Singhbhum Violence: मंदिर के पास मांस मिलते ही भड़की भीड़, NH-18 जाम!
धालभूमगढ़ के हनुमान मंदिर में दोबारा मांस मिलने की घटना से फैला तनाव। NH-18 पर टायर जलाकर प्रदर्शन, “जय श्रीराम” के नारों से गूंजा इलाका। जांच रिपोर्ट के इंतज़ार में गुस्से में जनता।

पूर्वी सिंहभूम, झारखंड के धालभूमगढ़ प्रखंड के नरसिंहगढ़ स्थित हनुमान मंदिर के पास एक बार फिर सांप्रदायिक तनाव की चिंगारी भड़क उठी है। महावीरी झंडा के पास कथित रूप से मांस फेंके जाने और मंदिर की घंटी समेत धार्मिक वस्तुएं गायब होने की खबर से क्षेत्र में आक्रोश का ज्वालामुखी फूट पड़ा।
गुस्साए स्थानीय लोगों ने एनएच-18 (नेशनल हाइवे 18) को जाम कर टायर जलाकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। नारे गूंजे – “जय श्री राम”, और पूरे इलाके में हिंदू संगठनों और ग्रामीणों की भीड़ उमड़ पड़ी।
इतिहास दोहरा रहा है खुद को?
ये कोई पहली बार नहीं है जब इस मंदिर को निशाना बनाया गया हो। 17 फरवरी 2024 को भी इसी मंदिर में प्लास्टिक में पैक मांस मिलने की खबर ने इलाके को हिला दिया था।
लेकिन हैरानी की बात ये है कि उस घटना की जांच रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई। एक साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है और प्रशासन की चुप्पी ने लोगों के सब्र को तोड़ दिया है।
मंदिर और मांस: आस्था पर हमला या साजिश?
हनुमान मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि धालभूमगढ़ के हजारों ग्रामीणों की सांस्कृतिक पहचान भी है। महावीरी झंडा के पास मांस मिलने की घटना को ग्रामीण "सोची-समझी साजिश" बता रहे हैं।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि कुछ असामाजिक तत्व इलाके का माहौल खराब करने की कोशिश में लगे हैं, और बार-बार मंदिर परिसर को निशाना बना रहे हैं।
NH-18 बना विरोध की रणभूमि
जैसे ही मांस मिलने की खबर फैली, सैकड़ों लोग सड़क पर उतर आए। गुस्साई भीड़ ने नेशनल हाइवे 18 को पूरी तरह जाम कर दिया। टायर जलाए गए, नारेबाजी हुई, और पुलिस प्रशासन को बार-बार हस्तक्षेप करना पड़ा।
प्रशासन ने भीड़ को समझाने की कोशिश की, लेकिन नतीजा नकारात्मक रहा। स्थानीय लोग साफ कह रहे हैं –
"जब तक जांच रिपोर्ट नहीं आएगी और दोषियों की गिरफ्तारी नहीं होगी, आंदोलन जारी रहेगा।"
पुलिस प्रशासन के हाथ-पैर फूले
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन के आला अधिकारी मौके के लिए रवाना हो गए, लेकिन जाम की वजह से उन्हें भी मौके तक पहुंचने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
प्रशासन की ओर से शांति बनाए रखने की अपील की जा रही है, लेकिन लोगों की नाराजगी बढ़ती ही जा रही है।
जांच या जुमला?
2024 की घटना के बाद प्रशासन ने जांच का भरोसा दिलाया था, लेकिन एक साल बाद भी ना तो कोई चार्जशीट, और ना ही कोई ठोस कदम। यही वजह है कि अब लोगों का सरकार और सिस्टम से भरोसा उठता जा रहा है।
स्थानीय निवासी रवि महतो कहते हैं,
“जब पहली बार घटना हुई तो हम शांत थे। लेकिन अब बार-बार वही चीज़ हो रही है, इसका मतलब है कि कोई हमारी आस्था को चुनौती दे रहा है।”
धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर सवाल
ये घटना सिर्फ एक मंदिर की नहीं, बल्कि देशभर में धार्मिक स्थलों की सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा करती है। क्या अब श्रद्धा के केंद्र भी सुरक्षित नहीं रह गए? क्या प्रशासनिक चुप्पी ही अब नया न्याय बन गई है?
क्या कहता है इतिहास?
झारखंड के आदिवासी और गैर-आदिवासी इलाकों में सांप्रदायिक घटनाएं पहले भी सामने आती रही हैं। लेकिन धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली घटनाएं जब प्रतिक्रिया के रूप में हिंसा और विरोध में बदलती हैं, तो पूरा तंत्र सवालों के घेरे में आ जाता है।
अब आगे क्या?
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प्रशासन ने शांति समिति की बैठक बुलाने का निर्णय लिया है।
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सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है।
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स्थानीय जनप्रतिनिधि भी मौके पर पहुंच रहे हैं।
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लेकिन क्या इससे लोगों का गुस्सा शांत होगा?
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