Baharagora: स्कूल तैयार पर पढ़ाई अधूरी, सरकार की उदासीनता पर सवाल!

बहारागोड़ा के एकलव्य मॉडल बालिका विद्यालय में इस साल भी पढ़ाई नहीं शुरू होगी। जानिए, क्यों बुनियादी सुविधाओं की कमी और सरकारी उदासीनता ने इस स्कूल को ठप कर रखा है।

Nov 28, 2024 - 09:23
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Baharagora: स्कूल तैयार पर पढ़ाई अधूरी, सरकार की उदासीनता पर सवाल!

जमशेदपुर, 28 नवंबर 2024: झारखंड के बहारागोड़ा में स्थित एकलव्य मॉडल बालिका विद्यालय में इस साल भी पढ़ाई शुरू नहीं हो पाएगी। 12 करोड़ रुपये की लागत से तैयार इस भव्य विद्यालय भवन में पिछले तीन सालों से कोई सत्र शुरू नहीं हो सका है। प्रशासनिक प्रयासों के बावजूद सरकार की उदासीनता और बुनियादी सुविधाओं की कमी ने इसे एक और वर्ष के लिए बंद कर दिया है।

तीन साल से इंतजार पर क्यों नहीं शुरू हुई पढ़ाई?

एकलव्य मॉडल बालिका विद्यालय को झारखंड सरकार ने आदिवासी लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए बनाया था। हालांकि, पिछले तीन सालों से यह स्कूल संचालन का इंतजार कर रहा है।

इस साल उम्मीद थी कि 60 लड़कियों का चयन और 9 शिक्षकों की नियुक्ति के बाद स्कूल सत्र शुरू होगा। लेकिन बिजली, सुरक्षा, फर्नीचर और अन्य बुनियादी जरूरतों की कमी ने इसे फिर से अधर में लटका दिया।

बुनियादी सुविधाओं की कमी

विद्यालय में पढ़ाई शुरू करने के लिए निम्नलिखित समस्याएं सामने आईं:

  1. बिजली की व्यवस्था नहीं: स्कूल बहारागोड़ा से 4 किलोमीटर दूर एक सुनसान इलाके में है। यहां बिजली के वैकल्पिक साधन, जैसे जनरेटर, की मांग की गई थी, लेकिन अब तक आवंटन नहीं हो सका।
  2. सुरक्षा का अभाव: स्कूल की चारदीवारी नहीं होने के कारण लड़कियों की सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं।
  3. फर्नीचर की कमी: हालांकि आंशिक रूप से फर्नीचर की व्यवस्था की गई, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है।
  4. सरकारी समर्थन का अभाव: हर साल नए प्रस्ताव भेजे गए, लेकिन सरकार से फंडिंग और मंजूरी नहीं मिल पाई।

इतिहास में एकलव्य विद्यालय की कहानी

भारत में एकलव्य मॉडल स्कूल की शुरुआत 1997-98 में हुई थी। इसका उद्देश्य आदिवासी क्षेत्रों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देना है। यह योजना आदिवासी मंत्रालय के तहत चलती है, लेकिन झारखंड जैसे राज्यों में कई बार इसे सरकारी उदासीनता का सामना करना पड़ता है।

झारखंड में एकलव्य स्कूल ग्रामीण और आदिवासी लड़कियों की शिक्षा का केंद्र बन सकते हैं। लेकिन फंडिंग और समय पर संचालन के अभाव में यह योजना अपने उद्देश्यों से भटक रही है।

एनजीओ मॉडल और सरकारी असफलता

पहले राज्य सरकार ने इस स्कूल को एनजीओ के माध्यम से संचालित करने की योजना बनाई थी। लेकिन यह योजना कागजों में ही सीमित रह गई। सरकारी उदासीनता और फंड की कमी ने इसे ठप कर दिया।

स्थानीय लोग क्या कहते हैं?

बहारागोड़ा के निवासियों का कहना है कि स्कूल का निर्माण उनकी आशाओं का केंद्र था। लोगों को उम्मीद थी कि यह आदिवासी लड़कियों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर खोलेगा। लेकिन आज यह स्कूल एक खाली इमारत बनकर रह गया है।

स्थानीय समाजसेवी किशोर महतो का कहना है, “अगर सरकार इन मुद्दों पर ध्यान नहीं देगी, तो यह परियोजना पूरी तरह विफल हो जाएगी। यह केवल पैसे और समय की बर्बादी है।”

आगे क्या?

इस विद्यालय को शुरू करने के लिए राज्य सरकार को तुरंत बुनियादी सुविधाओं पर ध्यान देना होगा।

  1. बिजली और सुरक्षा के लिए वैकल्पिक साधनों की व्यवस्था करनी होगी।
  2. पर्याप्त फर्नीचर और अन्य संसाधनों का प्रावधान करना होगा।
  3. स्थानीय एनजीओ या निजी भागीदारी के माध्यम से संचालन की प्रक्रिया तेज करनी होगी।

शिक्षा का अधिकार या उपेक्षा का प्रमाण?

भारत में शिक्षा को मूल अधिकार माना गया है। लेकिन बहारागोड़ा का यह विद्यालय सरकार की उदासीनता का प्रतीक बन गया है। क्या आदिवासी लड़कियों की शिक्षा केवल सरकारी योजनाओं का दिखावा बनकर रह जाएगी, या इसे सच में अमल में लाया जाएगा?

इस सवाल का जवाब सरकार और प्रशासन को जल्द ही देना होगा।

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।