Dhanbad Notice Drama: कुष्ठ कॉलोनी के विस्थापन पर मचा हंगामा!
धनबाद में डोमगढ़ और BMP कुष्ठ कॉलोनी के लोगों को अचानक भूमि खाली करने का नोटिस मिला। क्या उन्हें पुनर्वास मिलेगा या वे बेघर हो जाएंगे? जानें पूरी खबर।
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धनबाद: डोमगढ़ कुष्ठ कॉलोनी और BMP कुष्ठ कॉलोनी के निवासियों को अचानक मिले "भूमि खाली करने" के नोटिस ने इलाके में हलचल मचा दी है। प्रशासन की इस कार्यवाही से सैकड़ों परिवार बेघर होने के कगार पर खड़े हैं। सवाल ये है कि क्या इन निवासियों को कोई विकल्प मिलेगा, या उन्हें जबरन हटाया जाएगा?
भूमि खाली करने के नोटिस से मचा हड़कंप
डोमगढ़ कुष्ठ कॉलोनी और BMP कुष्ठ कॉलोनी के निवासियों को हाल ही में प्रशासन से नोटिस मिला कि वे जल्द से जल्द अपनी जमीन खाली कर दें।
- डोमगढ़ कुष्ठ कॉलोनी: भारतीय खाद्य निगम (FCI) ने इस क्षेत्र के लोगों को जमीन खाली करने का निर्देश दिया है।
- BMP कुष्ठ कॉलोनी: रेलवे विभाग ने भी इसी तरह का नोटिस जारी किया, जिससे स्थानीय निवासी असमंजस में पड़ गए हैं।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे दशकों से इस इलाके में बसे हुए हैं और अब अचानक उन्हें उजाड़ने की तैयारी हो रही है।
प्रशासन तक पहुंची गुहार
कॉलोनी के निवासियों ने उपायुक्त (DC) और अनुमंडल पदाधिकारी (SDM) को आवेदन देकर अपनी समस्या बताई और न्याय की मांग की। उनका कहना है कि अगर उन्हें हटाया जाता है, तो उनके पास रहने के लिए कोई दूसरी जगह नहीं है।
इस मुद्दे को हल करने के लिए धनबाद नगर निगम के अधिकारियों से भी मुलाकात की गई, जहां प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाले घरों पर चर्चा हुई। सवाल ये उठता है कि क्या इन विस्थापितों को इस योजना का लाभ मिलेगा, या फिर ये सिर्फ सरकारी कागजों तक ही सीमित रह जाएगा?
ADM से चर्चा – कोई ठोस आश्वासन नहीं!
ADM से मुलाकात कर प्रभावित परिवारों की स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई। प्रशासन से मांग की गई कि विस्थापितों को पुनर्वास का विकल्प दिया जाए, लेकिन कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला।
APAL (Association of People Affected by Leprosy) के प्रतिनिधियों ने भी इस मुद्दे पर अधिकारियों से बात की और निवासियों के अधिकारों की रक्षा की मांग की।
क्या मिलेगा पीएम आवास योजना का लाभ?
धनबाद नगर निगम का दौरा कर झारखंड APAL टीम ने प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) के तहत दायर किए गए आवेदनों की समीक्षा की। अधिकारियों ने कहा कि आवेदन प्रक्रिया जारी है, लेकिन कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया कि इन विस्थापितों को आवास मिलेगा या नहीं।
इतिहास भी बताता है—कुष्ठ रोगियों को हमेशा किया गया उपेक्षित!
भारत में कुष्ठ रोग से ग्रसित लोगों को हमेशा समाज से अलग-थलग रखा गया है। ब्रिटिश शासन के समय भी इन्हें शहरों से दूर बस्तियों में रहने के लिए मजबूर किया जाता था। आज़ादी के बाद भी कुष्ठ रोगियों की बस्तियां बनती रहीं, लेकिन सरकारें उनके पुनर्वास पर ध्यान नहीं दे पाईं।
आगे क्या?
अब सवाल ये उठता है कि क्या प्रशासन कोई मानवीय निर्णय लेगा, या फिर ये लोग बिना किसी विकल्प के बेघर हो जाएंगे? APAL ने प्रशासन से समन्वय स्थापित करने की बात कही है, लेकिन असल सवाल यही है कि क्या सरकार सच में इन विस्थापित परिवारों की मदद करेगी?
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