PM MODI Thailand-Sri Lanka Visit: मोदी की थाईलैंड-श्रीलंका यात्रा से चीन को झटका, बिम्स्टेक में बढ़ेगा भारत का दबदबा!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका यात्रा सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि भारत के हिंद-प्रशांत प्रभाव को बढ़ाने और चीन के विस्तारवाद को संतुलित करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है। जानिए इस दौरे के पीछे की असली रणनीति!

नई दिल्ली: अगले महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका यात्रा सिर्फ एक औपचारिक दौरा नहीं होगी, बल्कि यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत के रणनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा हितों को मजबूत करने वाला कदम साबित हो सकती है। इस यात्रा के दौरान मोदी बिम्स्टेक सम्मेलन में भाग लेंगे, जो दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच सहयोग को नया आयाम देने वाला माना जा रहा है। वहीं, श्रीलंका यात्रा में भारत-श्रीलंका द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करने पर खास जोर दिया जाएगा।
बिम्स्टेक: क्यों महत्वपूर्ण है यह संगठन?
भारत ने पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद के चलते दक्षेस (SAARC) से दूरी बना ली और अब बिम्स्टेक (BIMSTEC) को प्राथमिकता दे रहा है। बंगाल की खाड़ी क्षेत्रीय संगठन (Bay of Bengal Initiative for Multi-Sectoral Technical and Economic Cooperation - BIMSTEC) में भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, म्यांमार और थाईलैंड शामिल हैं। यह संगठन सिर्फ आर्थिक और व्यापारिक विकास तक सीमित नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। सबसे खास बात यह है कि इसमें पाकिस्तान शामिल नहीं है, जिससे क्षेत्रीय सहयोग में आतंकवाद जैसे मुद्दों की अनदेखी नहीं होती।
क्या बांग्लादेश के साथ सुधरेंगे रिश्ते?
सूत्रों के अनुसार, बिम्स्टेक बैठक के दौरान बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात कर सकते हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के जाने के बाद भारत के साथ रिश्तों में खटास आ गई थी। लेकिन अब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पर भारत के साथ संबंध सुधारने का दबाव है, क्योंकि वैश्विक मंचों पर बांग्लादेश की छवि कमजोर होती जा रही है। हालांकि, इस मुलाकात की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन कूटनीतिक स्तर पर पर्दे के पीछे बातचीत जारी है।
श्रीलंका: चीन की पकड़ ढीली, भारत फिर मजबूत?
मोदी की यह चौथी श्रीलंका यात्रा (4-5 अप्रैल) होगी। इससे पहले वे 2015, 2017 और 2019 में भी श्रीलंका जा चुके हैं। श्रीलंका भारत के लिए सिर्फ सुरक्षा और व्यापार का भागीदार नहीं, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से भी बेहद करीब है। पिछले कुछ सालों में श्रीलंका चीन के करीब चला गया था, लेकिन भारत ने आर्थिक संकट के दौरान जो मदद दी, उसने रिश्तों को फिर से मजबूत किया। इस यात्रा में कई द्विपक्षीय समझौतों पर हस्ताक्षर होने की संभावना है, जिससे भारत-श्रीलंका संबंधों को नई ऊंचाई मिलेगी।
थाईलैंड यात्रा क्यों अहम?
प्रधानमंत्री मोदी 2-4 अप्रैल के बीच थाईलैंड की अपनी तीसरी आधिकारिक यात्रा करेंगे। इससे पहले वे 2016 में थाईलैंड के राजा के निधन पर और 2019 में आसियान बैठक के दौरान वहां गए थे। इस बार की यात्रा अत्यधिक रणनीतिक होगी, क्योंकि यह भारत की "एक्ट ईस्ट पॉलिसी" और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने की रणनीति का अहम हिस्सा है।
कूटनीति का नया समीकरण!
इस यात्रा के दौरान विदेश मंत्रालय के अनुसार, कई महत्वपूर्ण द्विपक्षीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा होगी। यह सम्मेलन दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा, जिससे आर्थिक, व्यापारिक और सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। भारत के इस कूटनीतिक कदम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शक्ति संतुलन पर असर पड़ सकता है, जिससे चीन की पकड़ कमजोर होगी और भारत का प्रभाव बढ़ेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थाईलैंड और श्रीलंका यात्रा सिर्फ औपचारिक नहीं, बल्कि भारत के हिंद-प्रशांत प्रभाव को बढ़ाने और चीन के विस्तारवाद को संतुलित करने की बड़ी रणनीति का हिस्सा है। जानिए इस दौरे के पीछे की असली रणनीति!
What's Your Reaction?






