Barhi Tragedy: समोसे के ठेले ने छीनी मासूम की ज़िंदगी, परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
बरही में चाट-समोसे का ठेला पलटने से 14 वर्षीय प्रियांशु की दर्दनाक मौत हो गई। पिता के साथ दुकान लगाने निकले इकलौते बेटे की असामयिक मौत ने पूरे मोहल्ले को झकझोर दिया। जानिए कैसे हुई ये हृदयविदारक घटना।

बरही चौक का माहौल मंगलवार को अचानक सन्नाटे में बदल गया, जब एक साधारण चाट-समोसे के ठेले ने एक मासूम की ज़िंदगी लील ली। 14 वर्षीय प्रियांशु केशरी, जो अपने पिता के साथ रोज़ की तरह ठेला लगाने के लिए घर से निकला था, कभी नहीं जानता था कि ये सफर उसकी ज़िंदगी का आखिरी होगा।
यह हादसा बरही के इतिहास में एक दर्दनाक पल बन गया है, जिसे वहां के लोग शायद ही कभी भूल पाएंगे।
हादसे की पूरी कहानी:
बरही चौक पर रोज़ाना सैकड़ों ठेले लगते हैं। ये वही इलाका है जहाँ मेहनतकश लोग सुबह से शाम तक अपने परिवार के पेट भरने के लिए संघर्ष करते हैं। प्रियांशु भी इन्हीं में से एक था—अपने पिता गणेश केशरी के साथ चाट और समोसे बेचकर परिवार चलाने की ज़िम्मेदारी उठाने में हाथ बंटाता था।
घटना के दिन प्रियांशु अपने पिता के साथ बरही चौक जा रहा था। ठेले में समोसे, चाट की सारी सामग्री थी। लेकिन अचानक ठेला असंतुलित हो गया और वहीं पर पलट गया। दुर्भाग्यवश, प्रियांशु ठेले के नीचे दब गया।
आसपास के लोग तुरंत दौड़े, पुलिस भी कुछ ही मिनटों में पहुंच गई। उसे तत्काल बरही अनुमंडलीय अस्पताल ले जाया गया, लेकिन डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।
इकलौते बेटे की मौत, टूटा परिवार:
प्रियांशु के माता-पिता, खासकर पिता गणेश केशरी, सदमे में हैं। प्रियांशु उनका इकलौता बेटा था। मूल रूप से रामगढ़ जिले के कुजू के रहने वाले इस परिवार की ज़िंदगी कुछ साल पहले बेहतर रोजगार की तलाश में बरही आई थी। यहां युवराज होटल के पास किराए के मकान में वे रहते थे और रोज़ ठेला लगाकर गुज़ारा करते थे।
पिछले कुछ महीनों से प्रियांशु स्कूल के बाद अपने पिता के साथ ठेले पर हाथ बंटाता था। लेकिन इस कोशिश का ऐसा अंत होगा, किसी ने नहीं सोचा था।
बरही में ऐसे हादसे क्यों दोहराए जा रहे हैं?
बरही जैसे कस्बों में सड़क सुरक्षा और रेहड़ी-पटरी वालों की स्थिति लंबे समय से चर्चा में है। सड़कों की बदहाल स्थिति, नियोजन की कमी और कोई सुरक्षा उपाय न होने के कारण ऐसे हादसे आम होते जा रहे हैं।
कुछ वर्षों पहले भी बरही के पास एक सब्जी विक्रेता की जान इसी तरह गई थी, जब अनियंत्रित ठेला साइड में गिर गया था। इसके बावजूद, स्थानीय प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।
क्या सीखा जा सकता है इस हादसे से?
इस घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है—क्या रेहड़ी-पटरी वालों की जान की कोई कीमत नहीं है? क्या ऐसे लोगों के लिए सुरक्षा मानकों की कोई ज़रूरत नहीं समझी जाती? और अगर ये हादसे यूँ ही होते रहेंगे, तो अगला प्रियांशु कौन होगा?
स्थानीय लोग मांग कर रहे हैं:
घटना के बाद स्थानीय व्यापारियों और सामाजिक संगठनों ने प्रशासन से मांग की है कि:
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ठेला चालकों को संतुलन और सुरक्षा के लिए ट्रेनिंग दी जाए।
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सड़कों पर ठेला लगाने के लिए नियोजित जगह सुनिश्चित की जाए।
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बच्चों को ठेले से दूर रखा जाए और शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाई जाए।
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