सुनवाई
झारखंड हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: चेक बाउंस मामलों में पुलिस जांच की जरूरत नहीं, सिर्फ लिखित शिकायत पर कोर्ट लेगी संज्ञान। पढ़ें पूरी खबर।
रांची: झारखंड हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में साफ किया है कि चेक बाउंसिंग मामलों में पुलिस की जांच की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि NI Act की धारा 142 के तहत चेक बाउंसिंग अपराध पर संज्ञान सिर्फ लिखित शिकायत के आधार पर लिया जा सकता है।
क्या है मामला?
यह मामला झारखंड के एक याचिकाकर्ता से जुड़ा है, जिन पर आरोप है कि उन्होंने शिकायतकर्ता को 10,82,500 रुपये का चेक जारी किया। लेकिन जब यह चेक बैंक में जमा किया गया, तो याचिकाकर्ता के खाते में पर्याप्त धनराशि न होने के कारण चेक बाउंस हो गया। इसके बाद शिकायतकर्ता ने कानूनी प्रक्रिया का सहारा लिया और याचिकाकर्ता को एक नोटिस भेजा।
याचिकाकर्ता ने जवाब में कहा कि शिकायतकर्ता को चेक बैंक में डालने से पहले उनकी अनुमति लेनी चाहिए थी। इसके बावजूद शिकायतकर्ता ने न्यायालय में शिकायत दर्ज कराई और मामले को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत पुलिस को जांच के लिए रेफर करने की मांग की।
हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस अनिल कुमार चौधरी की अदालत में सुनवाई के दौरान इस मामले ने बड़ा मोड़ लिया। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि उनके खिलाफ जालसाजी जैसे गंभीर आरोप नहीं लगाए जा सकते, और इसलिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द की जानी चाहिए।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा:
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चेक बाउंसिंग मामले में पुलिस की भूमिका नहीं
NI Act की धारा 142(1)(ए) के तहत चेक अनादर के मामलों में संज्ञान लेने के लिए पुलिस रिपोर्ट की आवश्यकता नहीं है। -
अदालत को पुलिस जांच का आदेश देने का अधिकार नहीं
अदालत केवल लिखित शिकायत के आधार पर मामले का संज्ञान ले सकती है।
इतिहास में चेक बाउंस के कानूनी पहलू
चेक बाउंसिंग का मामला पहली बार 1881 में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) के तहत परिभाषित किया गया। यह कानून बैंकों और व्यापारियों के बीच भरोसे को बनाए रखने के लिए बनाया गया था। 1988 में इस एक्ट में संशोधन कर धारा 138 जोड़ी गई, जिसके तहत चेक बाउंस को आपराधिक अपराध घोषित किया गया। इस कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि कोई व्यक्ति बिना पर्याप्त धनराशि के चेक जारी कर आर्थिक लेन-देन में धोखाधड़ी न कर सके।
कानूनी प्रक्रिया की जटिलता
झारखंड हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि चेक बाउंसिंग के मामलों में पुलिस का हस्तक्षेप कानून के दायरे से बाहर है। यह फैसला देशभर के ऐसे मामलों के लिए मिसाल बन सकता है।
याचिकाकर्ता का पक्ष
याचिकाकर्ता ने अदालत में यह भी तर्क दिया कि उनके खिलाफ दायर IPC की धारा 467 (जालसाजी), 468 (धोखाधड़ी के इरादे से जालसाजी) और 120बी (आपराधिक साजिश) के आरोप निराधार हैं। उन्होंने कहा कि यह पूरा मामला NI Act की धारा 138 तक सीमित है, और इस आधार पर प्राथमिकी रद्द की जानी चाहिए।
क्या है NI Act की धारा 138?
धारा 138 के तहत चेक बाउंस होने पर शिकायतकर्ता को नोटिस भेजना अनिवार्य है। नोटिस के बाद, यदि 15 दिनों के अंदर चेक की राशि अदा नहीं की जाती, तो अपराध का मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
जनता के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
यह फैसला उन मामलों को सरल और प्रभावी बना सकता है, जिनमें चेक बाउंसिंग के अपराध दर्ज होते हैं। हाईकोर्ट का यह आदेश स्पष्ट करता है कि पुलिस और न्यायालय की भूमिका इस कानून के तहत सीमित है।
झारखंड हाईकोर्ट का यह फैसला चेक बाउंसिंग मामलों में कानूनी प्रक्रियाओं को तेज और पारदर्शी बनाने में मदद करेगा। यह फैसला चेक जारी करने वाले और प्राप्तकर्ता दोनों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक करेगा।
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