Hazaribagh Attack Mystery: जंगल में मौत बनकर आया हाथियों का झुंड, कुटिया में सो रही बुजुर्ग महिला की कुचलकर हत्या
हजारीबाग के लौकुरा जंगल में महुआ चुनने गई बुजुर्ग महिला की कुटिया में सोते समय हाथियों के झुंड ने कुचलकर हत्या कर दी। फसलें भी रौंदी गईं, ग्रामीणों में आक्रोश।

हजारीबाग (झारखंड): लौकुरा जंगल में गुरुवार देर रात एक ऐसी घटना हुई जिसने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया। 71 वर्षीय रोहिणी देवी, जो जंगल में महुआ चुनने के लिए कुटिया बनाकर रहती थीं, उनकी उसी कुटिया में सोते वक्त हाथियों के झुंड ने उन्हें कुचलकर मार डाला। यह दर्दनाक हादसा करीब रात 12 बजे का बताया जा रहा है।
कुटिया में थी मौत की दस्तक
अंबेडकर मोहल्ला की निवासी रोहिणी देवी मजदूरी कर अपना जीवन यापन करती थीं। महुआ चुनना उनकी आमदनी का जरिया था। इसी कारण वे लौकुरा जंगल में कुटिया बनाकर पेड़ों के पास ही रुक जाती थीं। गुरुवार की रात भी वे खाना खाकर हमेशा की तरह सो गई थीं, लेकिन उन्हें क्या पता था कि उस रात जंगल में हाथियों की आहट मौत का पैगाम लेकर आएगी।
करीब 12 से अधिक हाथियों के झुंड ने अचानक कुटिया पर हमला बोल दिया, और वहीं सो रही रोहिणी देवी को कुचलकर मार डाला। साथ ही गेंहूं और जौ की फसल को भी पूरी तरह बर्बाद कर दिया।
सुबह टूटा मातम का सच
जब शुक्रवार सुबह अन्य ग्रामीण महुआ चुनने पहुंचे, तो उन्होंने कुटिया के पास रोहिणी देवी का शव देखा। यह दृश्य इतना भयावह था कि कुछ पल के लिए सब स्तब्ध रह गए। परिजनों को खबर दी गई, और पूरा गांव शोक में डूब गया।
इतिहास जो बार-बार दोहराया जा रहा है
हजारीबाग के बड़कागांव वन क्षेत्र की यह पहली घटना नहीं है। बीते एक दशक में कई बार हाथियों के झुंड ने गांवों में घुसकर लोगों की जान ली है। 2015 में भी इसी जंगल में एक किसान की जान गई थी, लेकिन सरकारी स्तर पर आज तक ठोस कदम नहीं उठाए गए।
वन क्षेत्र और ग्रामीण बस्तियों के बीच सीमाएं धुंधली होती जा रही हैं, और इसका खामियाजा अक्सर गरीबों को भुगतना पड़ता है।
गरीबी, लाचारी और अब मातम
रोहिणी देवी की चार बेटियां हैं, एक भी बेटा नहीं है। वे अत्यंत गरीब थीं और कभी मजदूरी, कभी महुआ बेचकर घर चलाती थीं। उनकी देखभाल उनकी नतनी रेखा कुमारी करती थी। अब न केवल परिवार बेसहारा है, बल्कि गांव भी गहरे सदमे में है।
ग्रामीणों की आवाज: मुआवजा और न्याय
घटना की सूचना मिलते ही वन विभाग के अधिकारी मौके पर पहुंचे, जिनमें फॉरेस्टर देवचंद महतो और फील्ड इंचार्ज नाजिर हुसैन अंसारी शामिल थे। ग्रामीणों ने वन विभाग से उचित मुआवजे की मांग की और कहा कि यदि मांगे पूरी नहीं हुईं, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।
कहां हैं हाथी अब?
अब सबसे बड़ा सवाल है — वो हाथियों का झुंड कहां गया? ग्रामीणों का मानना है कि हाथी अब भी लौकुरा जंगल में छिपे हो सकते हैं, और यदि समय पर कदम नहीं उठाया गया तो फिर कोई घटना घट सकती है।
जंगल का संतुलन या मानवीय लापरवाही?
यह सिर्फ एक हादसा नहीं, प्राकृतिक और मानवीय संतुलन के बिगड़ते रिश्ते की चेतावनी है। जब जंगलों से भोजन कम होता है, तो हाथी बस्तियों की ओर बढ़ते हैं। और जब सरकार समाधान नहीं देती, तो गरीबों की जान कीमत बन जाती है।
हजारीबाग के इस दर्दनाक हादसे ने फिर एक बार याद दिलाया है कि जंगल सिर्फ पेड़ों का नहीं, इंसानों की भी जिम्मेदारी है।
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