Betla Attack: बंदर के हमले में सब्जी विक्रेता घायल, वन-प्रबंधन से मदद की गुहार
बेतला में बंदर का हमला! सब्जी विक्रेता उमेश गोस्वामी पर हुए हमले ने बंदरों के आतंक की समस्या को उजागर किया। जानें पूरी घटना और वन विभाग की प्रतिक्रिया।
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बेतला: बेतला के कैंटीन परिसर में बुधवार की देर शाम एक बंदर के हमले से सब्जी विक्रेता उमेश गोस्वामी गंभीर रूप से घायल हो गए। वह सब्जी पहुंचाने के लिए अपनी बाइक से कैंटीन जा रहे थे, जब यह घटना हुई। यह मामला न केवल स्थानीय लोगों के लिए चिंता का विषय है, बल्कि बेतला में बढ़ते बंदरों के आतंक की ओर भी इशारा करता है।
हमले की घटना और उपचार
उमेश गोस्वामी, जो कुटमू के निवासी हैं, बेतला कैंटीन में सब्जी की डिलीवरी करने पहुंचे थे। तभी एक बंदर ने उन पर हमला कर दिया, जिससे वह बुरी तरह घायल हो गए। मौके पर मौजूद उनके सहयोगी अखिलेश विश्वकर्मा और विष्णु प्रसाद ने तुरंत उन्हें बरवाडीह सीएचसी (सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र) पहुंचाया।
डॉ. जयंत लकड़ा, जो सीएचसी प्रभारी हैं, ने बताया कि उमेश की हालत फिलहाल खतरे से बाहर है, लेकिन उन्हें पूरी तरह स्वस्थ होने में समय लगेगा।
वन-प्रबंधन से मदद की अपील
घटना के बाद घायल उमेश ने बेतला वन-प्रबंधन से इलाज में सहायता की गुहार लगाई है। उन्होंने कहा कि वन्यजीवों के कारण उनके काम पर भी असर पड़ रहा है, और प्रशासन को इस समस्या का समाधान करना चाहिए।
बंदरों का बढ़ता आतंक
बेतला नेशनल पार्क और उसके आस-पास के इलाकों में इन दिनों बंदरों का आतंक बढ़ गया है।
- पर्यटकों को अक्सर बंदरों से अपना सामान बचाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
- स्थानीय दुकानदार और निवासी भी इनसे परेशान हैं, क्योंकि बंदर फसलों और सामान को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
वनपाल सह कॉम्प्लेक्स प्रभारी शशांक शेखर पांडेय ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए लोगों से अपील की कि वे बंदरों या अन्य वन्यजीवों के साथ छेड़छाड़ न करें।
इतिहास में झांकें: बेतला का वन्यजीवन और चुनौतियां
बेतला नेशनल पार्क, जो पलामू टाइगर रिजर्व का हिस्सा है, अपनी जैव विविधता और वन्यजीवन के लिए प्रसिद्ध है।
- 1970 के दशक में स्थापित यह पार्क पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है।
- हाल के वर्षों में, वन्यजीवों और इंसानों के बीच बढ़ते टकराव ने चिंता बढ़ा दी है।
- बंदरों के अलावा, हाथी और अन्य जानवरों के हमलों की घटनाएं भी सामने आई हैं।
वन्यजीव संरक्षण के विशेषज्ञों का मानना है कि बंदरों के प्राकृतिक आवासों में कमी और पर्यटकों द्वारा खाना खिलाने की आदत ने उनकी आक्रामकता को बढ़ावा दिया है।
वन विभाग की योजनाएं और जिम्मेदारी
वन विभाग को इस तरह की घटनाओं से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।
- बंदरों को पकड़कर रिहायशी इलाकों से दूर जंगलों में छोड़ने की योजना बनाई जा सकती है।
- पर्यटकों और स्थानीय निवासियों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाना चाहिए।
- बंदरों के हमले से बचाव के लिए सुरक्षा उपाय किए जाने चाहिए।
स्थानीय लोगों की परेशानी
बेतला और आसपास के इलाकों में लोग अब अपने रोजमर्रा के कामों को करने में भी डर महसूस कर रहे हैं। कुटमू के निवासी सत्यनारायण सिंह ने कहा, "बंदरों के आतंक के कारण बच्चे और महिलाएं अकेले बाहर जाने से डरते हैं।"
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, बंदरों के व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए खाद्य प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण जैसे कदम उठाने की आवश्यकता है।
ग्रामीणों और पर्यटकों की उम्मीदें
बेतला के स्थानीय निवासियों और पर्यटकों को उम्मीद है कि वन विभाग जल्द ही बंदरों के बढ़ते खतरे को नियंत्रित करने के लिए ठोस उपाय करेगा।
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