Ahmedabad Congress Mahadhiveshan: सोनिया-राहुल की मौजूदगी में बदला कांग्रेस का सियासी रंग!
अहमदाबाद के साबरमती तट पर हुए 84वें कांग्रेस महाधिवेशन में राहुल गांधी, सोनिया गांधी से लेकर प्रदेशों के नेताओं तक सभी शामिल हुए। संगठन को धारदार बनाने, गांव तक विस्तार और सरदार पटेल के 150वें जयंती वर्ष पर खास कार्यक्रमों की योजना बनी।

अहमदाबाद के ऐतिहासिक साबरमती तट पर जब कांग्रेस का 84वां महाधिवेशन शुरू हुआ, तो यह सिर्फ एक राजनीतिक सम्मेलन नहीं था, बल्कि पार्टी के भविष्य की दिशा तय करने वाला ऐतिहासिक क्षण बन गया। 8 और 9 अप्रैल को आयोजित इस दो दिवसीय अधिवेशन में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की अध्यक्षता में कई अहम फैसले लिए गए, जिनका असर आने वाले चुनावों और पार्टी की रणनीति पर साफ नजर आने वाला है।
इस महाधिवेशन की विशेष बात यह रही कि इसमें कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे - पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और पार्टी के कई राष्ट्रीय नेता नज़र आए। साथ ही देश भर से आए सांसद, विधायक, कांग्रेस मुख्यमंत्री, मंत्री और जिलाध्यक्षों ने इस अधिवेशन को नई ऊर्जा दी।
जमशेदपुर से पहुंचे वरिष्ठ नेता
जमशेदपुर से कांग्रेस जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे ने इस महाधिवेशन में भाग लिया। उनके साथ पूर्व मंत्री बन्ना गुप्ता, डॉ प्रदीप कुमार बलमुचू, रामाश्रय प्रसाद और अशोक चौधरी जैसे वरिष्ठ नेता भी उपस्थित थे।
बन्ना गुप्ता ने अपने संबोधन में संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत करने और भाजपा की नीतियों के खिलाफ जनजागरण अभियान तेज करने की बात कही।
कांग्रेस संगठन को गांव-गांव तक ले जाने की रणनीति
अधिवेशन के दौरान कांग्रेस नेतृत्व ने संगठन को गांव और पंचायत स्तर तक विस्तार देने की रणनीति पर चर्चा की। जिलाध्यक्ष आनंद बिहारी दुबे ने बताया कि अधिवेशन में यह स्पष्ट रूप से तय हुआ कि पार्टी अब सिर्फ शहरी सीमाओं में सिमटी नहीं रहेगी, बल्कि जनता के बीच जाकर संवाद और संघर्ष की नीति पर काम करेगी।
इसका एक उदाहरण सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती वर्ष को लेकर तय की गई रणनीति है। इस ऐतिहासिक अवसर पर कांग्रेस देशभर में विशेष जनसंपर्क कार्यक्रम और विचार गोष्ठियों का आयोजन करेगी, ताकि स्वतंत्रता संग्राम के नायकों की विरासत को आमजन तक पहुंचाया जा सके।
राजनीतिक मुलाकातों में रणनीति की बुनियाद
महाधिवेशन में आनंद बिहारी दुबे ने कई राष्ट्रीय नेताओं से अहम मुलाकातें भी कीं। इनमें सांसद गौरव गोगोई, पूर्व रक्षामंत्री पी. चिदंबरम, राष्ट्रीय प्रवक्ता आलोक कुमार, और कई कांग्रेस मुख्यमंत्रियों से राजनीतिक विमर्श शामिल रहा।
इन मुलाकातों का मकसद सिर्फ औपचारिकता नहीं, बल्कि संगठन को नए नेतृत्व के साथ नई दिशा देना भी था।
इतिहास के आइने में कांग्रेस महाधिवेशन
कांग्रेस के महाधिवेशनों की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि गौर करें तो हर महाधिवेशन ने पार्टी की दिशा और दशा तय की है। चाहे वह 1929 का लाहौर अधिवेशन हो, जहां पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था, या 1978 का अधिवेशन जहां इंदिरा गांधी की वापसी का रास्ता खुला था — इन महाधिवेशनों ने राजनीतिक बदलाव की लहर पैदा की है।
इस बार का 84वां महाधिवेशन भी उसी कड़ी में एक निर्णायक मोड़ की तरह देखा जा रहा है, खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को धारदार बनाने की दृष्टि से।
नया जोश, नई ऊर्जा और रणनीति
अहमदाबाद के इस महाधिवेशन ने साबित कर दिया कि कांग्रेस अब एक रिएक्शनरी पार्टी नहीं, बल्कि रणनीतिक और जमीनी संगठन के रूप में खुद को तैयार कर रही है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के नेतृत्व में उठाए गए कदम और सोनिया-राहुल गांधी की सक्रिय भागीदारी ने कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा का संचार किया है।
अहमदाबाद का यह कांग्रेस महाधिवेशन सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि पार्टी के पुनरुत्थान की पटकथा बन गया है। चाहे सरदार पटेल की जयंती पर जनजागरण हो या गांव-गांव तक संगठन का विस्तार — कांग्रेस अब जनता से सीधे जुड़ने के एजेंडे पर काम कर रही है। अब देखना ये है कि यह नई रणनीति 2024 के चुनावी रण में कितना असर दिखा पाती है।
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