Lohardaga News: धर्म परिवर्तन के बाद गांव में दफनाने से रोका, शव 36 घंटे बाद दफनाया

झारखंड के लोहरदगा में धर्म परिवर्तन के बाद एक व्यक्ति के शव को गांव में दफनाने से रोका गया। जानें इस चौंकाने वाली घटना के बारे में।

Jan 15, 2025 - 10:07
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Lohardaga News: धर्म परिवर्तन के बाद गांव में दफनाने से रोका, शव 36 घंटे बाद दफनाया
Lohardaga News: धर्म परिवर्तन के बाद गांव में दफनाने से रोका, शव 36 घंटे बाद दफनाया

लोहरदगा (Lohardaga News) में हाल ही में एक दिलचस्प और दुखद घटना सामने आई, जो धर्म और समुदाय के बीच गंभीर मतभेदों को उजागर करती है। महुवरी गांव में एक व्यक्ति, जो दस साल पहले धर्म परिवर्तन कर चुका था, की मौत के बाद गांव वालों ने उसे अपनी कब्रिस्तान में दफनाने से मना कर दिया। इस घटना ने यह सवाल उठाया है कि क्या समाज में धर्म परिवर्तन करने का मतलब है कि व्यक्ति को समाज से बाहर कर दिया जाए?

घटना का विवरण:
लोहरदगा जिले के कैरो प्रखंड के महुवरी गांव में 55 वर्षीय दुखा उरांव की मौत के बाद एक हैरान कर देने वाली स्थिति उत्पन्न हुई। दुखा उरांव ने करीब दस साल पहले सरना धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपनाया था। वह पैंटीकोस्टल चर्च से जुड़े हुए थे, जबकि उनके गांव के बाकी लोग एनडब्ल्यूजीईएल चर्च से जुड़े थे। दुखा की मौत रांची में इलाज के दौरान हुई, और उसका शव महुवरी गांव लाया गया। परंतु, गांव के ईसाई समुदाय के लोगों ने शव को अपने कब्रिस्तान में दफनाने से साफ मना कर दिया, क्योंकि वह दूसरे धर्म का था।

यह विवाद तब और बढ़ गया जब दुखा के परिजनों ने अपनी जमीन पर शव दफनाने के लिए कब्र खोदी, लेकिन उनके सगे-संबंधी ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि दुखा अब ईसाई धर्म अपनाने के कारण उसे अपनी पारिवारिक पुश्तैनी जमीन पर दफनाने का अधिकार नहीं है। परिवार के अन्य सदस्य जो सरना धर्म के अनुयायी थे, उन्होंने शव को दफनाने की अनुमति नहीं दी।

प्रशासन का हस्तक्षेप:
जब इस विवाद ने तूल पकड़ा, तो प्रशासन ने हस्तक्षेप किया। एसपी हारिस बिन जमां, एसडीओ अमित कुमार, और अन्य प्रशासनिक अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और गांव के लोगों को समझाने की कोशिश की। प्रशासन ने 36 घंटे तक यह प्रयास किया कि शव को महुवरी गांव में ही दफनाया जाए, लेकिन गांववाले अपनी बात पर अड़े रहे।

इसके बाद, प्रशासन ने शव को सेरेंगहातू गांव में दफनाने का निर्णय लिया। प्रशासन की पहल पर शव को अंततः सेरेंगहातू गांव के एक कब्रिस्तान के बाहर दफनाया गया। इस प्रक्रिया के दौरान प्रशासन और पुलिस के अधिकारियों ने कई बार ग्रामीणों से बात की, लेकिन कोई हल नहीं निकला।

इतिहास से जुड़ा संदेश:
यह घटना केवल एक परिवार के लिए नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक संदेश छोड़ जाती है। धर्म परिवर्तन और उसकी सामाजिक स्वीकृति पर कई सवाल खड़े हो गए हैं। झारखंड जैसे क्षेत्र में जहां आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच धर्म और संस्कृति के मुद्दे अक्सर विवाद का कारण बनते हैं, इस प्रकार की घटनाएं समाज में और भी विभाजन उत्पन्न कर सकती हैं।

धार्मिक असहमति और समाजिक स्वीकार्यता के इस मुद्दे को लेकर राज्य सरकार और प्रशासन को कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए, ताकि भविष्य में इस प्रकार के विवादों से बचा जा सके।

समाज के लिए महत्वपूर्ण सिख:
यह घटना यह भी दर्शाती है कि धर्म और संस्कृति के मामलों में समाज को संवेदनशीलता के साथ सोचने की आवश्यकता है। हम सभी को यह समझने की आवश्यकता है कि धर्म परिवर्तन करना एक व्यक्तिगत अधिकार है, और इसे सम्मान देना हर नागरिक का कर्तव्य है। हमें इस प्रकार की घटनाओं से यह सिखने की जरूरत है कि हम समाज में समरसता और भाईचारे को बढ़ावा दें, न कि विभाजन को।

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