Ranchi Protest: सिरमटोली फ्लाईओवर पर आदिवासी समाज का आक्रोश, सरना स्थल की सुरक्षा को लेकर बढ़ा विवाद

रांची के सिरमटोली फ्लाईओवर निर्माण को लेकर आदिवासी समाज में भारी नाराजगी। मंत्री चमरा लिंडा ने निर्माण कंपनी को सरना स्थल की पवित्रता बनाए रखने के निर्देश दिए। जानिए पूरा मामला।

Feb 23, 2025 - 20:30
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Ranchi Protest: सिरमटोली फ्लाईओवर पर आदिवासी समाज का आक्रोश, सरना स्थल की सुरक्षा को लेकर बढ़ा विवाद
Ranchi Protest: सिरमटोली फ्लाईओवर पर आदिवासी समाज का आक्रोश, सरना स्थल की सुरक्षा को लेकर बढ़ा विवाद

झारखंड की राजधानी रांची इन दिनों एक बड़े विवाद के केंद्र में है। सिरमटोली इलाके में बन रहे फ्लाईओवर को लेकर आदिवासी समाज में गहरी नाराजगी देखी जा रही है। विवाद की जड़ में सरना धर्मस्थल है, जो इस समुदाय की आस्था और परंपरा का प्रतीक माना जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस निर्माण कार्य से उनकी सांस्कृतिक धरोहर और धार्मिक स्थल को खतरा पैदा हो रहा है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए झारखंड के आदिवासी कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने स्थिति का जायजा लिया और फ्लाईओवर निर्माण कंपनी को सरना स्थल की पवित्रता बनाए रखने का निर्देश दिया।

आदिवासी आस्था बनाम विकास का टकराव!

सिरमटोली में आदिवासी समाज की पहचान माने जाने वाले इस सरना स्थल पर वर्षों से धार्मिक अनुष्ठान होते आए हैं। यह स्थान सिर्फ पूजा-अर्चना के लिए ही नहीं, बल्कि समाज की एकजुटता और परंपराओं को जीवित रखने के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। लेकिन अब इस पवित्र भूमि के अधिग्रहण और फ्लाईओवर निर्माण के चलते धार्मिक स्वतंत्रता पर खतरा मंडराने लगा है।

यह पहला मौका नहीं है जब विकास कार्यों की आड़ में आदिवासी संस्कृति के अस्तित्व पर सवाल खड़े हुए हों। इतिहास गवाह है कि झारखंड में जब-जब बड़ी निर्माण परियोजनाएं आई हैं, तब-तब आदिवासी भूमि और धर्मस्थलों पर संकट के बादल छाए हैं। सरना स्थल की सुरक्षा को लेकर यह लड़ाई भी इसी संघर्ष का हिस्सा बन गई है।

मंत्री चमरा लिंडा की कड़ी चेतावनी!

सरना स्थल पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए मंत्री चमरा लिंडा खुद मौके पर पहुंचे और फ्लाईओवर निर्माण कंपनी को स्पष्ट निर्देश दिए कि सरना स्थल की पवित्रता से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। उन्होंने कहा,

"आदिवासी समाज के अधिकारों और धार्मिक भावनाओं की अनदेखी करके कोई भी विकास परियोजना आगे नहीं बढ़ सकती। यदि आवश्यक हुआ तो सरकार इस परियोजना की समीक्षा करेगी।"

इसके साथ ही मंत्री ने फ्लाईओवर की ऊंचाई बढ़ाने की मांग भी रखी ताकि सरना स्थल आने वाले श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।

निर्माण कंपनी ने मांगा 15 दिन का समय

फ्लाईओवर निर्माण कार्य कर रही कंपनी एल एंड टी ने इस विवाद पर सफाई दी है। कंपनी के अधिकारियों का कहना है कि वे नए डिज़ाइन पर काम कर रहे हैं और इसे मंजूरी मिलने में 15 दिन का समय लगेगा।

कंपनी का कहना है कि वे सरना स्थल की पवित्रता को बनाए रखते हुए ही कोई समाधान निकालेंगे। लेकिन आदिवासी समाज अब किसी भी तरह की ग़लती या लापरवाही को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है।

सरना स्थल पर पहले भी हो चुके हैं हमले

अगर झारखंड के आदिवासी धर्मस्थलों के इतिहास पर नज़र डालें, तो यह पहली बार नहीं है जब किसी सरना स्थल पर अतिक्रमण या विकास कार्य के नाम पर हस्तक्षेप किया गया हो। इससे पहले भी कई मौकों पर आदिवासी समाज ने अपने धार्मिक स्थलों की सुरक्षा को लेकर संघर्ष किया है।

झारखंड में औद्योगीकरण और शहरीकरण के बढ़ते प्रभाव ने आदिवासी समाज को बार-बार अपनी आस्था और परंपराओं की रक्षा के लिए आंदोलन करने पर मजबूर किया है।

क्या सरकार आदिवासी समाज की सुनेगी?

अब बड़ा सवाल यह है कि क्या झारखंड सरकार आदिवासी समाज की भावनाओं का सम्मान करते हुए इस विवाद का कोई संतोषजनक हल निकालेगी? मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, जो खुद एक आदिवासी नेता हैं, क्या इस मुद्दे को गंभीरता से लेंगे?

आदिवासी समाज की मांगें

आदिवासी संगठनों और स्थानीय लोगों की मांगें इस प्रकार हैं:

  1. फ्लाईओवर के डिज़ाइन में बदलाव कर उसकी ऊंचाई बढ़ाई जाए।
  2. सरना स्थल की पवित्रता को किसी भी तरह से प्रभावित न किया जाए।
  3. सरकार आदिवासी समाज से विचार-विमर्श कर इस विवाद का हल निकाले।
  4. भविष्य में आदिवासी धार्मिक स्थलों पर किसी भी निर्माण कार्य से पहले स्थानीय समाज की सहमति अनिवार्य की जाए।

अब देखना यह होगा कि सरकार और प्रशासन आदिवासी समाज की इस नाराजगी को दूर करने के लिए क्या कदम उठाते हैं। इस विवाद का हल निकालने में हेमंत सोरेन सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि आदिवासी समुदाय ने हमेशा से उन्हें अपना सांस्कृतिक रक्षक माना है।

अगला कदम क्या होगा?

रांची के सिरमटोली फ्लाईओवर विवाद ने एक बार फिर विकास बनाम संस्कृति की बहस को तेज कर दिया है। अब गेंद सरकार और निर्माण कंपनी के पाले में है कि वे इस मामले को किस तरह सुलझाते हैं

आदिवासी समाज के लिए यह सिर्फ एक धर्मस्थल की रक्षा का मामला नहीं, बल्कि अपनी पहचान और परंपराओं को बचाने की लड़ाई भी है। अगर इस बार भी उनकी आवाज़ अनसुनी रह गई, तो आने वाले समय में इस विरोध के और भी उग्र होने की संभावना है।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।