New Delhi: क्या 'वन नेशन, वन इलेक्शन' से बदल जाएगी देश की चुनावी तस्वीर?
'वन नेशन, वन इलेक्शन' को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मंजूरी। संसद में बिल पेश होने की तैयारी। जानिए क्या है कोविंद समिति की सिफारिशें और इससे जुड़े अहम पहलू।
नई दिल्ली: ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ को लेकर देशभर में चर्चाएं तेज हो गई हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है, और अब सरकार इसे संसद में पेश करने की तैयारी में जुट गई है। संविधान संशोधन की इस ऐतिहासिक पहल के तहत लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव है।
क्या है 'वन नेशन, वन इलेक्शन'?
'वन नेशन, वन इलेक्शन' का मतलब है कि देशभर में लोकसभा और राज्य विधानसभा चुनाव एक साथ हों। इससे बार-बार चुनाव कराने की प्रक्रिया में लगने वाले समय, संसाधन और खर्च की बचत होगी। कोविंद समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, यह मॉडल देश की लोकतांत्रिक प्रणाली को सरल और प्रभावी बनाएगा।
कैसे बनेगा सर्वसम्मति का माहौल?
सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस विधेयक पर सर्वसम्मति बनाने की दिशा में सक्रिय है। केंद्रीय मंत्रियों राजनाथ सिंह, अर्जुन राम मेघवाल और किरेन रिजिजू को विपक्षी दलों से बातचीत का जिम्मा सौंपा गया है। इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा के लिए विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजने का प्रस्ताव है।
जेपीसी राजनीतिक दलों, राज्यों के विधानसभा अध्यक्षों, संवैधानिक विशेषज्ञों और आम जनता से चर्चा करेगी। इससे जुड़े प्रमुख पहलुओं, जैसे संविधान संशोधन, चुनाव प्रबंधन, और अन्य स्टेकहोल्डर की भूमिका पर विचार किया जाएगा।
क्या हैं संवैधानिक चुनौतियां?
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ लागू करने के लिए सरकार को संविधान में कम से कम छह संशोधन करने होंगे। इसके लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत पड़ेगी।
- राज्यसभा: 245 सीटों में से एनडीए के पास 112 सीटें हैं। दो-तिहाई बहुमत के लिए 164 वोट चाहिए।
- लोकसभा: एनडीए के पास 545 में से 292 सीटें हैं। दो-तिहाई बहुमत के लिए 364 वोट की जरूरत है।
सदन में एनडीए के पास साधारण बहुमत तो है, लेकिन दो-तिहाई बहुमत के लिए अन्य दलों का समर्थन हासिल करना चुनौती होगी।
इतिहास में झांके तो...
'वन नेशन, वन इलेक्शन' का विचार नया नहीं है।
- 1999: विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में पहली बार यह सुझाव दिया।
- 2015: संसदीय स्थायी समिति ने दो चरणों में चुनाव कराने की सिफारिश की।
- 2023: कोविंद समिति ने दो चरणों में चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा।
कोविंद समिति की रिपोर्ट 18,626 पन्नों में है, जिसमें 47 राजनीतिक दलों और आम जनता के 21,558 सुझाव शामिल हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 80% लोग इस प्रस्ताव के पक्ष में हैं।
कैसे होंगे चुनाव?
समिति ने चुनावी प्रक्रिया को दो चरणों में बांटने का सुझाव दिया है:
- पहले चरण में लोकसभा और विधानसभा चुनाव।
- इसके 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव।
क्या होंगे फायदे?
- खर्च में कमी: बार-बार चुनाव कराने की लागत बचेगी।
- संसाधनों का बेहतर उपयोग: चुनाव आयोग और प्रशासन की क्षमता में सुधार होगा।
- नीतिगत स्थिरता: लगातार चुनावी आचार संहिता लागू होने से विकास कार्य रुकते हैं।
विपक्ष का क्या रुख है?
विपक्षी दल इस प्रस्ताव को लेकर शंकित हैं। उनका मानना है कि यह केंद्र सरकार की रणनीति है, जिससे राज्यों की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है। हालांकि, सरकार का दावा है कि यह पहल देश के लोकतांत्रिक ढांचे को मजबूत करेगी।
‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ देश के चुनावी ढांचे में ऐतिहासिक बदलाव लाने की क्षमता रखता है। हालांकि, इसके लिए सरकार को राजनीतिक सहमति और संवैधानिक बाधाओं को पार करना होगा। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस चुनौती को कैसे हल करती है।
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