Jamshedpur Statement Controversy: आरएसएस पर टिप्पणी कर फंसे बन्ना गुप्ता, मांगी माफी!
झारखंड के पूर्व मंत्री बन्ना गुप्ता द्वारा कांग्रेस अधिवेशन में आरएसएस पर की गई टिप्पणी को लेकर जेडीयू नेता सुबोध श्रीवास्तव ने तीखा हमला बोला है। संघ की शाखा में शामिल होने की सलाह देते हुए, माफी मांगने की मांग की गई है।

राजनीति में बयान एक तीर की तरह होते हैं, जो निकलने के बाद वापस नहीं आते। कुछ ऐसा ही मामला अब झारखंड के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता के साथ हो गया है। गुजरात के अहमदाबाद में हुए कांग्रेस के 84वें महाधिवेशन के दौरान उनके द्वारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के खिलाफ की गई टिप्पणी ने एक नया विवाद खड़ा कर दिया है।
बन्ना गुप्ता का बयान ना सिर्फ सियासी हलकों में बहस का विषय बना है, बल्कि अब जनता दल (यूनाइटेड) के पूर्वी सिंहभूम जिला अध्यक्ष सुबोध श्रीवास्तव ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है।
क्या कहा गया था कांग्रेस अधिवेशन में?
अहमदाबाद में आयोजित कांग्रेस के राष्ट्रीय महाधिवेशन के मंच से बोलते हुए बन्ना गुप्ता ने RSS को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उनका इशारा यह था कि संघ की विचारधारा विभाजनकारी है और वह देश को जोड़ने की बजाय तोड़ने का काम करती है।
हालांकि इस टिप्पणी को कांग्रेस के मंच पर बैठे नेताओं ने ताली बजाकर सराहा, लेकिन बाहर सियासी तूफान उठ गया।
JDU नेता का पलटवार
सुबोध श्रीवास्तव ने एक तीखा बयान जारी करते हुए कहा, "बन्ना गुप्ता को पहले संघ की शाखा में जाकर संघ की सेवा और समर्पण की भावना को समझना चाहिए, फिर कोई टिप्पणी करनी चाहिए।"
उन्होंने बन्ना गुप्ता को ‘परिस्थितियों के अनुसार रंग बदलने वाला कलाकार’ बताते हुए आरोप लगाया कि वो कभी सेकुलर तो कभी कट्टर हिंदू या अल्पसंख्यक बन जाते हैं — बस सियासी लाभ के लिए।
श्रीवास्तव ने यह भी कहा कि बन्ना गुप्ता को संघ की शाखाओं में जाकर स्वयंसेवकों के बलिदान और समर्पण की गाथा जाननी चाहिए। उनका मानना है कि सिर्फ कांग्रेस के मंच पर तालियां पाने के लिए ऐसी टिप्पणी करना नैतिक रूप से गलत और वैचारिक रूप से खोखला है।
इतिहास में RSS की भूमिका
यह कहना गलत नहीं होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की राजनीति और सामाजिक व्यवस्था का एक गहरा हिस्सा रहा है।
1925 में डॉ. हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज देश के कोने-कोने में हजारों शाखाओं के जरिए सामाजिक सेवा और राष्ट्रभक्ति का कार्य कर रहा है।
विपत्ति के समय में जैसे गुजरात भूकंप या केदारनाथ आपदा में संघ स्वयंसेवकों की भूमिका की सराहना की जाती रही है।
ऐसे में जब कोई वरिष्ठ नेता संगठन की आलोचना करता है, तो राजनीतिक प्रतिक्रिया लाजमी हो जाती है।
बन्ना गुप्ता का राजनीतिक प्रोफाइल
बन्ना गुप्ता झारखंड की राजनीति में एक चर्चित और अक्सर विवादों में रहने वाले नेता रहे हैं।
वे खुद को सेकुलर विचारधारा का पोषक बताते हैं, लेकिन उनकी बयानबाजी अक्सर विरोधाभासी रही है।
कभी वे सनातन संस्कृति की बात करते हैं, तो कभी धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ खड़े होने का दावा करते हैं।
इन्हीं विरोधाभासों के कारण उनके बयान हमेशा चर्चा में रहते हैं।
क्या मांग की जा रही है?
जेडीयू नेता श्रीवास्तव ने साफ शब्दों में कहा है कि बन्ना गुप्ता को अपनी टिप्पणी के लिए संघ परिवार से माफी मांगनी चाहिए।
साथ ही, उन्हें सलाह दी है कि अगर वह सच में राष्ट्रसेवा और समर्पण की भावना को समझना चाहते हैं, तो जमशेदपुर में लगने वाली RSS शाखाओं में स्वयं शामिल हों।
राजनीति में भाषण और विचार, दोनों का मूल्यांकन जनता करती है
बन्ना गुप्ता का यह बयान एक बार फिर ये साबित करता है कि राजनीति में हर शब्द की कीमत होती है।
संघ जैसी संस्था, जिसकी जड़ें भारतीय समाज में गहरी हैं, उस पर टिप्पणी करना केवल विरोध का माध्यम नहीं, बल्कि एक वैचारिक युद्ध का हिस्सा बनता है।
अब सवाल यह है कि क्या बन्ना गुप्ता अपनी टिप्पणी पर पुनर्विचार करेंगे, या फिर यह बयान आने वाले समय में एक और सियासी मुद्दा बन जाएगा?
बात अब सिर्फ एक नेता की नहीं है, यह एक विचारधारा पर हमला और उसके जवाब की लड़ाई बन चुकी है।
What's Your Reaction?






