Dhalbhumgarh Ambulance Delay: तालाब में डूबने से सांसें थमीं, एंबुलेंस के इंतजार में रही जान की घड़ी!

धालभूमगढ़ के भालकी निवासी नगेन सामाद तालाब में डूबने से घायल हुए, लेकिन एंबुलेंस के अभाव में समय पर इलाज नहीं मिल सका। पढ़ें पूरी खबर।

Jan 4, 2025 - 10:55
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Dhalbhumgarh Ambulance Delay: तालाब में डूबने से सांसें थमीं, एंबुलेंस के इंतजार में रही जान की घड़ी!
Dhalbhumgarh Ambulance Delay: तालाब में डूबने से सांसें थमीं, एंबुलेंस के इंतजार में रही जान की घड़ी!

धालभूमगढ़, 4a जनवरी 2025: धालभूमगढ़ के गुड़ाबांदा प्रखंड के भालकी गांव में नगेन सामाद (56) शुक्रवार को एक सरकारी तालाब में नहाने के लिए गए थे। लेकिन तालाब में नहाने के दौरान अचानक उनके सिर में चक्कर आया और वह पानी में डूबने लगे। जैसे ही स्थानीय लोगों ने देखा, उन्होंने तुरंत उन्हें तालाब से बाहर निकाला। इसके बाद परिजनों ने उन्हें तुरंत नरसिंहगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचाया। लेकिन, उनकी हालत गंभीर थी और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी।

स्वास्थ्य केंद्र में राहत, लेकिन एंबुलेंस की देरी से संकट बढ़ा

नगेन सामाद के पेट से पानी नहीं निकल पा रहा था, और वह काफी देर तक बेहोश रहे। डॉ. अर्चना तिग्गा ने प्राथमिक इलाज शुरू करते हुए उन्हें ऑक्सीजन दी और एमजीएम अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। यह सब ठीक था, लेकिन असली संकट तब शुरू हुआ जब एंबुलेंस की व्यवस्था में देरी हो गई।

परिजनों ने 108 एंबुलेंस को बार-बार कॉल किया, लेकिन उन्हें केवल आश्वासन मिलता रहा कि एंबुलेंस रास्ते में है। दो घंटे तक ऑक्सीजन युक्त एंबुलेंस का इंतजार किया गया, लेकिन वह नहीं आई। इस पर पूर्व जिप सदस्य आरती सामाद ने नाराजगी जताते हुए उच्च अधिकारियों को इस देरी की जानकारी दी। इसके बाद, आरती सामाद के प्रयासों से एक निजी वाहन और ऑक्सीजन सिलेंडर का इंतजाम किया गया, और फिर नगेन सामाद को झाड़ग्राम भेजा गया।

प्रशासन से सवाल: क्या इमरजेंसी सेवा का ढांचा सही है?

108 एंबुलेंस सेवा के संचालन पर सवाल उठने लगे हैं, खासकर जब जरूरत के समय यह सेवा उपलब्ध नहीं हो पाती। डॉ. गोपीनाथ महाली, प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी, धालभूमगढ़ ने इस पर दुख जताया। उन्होंने कहा, "हमारी 108 एंबुलेंस सेवा हमारे नियंत्रण में नहीं है, यह रांची से संचालित होती है। हम चाहते हुए भी इस पर कोई कदम नहीं उठा पाते हैं। हमें भी खेद है कि मरीज को समय पर एंबुलेंस नहीं मिली।"

यह घटना एक गंभीर स्वास्थ्य संकट को उजागर करती है, जहां प्रशासन और आपातकालीन सेवाओं के बीच समन्वय की कमी दिखती है। यह सवाल खड़ा करती है कि जब मानव जीवन की बात हो, तो स्वास्थ्य सुविधाओं की कार्यक्षमता और उपलब्धता को लेकर गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए।

क्या था पिछला अनुभव?

यह कोई नई बात नहीं है कि झारखंड के दूरदराज इलाकों में आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं में लगातार दिक्कतें आती हैं। पहले भी कई बार ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जहां मरीजों को समय पर इलाज और एंबुलेंस नहीं मिल पाई। स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय प्रशासन को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।

मौजूदा स्थिति में, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और समुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों के बीच समन्वय और संसाधनों की उपलब्धता पर जोर देना आवश्यक है, ताकि किसी भी आपातकाल में मरीज को त्वरित चिकित्सा सुविधा मिल सके।

क्या सुधार की दिशा में उठाए जाएंगे कदम?

अब यह देखना होगा कि क्या स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन इस घटना के बाद कदम उठाते हैं और क्या आपातकालीन सेवा को और बेहतर बनाने के लिए नई रणनीतियाँ बनाई जाती हैं। क्या नगेन सामाद की यह घटना स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार का कारण बनेगी या यह सिर्फ एक और दुःखद घटना होगी?

आपका इस पर क्या कहना है? क्या आपको लगता है कि एंबुलेंस और स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर ऐसे सुधार जरूरी हैं? हमारी राय में, अगर इस प्रकार की घटनाओं को जल्द से जल्द रोका नहीं गया, तो यह न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोरी को उजागर करेगा, बल्कि समाज की स्वास्थ्य सुरक्षा पर भी सवाल उठाएगा।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।