Jamshedpur MGM Hospital: ओपीडी बंद के बाद मरीजों की बाढ़, रजिस्ट्रेशन काउंटर पर मचा हाहाकार
जमशेदपुर के एमजीएम अस्पताल में ओपीडी बंद होने के अगले दिन मरीजों की भारी भीड़ उमड़ी। सुबह से ही लंबी कतारें, धीमी प्रक्रिया और मरीजों की बढ़ती बेचैनी ने अस्पताल प्रबंधन की व्यवस्था को हिला कर रख दिया।

जमशेदपुर, झारखंड का एक प्रमुख औद्योगिक शहर, इस बार चर्चा में है अस्पताल की उस भीड़ को लेकर जिसने सोमवार को एमजीएम अस्पताल की पूरी व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया। कारण था—रविवार को ओपीडी बंद रहना और मौसम में अचानक आया बदलाव। लेकिन क्या हर बार छुट्टी के बाद यह संकट दोहराया जाएगा? यही सवाल अब शहरवासी और मरीज एक सुर में उठा रहे हैं।
सुबह से ही दिखने लगा था ‘अस्वस्थ’ जमशेदपुर
सोमवार की सुबह जैसे ही अस्पताल खुला, रजिस्ट्रेशन काउंटर पर भीड़ का सैलाब उमड़ पड़ा। मरीजों की कतारें अस्पताल के अंदर से निकल कर रजिस्ट्रेशन हॉल से बाहर तक फैल गईं। कुछ मरीजों के हाथों में थर्मस, कुछ के पास पॉलिथीन में रिपोर्ट, तो कुछ के चेहरे पर सिर्फ बेचैनी और थकान।
सिर्फ साढ़े 11 बजे तक ही 600 से ज्यादा पर्चियां बन चुकी थीं। और यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही थी। हर कोई डॉक्टर से मिलने की जल्दबाजी में था, लेकिन इंतजार ही उनकी किस्मत बन गया।
किसने बढ़ाई भीड़?
इमरजेंसी सेवा में तैनात डॉक्टरों का कहना है कि रविवार को ओपीडी बंद होने के कारण सोमवार को दो दिनों का लोड एक ही दिन में आ गया। साथ ही, मौसम में हो रहे उतार-चढ़ाव से लोग सर्दी, खांसी, बुखार, पेट दर्द और वायरल संक्रमण जैसी बीमारियों के शिकार हो रहे हैं।
इतनी भीड़ के लिए एमजीएम अस्पताल की ओपीडी न तो मानसिक रूप से तैयार थी और न ही व्यवस्था के स्तर पर। नतीजा—लंबी लाइनें, धीमी पर्ची प्रक्रिया और असंतुष्ट मरीज।
इतिहास की भीड़: एमजीएम की पुरानी समस्या
एमजीएम अस्पताल की ओपीडी में भीड़ कोई नई बात नहीं है। यह अस्पताल जमशेदपुर और उसके आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के हजारों लोगों का मुख्य चिकित्सा केंद्र है। हर सप्ताहांत के बाद यहां मरीजों की संख्या अचानक बढ़ जाती है, लेकिन अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया है।
यह अस्पताल वर्ष 1961 में शुरू हुआ था और इसे राज्य का प्रमुख सरकारी मेडिकल संस्थान माना जाता है। परंतु वर्षों बाद भी यहां की ओपीडी प्रणाली आज भी तकनीकी अपग्रेड की राह तक रही है।
मरीजों की परेशानियां: लंबा इंतजार, धीमी प्रक्रिया
मरीजों और उनके परिजनों ने काफी असंतोष जताया। एक महिला जो अपने 6 वर्षीय बेटे को लेकर आई थीं, बोलीं—“रविवार को नहीं आ सकते थे, आज सुबह 6 बजे से लाइन में हैं, अब 11 बज गए लेकिन अभी तक डॉक्टर से मिल नहीं पाए।”
एक बुजुर्ग व्यक्ति ने कहा—“इतनी भीड़ में तो बीमारी और बढ़ जाएगी। यहां बैठने की भी जगह नहीं है।”
क्या है समाधान?
शहरवासियों और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि हर छुट्टी के अगले दिन अतिरिक्त काउंटर, डॉक्टर और स्टाफ की व्यवस्था की जाए। साथ ही, ई-रजिस्ट्रेशन जैसे डिजिटल उपायों को बढ़ावा दिया जाए ताकि पर्ची बनवाने में लगने वाला समय कम हो।
कुछ चिकित्सकों ने सुझाव दिया कि मॉनसून और मौसम परिवर्तन जैसे संवेदनशील महीनों में अतिरिक्त ओपीडी पाली लगाई जानी चाहिए।
प्रबंधन की चुप्पी
अस्पताल प्रबंधन ने भीड़ को असामान्य बताया लेकिन इससे निपटने की रणनीति पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। एक अधिकारी ने कहा—“हमने अतिरिक्त स्टाफ की व्यवस्था की थी लेकिन मरीजों की संख्या हमारी अपेक्षा से कहीं ज्यादा रही।”
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