Delhi Politics Drama: केजरीवाल की बेल पर ED का नया गेम! कोर्ट में चली बड़ी चाल
दिल्ली की राजनीति में फिर से हलचल, जब ईडी ने अरविंद केजरीवाल की बेल रद्द करने की योजना से खुद को अलग किया। हाई कोर्ट में हुई सुनवाई में सामने आए कई दिलचस्प मोड़, जानिए पूरा मामला।

दिल्ली की राजनीतिक गलियों में एक बार फिर गर्माहट लौट आई है, जहां अरविंद केजरीवाल की जमानत को लेकर ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) के नए रुख ने सबको चौंका दिया है। मनी लॉन्ड्रिंग केस में केजरीवाल को मिली अंतरिम जमानत पर अब एजेंसी की चुप्पी ने सवाल खड़े कर दिए हैं—क्या ईडी के इरादे बदल गए हैं या यह सिर्फ एक कानूनी रणनीति है?
ईडी ने क्यों लिया यू-टर्न?
दिल्ली हाईकोर्ट में सोमवार को हुई सुनवाई में ईडी के वकील ने स्पष्ट रूप से कहा कि फिलहाल एजेंसी के पास केजरीवाल की बेल रद्द कराने की कोई योजना नहीं है। यह बयान तब आया, जब आम धारणा थी कि ईडी इस बेल को चुनौती देने कोर्ट जाएगी।
दरअसल, मामला दिल्ली की विवादास्पद शराब नीति से जुड़ा है, जिसमें अरविंद केजरीवाल पर मनी लॉन्ड्रिंग के गंभीर आरोप लगे थे। ट्रायल कोर्ट ने उन्हें अंतरिम जमानत दी थी, लेकिन अब यह मामला कानूनी तकनीकी पेच में उलझ गया है। हाईकोर्ट ने इस मुद्दे को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है ताकि कानूनी सवालों पर विस्तार से चर्चा की जा सके।
सॉलीसिटर जनरल की आपत्ति
हालांकि, सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल एसवी राजू ने जोर दिया कि इस मामले की सुनवाई की जाए। उन्होंने ट्रायल कोर्ट के आदेश को “विकृत” बताते हुए तर्क दिया कि एजेंसी को ठीक से सुना ही नहीं गया। उनका कहना था कि बेल की रद्दीकरण की बात नहीं है, लेकिन उस आदेश को पलटना जरूरी है जो उनके हिसाब से एकतरफा था।
एसवी राजू का यह बयान एक बार फिर से ईडी की मंशा पर सवाल खड़े करता है—क्या यह सिर्फ एक “कानूनी लड़ाई” है या कोई राजनीतिक पटकथा भी इसमें शामिल है?
केजरीवाल के वकील का पलटवार
अरविंद केजरीवाल की ओर से पेश वकील ने मामले को “शैक्षणिक अभ्यास” बताया और कहा कि इसमें अब कुछ बचा ही नहीं है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की दी गई अंतरिम जमानत दरअसल एक नियमित बेल के बराबर है, और ट्रायल कोर्ट के आदेश में किसी प्रकार की दखल की कोई जरूरत नहीं।
उनका यह भी तर्क था कि इस मामले में अन्य सभी आरोपी पहले ही बेल पर हैं, ऐसे में सिर्फ केजरीवाल को अलग ट्रीटमेंट देना उचित नहीं होगा।
इतिहास क्या कहता है?
अरविंद केजरीवाल की राजनीति हमेशा से विवादों और जन समर्थन के दो ध्रुवों पर घूमती रही है। अन्ना आंदोलन से निकलकर दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने तक का सफर जितना प्रेरणादायक था, उतना ही उलझनों से भरा भी रहा है। शराब नीति घोटाले ने उनके राजनीतिक करियर को सबसे कठिन मोड़ पर ला खड़ा किया, जहां एक ओर उन्हें जन समर्थन मिला, तो दूसरी ओर केंद्रीय एजेंसियों का शिकंजा भी कसता गया।
यह पहला मौका नहीं है जब ईडी या सीबीआई ने आम आदमी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की हो, लेकिन केजरीवाल पर सीधा हमला दिल्ली की सत्ता की लड़ाई को नए आयाम देता है।
आगे क्या?
फिलहाल कोर्ट ने सुनवाई 30 जुलाई तक टाल दी है और कहा है कि इस दौरान किसी पक्ष को कोई नुकसान नहीं होगा। ईडी को भी कहा गया है कि अगली तारीख से पहले उचित निर्देश लें।
अब सवाल है—क्या ईडी सिर्फ कानूनी प्रक्रिया निभा रही है या राजनीतिक संकेतों के हिसाब से आगे बढ़ रही है? और सबसे बड़ा सवाल—क्या केजरीवाल इस बेल को लेकर राहत की सांस ले सकते हैं, या यह सन्नाटा किसी बड़े तूफान से पहले की खामोशी है?
दिल्ली की जनता और राजनीतिक विश्लेषकों की निगाहें अब जुलाई की अगली सुनवाई पर टिकी हैं। एक ओर कानून का दांव है, तो दूसरी ओर राजनीति की चालबाज़ी—फैसला अब अदालत के पाले में है।
क्या आप मानते हैं कि इस केस में राजनीति ज़्यादा है या कानून?
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