India Drink Controversy: बाबा रामदेव का 'शरबत जिहाद' बयान, क्या सच में रूह अफजा से बनते हैं मदरसे?
योग गुरु बाबा रामदेव ने रूह अफजा शरबत को 'शरबत जिहाद' बताकर विवाद खड़ा कर दिया है। जानें 119 साल पुराने इस पेय का इतिहास और क्या वाकई इसकी कमाई से बनते हैं मदरसे?

योग गुरु बाबा रामदेव ने एक बार फिर विवादित बयान देकर सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा कर दिया है। पतंजलि के गुलाब शरबत के प्रचार के दौरान उन्होंने एक अन्य पेय को लक्षित करते हुए आरोप लगाया कि "कुछ कंपनियां शरबत बेचकर मदरसे और मस्जिद बनवाती हैं।" हालांकि उन्होंने सीधे नाम नहीं लिया, लेकिन संकेत साफ था—वह 119 साल पुराने पारंपरिक पेय 'रूह अफजा' की बात कर रहे थे।
क्या है पूरा विवाद?
बाबा रामदेव ने दावा किया कि "शरबत की कमाई से मदरसे बनते हैं" और इसे "शरबत जिहाद" बताया।
उन्होंने अन्य पेय पदार्थों की तुलना "टॉयलेट क्लीनर" से की और लोगों से पतंजलि उत्पाद खरीदने की अपील की।
पतंजलि के सोशल मीडिया पोस्ट में भी रूह अफजा को लक्षित करते हुए इसे "जहरीला पेय" बताया गया।
रूह अफजा का इतिहास: क्या यह वाकई 'मुस्लिम ड्रिंक' है?
रूह अफजा का इतिहास 1906 से जुड़ा है, जब दिल्ली के यूनानी हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने इसे गर्मी से राहत देने के लिए बनाया था। यह पेय "हमदर्द लैबोरेटरीज" द्वारा बनाया जाता है, जिसका नाम "सभी के लिए सहानुभूति" (Hamdard = हमदर्द) रखा गया था।
क्या रूह अफजा पाकिस्तानी उत्पाद है?
1947 के बाद हकीम मजीद के एक बेटे ने पाकिस्तान में अलग हमदर्द कंपनी शुरू की, लेकिन भारत में यह पूरी तरह स्वदेशी उत्पाद है।
हमदर्द इंडिया के CEO हामिद अहमद (मजीद के पड़पोते) ने स्पष्ट किया कि "रूह अफजा भारतीय है, पाकिस्तान और बांग्लादेश से पुराना है।"
क्या सच में रूह अफजा की कमाई से बनते हैं मदरसे?
हमदर्द एक वक्फ (गैरलाभकारी) ट्रस्ट के तहत चलता है, जिसका 85% मुनाफा शैक्षणिक और चैरिटेबल कार्यों में जाता है।
हालांकि, यह धन केवल मदरसों तक सीमित नहीं है—यह अस्पताल, स्कूल और शोध संस्थानों को भी सपोर्ट करता है।
क्यों पसंद किया जाता है रूह अफजा?
रमजान से लेकर होली तक: यह शरबत सभी धर्मों और त्योहारों में समान रूप से लोकप्रिय है।
2020 में 37 मिलियन डॉलर की बिक्री: हमदर्द का सालाना टर्नओवर 70 मिलियन डॉलर है, जिसमें रूह अफजा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
क्या बाबा रामदेव का आरोप सही है?
तथ्य: हमदर्द का पैसा शैक्षणिक संस्थानों में जाता है, जिसमें मदरसे भी शामिल हो सकते हैं, लेकिन यह केवल मुस्लिम संस्थाओं तक सीमित नहीं है।
विवाद की जड़: बाबा रामदेव ने धार्मिक भावनाओं से जुड़े नारेबाजी करते हुए पतंजलि को बढ़ावा दिया, जबकि रूह अफजा सदियों से धर्मनिरपेक्ष पेय रहा है।
सोशल मीडिया पर क्या चल रहा है?
SharbatJihad ट्रेंड कर रहा है, जिसमें एक तरफ रूह अफजा के समर्थक हैं तो दूसरी तरफ पतंजलि के प्रशंसक।
नेताओं और सेलिब्रिटीज की प्रतिक्रिया: कई लोगों ने बाबा रामदेव के बयान को "फूट डालो" रणनीति बताया है।
क्या आपने कभी रूह अफजा पिया है?
अगर हां, तो क्या आपको लगता है कि यह "जिहाद" का हिस्सा है? या फिर यह सिर्फ एक प्यारा पारंपरिक पेय है? कमेंट में अपनी राय दें!
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