India Decision War: जनसंख्या नियंत्रण कानून पर देश की 'एक आवाज़', साध्वी ऋतम्भरा से बाबा रामदेव तक समर्थन में जुटे नेता

भारत में जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग अब जनांदोलन बनती जा रही है। साध्वी ऋतम्भरा, बाबा रामदेव और केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल जैसे नामी चेहरे अब खुलकर इस कानून के समर्थन में सामने आए हैं। जानिए क्या है इसका ऐतिहासिक और संवैधानिक पक्ष।

Apr 9, 2025 - 09:33
Apr 9, 2025 - 09:34
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India Decision War: जनसंख्या नियंत्रण कानून पर देश की 'एक आवाज़', साध्वी ऋतम्भरा से बाबा रामदेव तक समर्थन में जुटे नेता
India Decision War: जनसंख्या नियंत्रण कानून पर देश की 'एक आवाज़', साध्वी ऋतम्भरा से बाबा रामदेव तक समर्थन में जुटे नेता

क्या भारत दो बच्चों की नीति को कानूनी रूप देने वाला है? क्या अब जनसंख्या नियंत्रण केवल बहस नहीं बल्कि कानून का रूप लेने वाला है? इन सवालों के जवाब अब सिर्फ संसद में नहीं, बल्कि साधु-संतों और समाजसेवियों की जुबान पर भी हैं।

जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर देशभर में एक सामूहिक चेतना उभर रही है। जहां पहले यह सिर्फ राजनीतिक एजेंडा हुआ करता था, अब इसे धार्मिक और सामाजिक नेतृत्व भी पूरी तरह समर्थन दे रहा है।

धर्मगुरुओं और राजनेताओं की एकजुटता

साध्वी ऋतम्भरा ने इस मसले को "राष्ट्र निर्माण के लिए अनिवार्य कदम" बताया। उनका कहना है कि यदि अब भी देश नहीं चेता, तो विकास केवल कागजों पर ही रहेगा।
योग गुरु स्वामी रामदेव ने जनसंख्या विस्फोट को "राष्ट्रीय संसाधनों पर सबसे बड़ा हमला" बताया। उन्होंने कहा, “अगर जनसंख्या नियंत्रण नहीं हुआ, तो रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सिर्फ सपना बनकर रह जाएंगे।”

क्या कहती है सरकार?

केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने संकेत दिया है कि सरकार इस विषय पर गंभीरता से विचार कर रही है और बहुत जल्द कोई बड़ा कदम उठाया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश और असम जैसे राज्यों में पहले ही दो बच्चों की नीति सरकारी नौकरियों और पंचायत चुनावों में लागू हो चुकी है। अब राष्ट्रीय स्तर पर इसे कानून का रूप देने की मांग जोर पकड़ रही है।

इतिहास से सीखें: जनसंख्या नीति का पुराना चेहरा

भारत में जनसंख्या नियंत्रण की बात कोई नई नहीं है।
1976 में आपातकाल के दौर में संजय गांधी के नेतृत्व में जबरन नसबंदी अभियान चलाया गया था, जिसे आज भी लोग एक काले अध्याय के रूप में याद करते हैं।
उस समय हुई सामाजिक नाराजगी ने यह सिखाया कि ऐसे कानूनों को लागू करने के लिए सिर्फ राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं, बल्कि सामाजिक संतुलन और संवेदनशीलता भी जरूरी है।

दो बच्चों की नीति: क्या होंगे इसके प्रभाव?

प्रस्तावित कानून के तहत अगर किसी दंपति के दो से अधिक बच्चे होंगे, तो उन्हें सरकारी योजनाओं और सुविधाओं से वंचित किया जा सकता है।

यह कानून शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और जल-संसाधन जैसी समस्याओं को हल करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

लेकिन साथ ही इसके कुछ चिंताजनक पहलू भी सामने आ रहे हैं:

  • महिलाओं पर सामाजिक दबाव

  • लिंग चयन और कन्या भ्रूण हत्या की आशंका

  • धार्मिक और सामाजिक असंतुलन की संभावना

क्या है समाधान?

विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंख्या नियंत्रण कानून लाना जरूरी है, लेकिन इसे लागू करने से पहले जनजागरण, शिक्षा और संवेदनशील संवाद की प्रक्रिया आवश्यक है।
इससे न सिर्फ लोगों की मानसिकता बदलेगी, बल्कि वे इस नीति को सहर्ष स्वीकार भी करेंगे।

एकजुटता की नई मिसाल

धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक नेतृत्व का इस मसले पर एकजुट होना इस बात का संकेत है कि देश अब जनसंख्या विस्फोट को लेकर जागरूक हो चुका है। यह केवल कानून का नहीं, बल्कि जन-मन का मुद्दा बन चुका है।

क्या होगा अगला कदम?

देश की बढ़ती जनसंख्या अब विकास के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट बन चुकी है। यदि अब कोई निर्णायक कानून नहीं बना, तो आने वाली पीढ़ियों को शिक्षा, स्वास्थ्य और संसाधनों के लिए संघर्ष करना पड़ेगा।

अब समय है राष्ट्रीय संवाद का, जहां संविधान, समाज और मानवता—तीनों को ध्यान में रखते हुए समाधान तलाशे जाएं।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।