Golmuri Verdict: सड़क जाम मामले में भाजपा, झामुमो और आजसू नेता बरी
गोलमुरी सड़क जाम मामले में सभी आरोपी बाइज्जत बरी। कोर्ट ने सबूतों की कमी के चलते 2012 के इस केस में फैसला सुनाया। जानें पूरी कहानी।
Golmuri Verdict - 18 जनवरी 2025 को, गोलमुरी सड़क जाम से जुड़े 2012 के चर्चित मामले में भाजपा, झामुमो और आजसू के नेताओं को कोर्ट ने बाइज्जत बरी कर दिया। प्रथम श्रेणी न्यायालय 306 के न्यायाधीश अरविंद कुमार ने गवाहों की गैरमौजूदगी और साक्ष्यों की कमी को देखते हुए यह निर्णय सुनाया।
क्या था पूरा मामला?
2012 में गोलमुरी थाना क्षेत्र में एक वृद्ध महिला की मौत बड़े वाहन की चपेट में आने से हुई थी। इस घटना के बाद स्थानीय लोगों में भारी आक्रोश फैल गया। गुस्साई भीड़ ने वाहन में आग लगा दी, जिससे इलाके में तनावपूर्ण माहौल बन गया।
इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन ने भाजपा नेता सूर्यकांत झा, आजसू नेता अप्पू तिवारी, झामुमो नेत्री सविता सिंह, और महिला नेत्री उषा सिंह समेत अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं पर सड़क जाम और पुलिस कार्य में बाधा डालने का आरोप लगाकर केस दर्ज किया था।
कानूनी लड़ाई और न्यायालय का फैसला
13 साल तक चले इस मामले की सुनवाई के दौरान गवाहों की कमी और ठोस साक्ष्यों के अभाव ने केस को कमजोर कर दिया। अभियोजन पक्ष न्यायालय के समक्ष कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत करने में विफल रहा।
अधिवक्ता हरेंद्र बहादुर सिंह और अमित तिवारी ने बचाव पक्ष की ओर से निःशुल्क पैरवी करते हुए यह साबित किया कि आरोपित सामाजिक कार्यकर्ता निर्दोष हैं।
इस कानूनी लड़ाई में अधिवक्ताओं ने यह तर्क दिया कि:
- घटना के दौरान आरोपी शांति से वार्ता करने की कोशिश कर रहे थे।
- वाहन में आग लगाने की घटना भीड़ के आक्रोश का नतीजा थी, न कि सामाजिक कार्यकर्ताओं का कोई षड्यंत्र।
इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया।
नेताओं की प्रतिक्रिया
फैसले के बाद, सभी नेताओं ने न्यायपालिका का आभार व्यक्त किया। आजसू नेता अप्पू तिवारी ने कहा:
"यह फैसला जनहित और सत्य की जीत है। समाज सेवा के कार्यों में हम पीछे नहीं हटेंगे। न्यायपालिका ने सच्चाई को पहचाना है।"
भाजपा नेता सूर्यकांत झा और झामुमो नेत्री सविता सिंह ने भी खुशी जाहिर की और कहा कि यह फैसला उन सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए प्रेरणा है, जो जनहित में काम करते हैं।
निःशुल्क पैरवी बनी मिसाल
इस मामले की सबसे बड़ी खासियत थी कि अधिवक्ता हरेंद्र बहादुर सिंह और अमित तिवारी ने इसे निःशुल्क लड़कर एक मिसाल पेश की।
उन्होंने कहा:
"यह सिर्फ कानूनी लड़ाई नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक जिम्मेदारी भी थी। निर्दोष लोगों को न्याय दिलाना हमारा कर्तव्य है।"
ऐतिहासिक नजरिया: सड़क जाम और आंदोलन
भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक, सड़क जाम और जन आंदोलन सामाजिक अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने का एक माध्यम रहे हैं। हालांकि, भीड़ के गुस्से के कारण अक्सर निर्दोष लोग कानूनी परेशानियों में फंस जाते हैं। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ, लेकिन न्यायालय ने सच्चाई का साथ देकर सही मिसाल पेश की।
भविष्य की दिशा
इस फैसले ने न केवल आरोपित सामाजिक कार्यकर्ताओं को राहत दी, बल्कि यह संदेश भी दिया कि न्यायपालिका पर भरोसा बनाए रखना चाहिए। जनहित के कार्यों में जुड़ने वाले लोगों को चाहिए कि वे शांतिपूर्ण और कानूनी तरीके अपनाएं।
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