Dhanbad Clashes: कांग्रेस के प्रदर्शन में मचा बवाल, मीडियाकर्मियों पर टूट पड़ा नेताओं का गुट
धनबाद में ईडी के खिलाफ कांग्रेस के प्रदर्शन के दौरान दो गुटों में भिड़ंत, मीडियाकर्मियों पर हमला, कैमरे तोड़े और मोबाइल छीने। जानें पूरी घटना और पीछे की राजनीतिक कहानी।

धनबाद में बुधवार की शाम को जो हुआ, वह न सिर्फ पत्रकारिता पर हमला था, बल्कि कांग्रेस के आंतरिक कलह और सियासी असंतुलन का एक खतरनाक चेहरा भी सामने लाया। नेशनल हेराल्ड प्रकरण को लेकर जब धनबाद जिला कांग्रेस कमेटी ने ईडी के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किया, तो किसी को अंदाजा नहीं था कि यह विरोध प्रदर्शन खुद पार्टी के भीतर फूट का मैदान बन जाएगा।
20 मिनट की अराजकता: कोई नहीं रोक सका ‘अपनों’ को
शाम के करीब चार बजे रणधीर वर्मा चौक से कांग्रेस का जुलूस निकला। प्रदर्शन आयकर भवन के सामने था, लेकिन जैसे ही भीड़ वहां से वापस लौटी, रणधीर वर्मा चौक पर माहौल गरमा गया। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष रशीद रजा अंसारी के बेटे और भाइयों का पार्टी के ही एक अन्य कार्यकर्ता इनामुल हक से विवाद हुआ। पहले तीखी बहस, फिर गाली-गलौज और देखते ही देखते मामला हाथापाई तक पहुंच गया।
इसी दौरान कुछ मीडियाकर्मी वहां पहुंचे और पूरे घटनाक्रम को कवर करने लगे। लेकिन ये कवरेज भारी पड़ गई।
पत्रकारों पर टूटा कांग्रेस कार्यकर्ताओं का कहर
जैसे ही कैमरे ऑन हुए, रशीद रजा अंसारी के बेटे कैफ रजा अंसारी, सैफ रजा अंसारी, और उनके भाई मनु व साजिद ने आपत्ति जताते हुए मीडियाकर्मियों पर हमला बोल दिया। कैमरे तोड़ दिए गए, मोबाइल छीने गए, और जब पत्रकार जान बचाने के लिए पास के प्रेस क्लब की ओर भागे, तब भी हमलावर पीछे हटे नहीं। प्रेस क्लब में घुसकर भी मीडियाकर्मियों को पीटा गया। एक फोटोग्राफर लहूलुहान हो गया, और कई पत्रकार मानसिक रूप से भी आहत हुए।
प्रेस की स्वतंत्रता पर सीधा हमला?
यह पहली बार नहीं है जब किसी राजनीतिक गतिविधि के दौरान मीडियाकर्मियों को निशाना बनाया गया हो। लेकिन सवाल यह है कि जब यह हमला खुद विपक्षी पार्टी के कार्यक्रम में होता है, जो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करती है, तो यह और भी गंभीर बन जाता है।
प्रेस की आज़ादी पर इस तरह का हमला न केवल पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कांग्रेस जैसे बड़े दल में भी नेतृत्व और अनुशासन की भारी कमी है।
क्या बोले आरोपी नेता?
रशीद रजा अंसारी, जिनके परिवार पर हमला करने का आरोप है, ने घटना के बाद सफाई दी कि,
"मेरे पुत्रों की लड़ाई पत्रकारों से नहीं थी, बल्कि इनामुल हक से थी। मीडियाकर्मियों को वे पहचानते भी नहीं थे। यह एक गलतफहमी थी, जिसके लिए मैं खेद प्रकट करता हूं।"
वहीं जिला अध्यक्ष संतोष सिंह ने खुद को इस घटना से अलग करते हुए कहा कि वह मौके पर मौजूद नहीं थे और उन्हें घटना की जानकारी बाद में मिली।
पुलिस पहुंची, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी
घटना की सूचना पाकर पुलिस तो पहुंची, लेकिन तब तक हमलावर वहां से फरार हो चुके थे। कुछ पत्रकारों के मोबाइल लौटाए जरूर गए, लेकिन सवाल यह है कि क्या सिर्फ खेद प्रकट कर देने से लोकतंत्र की इस चोट को भरा जा सकता है?
राजनीति के अंधेरे में पत्रकारिता की रोशनी
धनबाद की यह घटना एक बड़ी चेतावनी है – न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के लिए कि लोकतंत्र की चौथी सत्ता पर हमला किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता।
जब पार्टी के कार्यकर्ता आपस में ही भिड़ने लगें और मीडियाकर्मी भी उनकी हिंसा के शिकार बनें, तो यह सवाल खड़ा करता है – क्या अब प्रदर्शन भी सुरक्षित नहीं?
यह घटना बताती है कि राजनीति अब एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी है, जहां मुद्दे से ज्यादा महत्त्व ‘गुटबाज़ी’ और ‘आंतरिक अहंकार’ को दिया जा रहा है। धनबाद की यह झड़प अब सिर्फ एक ‘समाचार’ नहीं, बल्कि एक राजनीतिक चेतावनी है।
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