Jamshedpur: विधायक रामदास सोरेन बने शिक्षा मंत्री, संथाली को प्रथम राजभाषा का दर्जा दिलाने की उठी मांग
झारखंड के घाटशिला विधायक रामदास सोरेन को शिक्षा मंत्री बनने पर आदिवासी संगठन आसेका ने जताई खुशी। संथाली भाषा को प्रथम राजभाषा का दर्जा देने और ओलचिकी लिपि को मान्यता दिलाने की मांग।
झारखंड की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान को नया आयाम देने के लिए घाटशिला के विधायक रामदास सोरेन को शिक्षा मंत्री नियुक्त किया गया है। इस घोषणा पर आदिवासी संगठन आदिवासियों सोशियो एजुकेशनल एंड कल्चरल एसोसिएशन (आसेका) ने हर्ष व्यक्त किया है। आसेका के महासचिव शंकर सोरेन ने झारखंड सरकार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के प्रति आभार प्रकट करते हुए उम्मीद जताई है कि यह निर्णय राज्य के आदिवासी समाज और उनकी संस्कृति के लिए एक बड़ा कदम साबित होगा।
आसेका की तीन प्रमुख मांगें
आसेका ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन से तीन महत्वपूर्ण मांगों पर ध्यान देने की अपील की है:
- ओलचिकी लिपि को मान्यता – संथाली भाषा की पहचान मानी जाने वाली ओलचिकी लिपि को सरकारी मान्यता प्रदान करने का आग्रह।
- संथाली अकादमी का गठन – झारखंड में एक संथाली अकादमी की स्थापना, जो भाषा, साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और बढ़ावा देने का कार्य करेगी।
- संथाली को प्रथम राजभाषा का दर्जा – संथाली को झारखंड की प्रथम राजभाषा घोषित करने की मांग, जिससे आदिवासी समाज को उनकी सांस्कृतिक पहचान में मजबूती मिले।
संथाली भाषा: इतिहास और महत्व
संथाली झारखंड की प्रमुख जनजातीय भाषाओं में से एक है और इसे भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। संथाली भाषा की लिपि ओलचिकी को 1925 में पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया था। यह भाषा झारखंड के आदिवासी समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर है और इसे प्रमोट करने के लिए लंबे समय से आंदोलन चलाए जा रहे हैं।
आसेका का कहना है कि यदि संथाली को झारखंड की प्रथम राजभाषा का दर्जा मिलता है, तो यह राज्य के आदिवासी समुदाय के लिए एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
आदिवासी समाज के लिए उम्मीद की किरण
आसेका महासचिव शंकर सोरेन का कहना है कि शिक्षा मंत्री रामदास सोरेन के कार्यकाल में आदिवासी समाज की लंबित मांगों पर कार्य होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि झारखंड के आदिवासियों को अपनी भाषा और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस कराने और उनकी पहचान को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने के लिए यह कदम जरूरी है।
हेमंत सरकार की नई पहल
हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड के आदिवासी समाज के हित में कई फैसले लिए हैं। रामदास सोरेन की नियुक्ति उसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नियुक्ति न केवल आदिवासी समुदाय को उनके अधिकार दिलाने में मदद करेगी, बल्कि राज्य की सांस्कृतिक विविधता को भी संरक्षित करने में सहायक होगी।
सांस्कृतिक पुनर्जागरण की दिशा में कदम
आसेका और अन्य आदिवासी संगठन झारखंड सरकार से यह सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं कि संथाली भाषा को उचित मान्यता मिले और ओलचिकी लिपि को प्राथमिक शिक्षा का हिस्सा बनाया जाए। इसके अलावा, संथाली अकादमी की स्थापना से अनुसंधान, साहित्यिक सृजन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा मिलेगा।
आदिवासी समाज के प्रति संवेदनशीलता और उनकी सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने की दिशा में रामदास सोरेन की नियुक्ति एक बड़ा कदम है। अब यह देखना होगा कि आने वाले समय में संथाली भाषा और आदिवासी समाज की मांगें किस हद तक पूरी होती हैं।
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