Seraikela Struggle: अनाथ बच्चे को प्रशासन की स्पॉन्सरशिप योजना का इंतजार, तीन साल से आश्वासन अधूरा

सरायकेला के मुरुमडीह गांव में एक 11 वर्षीय अनाथ बालक आज भी सरकारी स्पॉन्सरशिप योजना और आवास के लिए तरस रहा है। जानिए इस दर्दनाक कहानी के पीछे प्रशासन की लापरवाही।

Dec 19, 2024 - 14:15
Dec 19, 2024 - 16:25
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Seraikela Struggle: अनाथ बच्चे को प्रशासन की स्पॉन्सरशिप योजना का इंतजार, तीन साल से आश्वासन अधूरा
Seraikela Struggle: अनाथ बच्चे को प्रशासन की स्पॉन्सरशिप योजना का इंतजार, तीन साल से आश्वासन अधूरा

सरायकेला जिले के राजनगर प्रखंड के मुरुमडीह गांव का 11 वर्षीय अनाथ बालक पिछले तीन वर्षों से सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए संघर्ष कर रहा है। उसकी कहानी प्रशासनिक लापरवाही का ऐसा उदाहरण है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सरकारी योजनाएं केवल कागजों तक सीमित हैं?

कोरोना की त्रासदी ने छीना परिवार

17 जुलाई 2021 का वह काला दिन, जब कोरोना महामारी ने इस बालक के पिता की जान ले ली। उस समय वह और उसकी दो बहनें अनाथ हो गए। इन बच्चों की मां का देहांत पांच साल पहले ही हो चुका था। परिवार की इस त्रासदी ने पूरे गांव को झकझोर कर रख दिया था।

उस समय मीडिया और अखबारों ने इस दर्दनाक खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। तत्कालीन जिला उपायुक्त अरवा राजकमल ने बच्चों की मदद के लिए पहल की और प्रशासन की टीम को गांव भेजा गया।

प्रशासनिक वादे और कागजी कार्रवाई

प्रशासन की टीम ने उस समय बच्चों को सूखा राशन और अन्य मदद का आश्वासन दिया था। बच्चों के लिए पीएम आवास योजना के तहत घर बनाने की बात कही गई। स्पॉन्सरशिप योजना के तहत हर महीने ₹2000 की सहायता राशि देने का वादा भी किया गया।

टीम ने चाइल्ड वेलफेयर स्कीम के तहत सर्टिफिकेट भी जारी किया। लेकिन तीन साल बाद भी न तो बालक को ₹2000 की सहायता राशि मिली, न ही आवास निर्माण शुरू हुआ। राशन कार्ड तक नहीं बना।

पड़ोसी बना फरिश्ता, लेकिन सरकार नाकाम

इन बच्चों के पड़ोसी प्रमोद कुमार ने मानवता का परिचय देते हुए तीनों बच्चों की देखभाल की। उन्होंने दो बहनों की शादी भी करवाई। लेकिन 11 वर्षीय बालक अब भी प्रशासन की मदद का इंतजार कर रहा है।

प्रमोद कुमार का कहना है, "सरकार ने जो वादे किए थे, वे आज तक पूरे नहीं हुए। इस मासूम को सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं मिला।"

सरकारी योजनाओं की हकीकत

झारखंड सरकार की स्पॉन्सरशिप योजना का उद्देश्य अनाथ बच्चों की आर्थिक मदद करना है। इस योजना के तहत हर महीने ₹2000 की राशि दी जाती है। लेकिन मुरुमडीह के इस बच्चे की कहानी यह बताती है कि यह योजना केवल फाइलों में चल रही है।

अतीत में भी झारखंड में सरकारी योजनाओं की लापरवाही के कई मामले सामने आ चुके हैं। प्रशासन की धीमी कार्यशैली और भ्रष्टाचार ने न जाने कितने गरीब और जरूरतमंदों को उनके हक से वंचित रखा है।

तीन साल बाद भी कोई पहल नहीं

पिछले तीन वर्षों में न तो जिला प्रशासन ने इस बालक की सुध ली, न ही प्रखंड अधिकारियों ने। सवाल यह है कि जिन सरकारी योजनाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी प्रशासन की है, वह इस मामले में क्यों नाकाम रहा?

क्या कहता है प्रशासन?

स्थानीय अधिकारियों से इस बारे में पूछे जाने पर जवाब मिलता है कि "प्रक्रिया चल रही है।" लेकिन तीन साल का इंतजार यह दिखाने के लिए काफी है कि यह प्रक्रिया कितनी धीमी और लापरवाह है।

इतिहास से सबक

झारखंड में सरकारी योजनाओं की लापरवाही का इतिहास पुराना है। चाहे वह रोजगार गारंटी योजना हो, या राशन वितरण। प्रशासन की उदासीनता ने हर बार गरीब और वंचितों को धोखा दिया है।

2008 में एक अन्य मामले में भी ऐसे ही एक अनाथ बच्चे को योजनाओं का लाभ पाने के लिए संघर्ष करना पड़ा था। यह दिखाता है कि झारखंड की व्यवस्था में सुधार की कितनी जरूरत है।

प्रशासन के लिए चुनौती

सरायकेला का यह मामला केवल एक बच्चे की कहानी नहीं है। यह सवाल उठाता है कि क्या हमारी सरकारें और प्रशासन सच में जरूरतमंदों की मदद के लिए तैयार हैं?

सरकार और प्रशासन को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए। बालक को उसका हक दिलाने के साथ-साथ यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

मुरुमडीह गांव का यह बालक एक सवाल बनकर खड़ा है: क्या सरकारी योजनाएं वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंच रही हैं? यह समय है, जब प्रशासन को अपने वादे पूरे करने होंगे और मासूम के भविष्य को संवारने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।