Saraikela Awareness: ‘डायन’ के नाम पर प्रताड़ना झेल चुकीं छुटनी महतो ने दिया बड़ा संदेश!
झारखंड की पद्मश्री छुटनी महतो, जिन्हें डायन बताकर समाज से निकाल दिया गया था, अब इस कुरीति के खिलाफ जंग लड़ रही हैं। जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी।
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सरायकेला: झारखंड के सरायकेला-खरसावां जिले में एक ऐसी कहानी लिखी गई है, जो समाज की सच्चाई को उजागर करती है। गम्हरिया प्रखंड के जयकान पंचायत भवन सचिवालय में बुधवार को डायन प्रथा उन्मूलन कार्यक्रम आयोजित किया गया, जहां समाज की इस कुरीति के खिलाफ संघर्ष करने वाली पद्मश्री छुटनी महतो ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। यह वही पंचायत है, जहां से कभी उन्हें डायन करार देकर निर्वासित कर दिया गया था।
डायन प्रथा के खिलाफ बुलंद हुई आवाज
कार्यक्रम में मौजूद ग्रामीणों को डायन प्रथा प्रतिषेध अधिनियम 2001 की जानकारी दी गई। सीडीपीओ (बाल विकास परियोजना पदाधिकारी) ने बताया कि छुटनी महतो ने अपने जीवनभर इस कुप्रथा के खिलाफ संघर्ष किया है और आज भी जहां कहीं भी उन्हें ऐसी घटनाओं की खबर मिलती है, वे आगे बढ़कर न्याय की लड़ाई लड़ती हैं।
छुटनी महतो ने ग्रामीणों को बताया कि डायन प्रथा केवल अंधविश्वास नहीं, बल्कि महिलाओं के खिलाफ एक सामाजिक अपराध है। उन्होंने जागरूकता को सबसे बड़ा हथियार बताया और कहा कि इसके खिलाफ कानून का सहारा लिया जा सकता है।
छुटनी महतो की संघर्षगाथा: अंधविश्वास के खिलाफ एक जंग
छुटनी महतो की जिंदगी एक मिसाल है। कभी अंधविश्वास की बलि चढ़ाकर समाज से बहिष्कृत कर दी गईं छुटनी महतो ने अपने अपमान को ताकत बना लिया और इस सामाजिक कुरीति के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। झारखंड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में डायन प्रथा की गहरी जड़ें हैं, जहां जादू-टोना के नाम पर महिलाओं को प्रताड़ित किया जाता है।
छुटनी महतो पर 1995 में डायन होने का आरोप लगा और उन्हें गांव से निकाल दिया गया। समाज से बहिष्कृत होने के बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी। अपनी जैसी अन्य पीड़ित महिलाओं की मदद करने के लिए उन्होंने अभियान शुरू किया, जिसके कारण उन्हें 2021 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
डायन प्रथा: समाज में कब तक रहेगा यह अभिशाप?
झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में डायन प्रथा के मामलों की संख्या आज भी चिंताजनक है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों के अनुसार, हर साल सैकड़ों महिलाएं डायन बताकर प्रताड़ित की जाती हैं और कई मामलों में उनकी हत्या तक कर दी जाती है।
डायन प्रथा का सबसे बड़ा कारण अंधविश्वास, शिक्षा की कमी और जागरूकता का अभाव है। छुटनी महतो ने ग्रामीणों से अपील की कि वे डायन प्रथा के खिलाफ एकजुट हों और समाज में बदलाव लाने के लिए पहल करें। उन्होंने कहा कि यदि किसी को इस तरह की प्रताड़ना दी जाती है, तो उसे तुरंत प्रशासन और कानून की मदद लेनी चाहिए।
अब आगे क्या?
सरकार और सामाजिक संगठनों की कोशिशों के बावजूद, डायन प्रथा के मामले पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। छुटनी महतो जैसी महिलाएं आज भी इस प्रथा को जड़ से मिटाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। इस कार्यक्रम का मकसद भी यही था कि समाज में जागरूकता बढ़े और महिलाएं खुद को असहाय न समझें।
अब सवाल यह है कि क्या हम इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए आगे आएंगे? क्या ग्रामीण समाज इन अंधविश्वासों को छोड़कर एक नई सोच अपनाएगा? बदलाव की शुरुआत तभी होगी, जब हम खुद इसके खिलाफ खड़े होंगे।
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