Jamshedpur Controversy: बिष्टुपुर गोलचक्कर पर जयपाल सिंह मुंडा का नामकरण, प्रशासन हुआ लाचार
जमशेदपुर में बिष्टुपुर गोलचक्कर पर जयपाल सिंह मुंडा के नामकरण को लेकर विवाद बढ़ा। जानें क्यों बिरसा सेना के लोग प्रशासन से टकराए और किस तरह यह मामला तूल पकड़ता जा रहा है।
जमशेदपुर में इन दिनों एक नया ट्रेंड बन गया है। शहर के प्रमुख गोलचक्करों और सार्वजनिक स्थानों पर अपनी-अपनी जातियों के महापुरुषों के नाम पर नामकरण करने का सिलसिला शुरू हो गया है। इस विवाद ने अब प्रशासन और टाटा स्टील प्रबंधन को भी परेशानी में डाल दिया है। ताजा विवाद बिष्टुपुर के मुख्य गोलचक्कर पर देखने को मिला, जब बिरसा सेना के लोगों ने यहां पर मरांग गोमके जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर गोलचक्कर का नामकरण कर दिया।
क्या था विवाद?
यह घटना उस समय हुई जब बिरसा सेना के सदस्य बिष्टुपुर गोलचक्कर पर पहुंचे और अचानक जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर नामकरण कर दिया। इसके बाद उन्होंने वहीं बैठकर जोरदार नारेबाजी भी शुरू कर दी। इस स्थिति के बाद प्रशासन को सूचित किया गया और टाटा स्टील के सुरक्षा अधिकारी तथा बिष्टुपुर पुलिस मौके पर पहुंची। अधिकारियों ने स्थिति को संभालने की कोशिश की और लोगों से शांतिपूर्वक बातचीत की।
पुलिस ने उन्हें समझाया कि अगर कोई काम करना है, तो इसके लिए पहले उचित अनुमति ली जाए। लेकिन बिरसा सेना के लोग इस समझौते से सहमत नहीं हुए, और उन्होंने सड़क पर गतिरोध उत्पन्न कर दिया। इस पर प्रशासन और पुलिस के लिए स्थिति काबू करना मुश्किल हो गया।
नामकरण का कारण: आदिवासी अधिकार
बिरसा सेना के नेताओं ने कहा कि बिष्टुपुर गोलचक्कर का नाम जयपाल सिंह मुंडा के नाम पर होना चाहिए, क्योंकि उनके अनुसार इस स्थान पर अभी तक कोई आदिवासी महापुरुष का नाम नहीं है। उनका यह भी कहना था कि यह जमीन आदिवासियों की है और पांचवीं अनुसूची के तहत इसे आदिवासी स्वशासन के अधिकार क्षेत्र में रखा जाता है। बिरसा सेना के नेताओं ने यह भी कहा कि यह कदम केवल आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए उठाया गया है।
इतिहास की बात करें तो:
जयपाल सिंह मुंडा, जो एक प्रसिद्ध आदिवासी नेता, राजनीतिक कार्यकर्ता, और अंतरराष्ट्रीय हॉकी खिलाड़ी थे, ने झारखंड आंदोलन को प्रेरित किया था। उन्होंने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए कई आंदोलन किए और एक नए राज्य की आवश्यकता को महसूस किया। जयपाल सिंह मुंडा की प्रतिष्ठा आदिवासी समुदाय के लिए एक आदर्श के रूप में रही है, और उनका योगदान आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
आदिवासी अधिकार और प्रशासन की भूमिका:
यह विवाद केवल एक नामकरण की प्रक्रिया तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के अधिकारों और प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल खड़ा करता है। बिरसा सेना का कहना है कि यह कदम न केवल सम्मान का मामला है, बल्कि यह आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए भी जरूरी है। वहीं दूसरी ओर प्रशासन का कहना है कि किसी भी सार्वजनिक स्थल पर नामकरण के लिए पहले प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी है, और बिना अनुमति के ऐसा कदम उठाना अवैध हो सकता है।
क्या आगे बढ़ेगा विवाद?
इस विवाद ने न केवल बिष्टुपुर बल्कि पूरे जमशेदपुर शहर में एक नई बहस का आरंभ कर दिया है। इस घटना ने यह सवाल खड़ा किया है कि क्या यह ट्रेंड शहर के अन्य गोलचक्करों और सार्वजनिक स्थानों पर भी फैल सकता है? क्या इस तरह के विवादों के चलते आदिवासी समुदाय के अधिकारों का सम्मान किया जाएगा, या फिर यह प्रशासन के लिए एक और सिरदर्द साबित होगा?
बिरसा सेना और आदिवासी समुदाय के लोग अब भी इस नामकरण को लेकर संघर्षरत हैं, और उनका कहना है कि इसे हटाना एक गलत कदम होगा। दूसरी ओर प्रशासन और टाटा स्टील प्रबंधन को भी इस मामले में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता महसूस हो रही है। ऐसे में देखना होगा कि यह विवाद आगे किस दिशा में बढ़ता है।
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