Taranpad Tribute Celebration: डीएवी स्कूल में महात्मा हंसराज की जयंती पर बच्चों ने किया वैदिक यज्ञ, संस्कृत और संस्कृति का अद्भुत संगम!
तारापद डीएवी पब्लिक स्कूल में महात्मा हंसराज जी की जयंती पर विशेष हवन और विविध सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। जानिए कैसे बच्चों ने वैदिक आदर्शों से जुड़ते हुए उनके विचारों को जीवंत किया।

शनिवार की सुबह तारापद षाड़ंगी डीएवी पब्लिक स्कूल का परिसर कुछ खास था। हर कोना श्रद्धा और वैदिक ऊर्जा से भर गया जब महात्मा हंसराज जी की जयंती पर विशेष हवन और विविध गतिविधियों का आयोजन किया गया। ये कार्यक्रम केवल एक रस्मी आयोजन नहीं था, बल्कि छात्रों के दिलों में वैदिक संस्कारों की लौ जलाने की एक सार्थक पहल भी थी।
कौन थे महात्मा हंसराज?
इस आयोजन की गहराई को समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि महात्मा हंसराज कौन थे। 19वीं सदी में जब भारत में आधुनिक और नैतिक शिक्षा की कमी थी, तब महात्मा हंसराज ने आर्य समाज के आदर्शों के साथ शिक्षा क्षेत्र में क्रांति की शुरुआत की। वे डीएवी मूवमेंट के संस्थापक सदस्य थे, जिन्होंने भारत में सैंकड़ों स्कूल और कॉलेजों की नींव रखी। उनका उद्देश्य था— शिक्षा से देश का आत्मिक और सामाजिक उत्थान।
कार्यक्रम की शुरुआत: श्रद्धा और ज्ञान का समर्पण
कार्यक्रम की शुरुआत प्रार्थना सभा से हुई जहां महात्मा हंसराज जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गई और दीप प्रज्वलन से वैदिक परंपरा की शुरुआत की गई। इसके पश्चात अर्थव सदन की ओर से एक रोचक प्रश्नोत्तरी का आयोजन हुआ जिसमें महात्मा जी के विचारों और जीवन के अनछुए पहलुओं को उजागर किया गया।
नन्हे बच्चों ने रचा वैदिक माहौल
कक्षा एलकेजी और यूकेजी के बच्चों ने संस्कृत शिक्षक के मार्गदर्शन में हवन किया। यह दृश्य केवल अनुशासन और संस्कार का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह संकेत था कि संस्कृति की शुरुआत बाल अवस्था से ही होती है। वैदिक मंत्रों के उच्चारण से वातावरण पवित्र हो गया।
विचार, कला और लेखन के संगम का मंच
कक्षा तीन से पाँच तक के छात्रों के लिए कहानी वाचन कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें बच्चों ने महात्मा हंसराज जी के जीवन से प्रेरित कहानियाँ सुनाईं। वहीं कक्षा छह से दसवीं तक के विद्यार्थियों ने Sketch of Hansraj प्रतियोगिता में भाग लिया। बच्चों ने न केवल उनकी तस्वीर उकेरी, बल्कि उनके विचारों को भी रंगों में ढाल दिया।
प्रतियोगिता में प्राकृति कुइला, श्रावणी नामता, आराध्या कामिला, छंदिता पाल, चंद्रिका रानी कर, मोनाली घोष, सागुन हैब्रम, श्रेया साहा, अंतरा महापात्र, स्नेहा कुमारी, अभीक साव और श्रेया नायक ने प्रथम और द्वितीय स्थान प्राप्त किए, जो यह दर्शाता है कि बच्चे न केवल प्रतिभाशाली हैं, बल्कि वैचारिक रूप से भी जागरूक हैं।
प्राचार्य का संदेश: त्याग की प्रेरणा, शिक्षा का समर्पण
प्राचार्य श्री मुकेश कुमार ने छात्रों को संबोधित करते हुए महात्मा हंसराज जी के आर्य समाज के प्रति त्याग और योगदान पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा—
“डीएवी की जड़ों में महात्मा हंसराज जी का पसीना और समर्पण शामिल है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा से ही राष्ट्र निर्माण संभव है।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि वैदिक सिद्धांत केवल धार्मिक नहीं, बल्कि जीवन जीने की वैज्ञानिक पद्धति हैं। छात्रों को इन्हीं आदर्शों पर चलने की प्रेरणा दी गई।
संस्कृति और शिक्षा का ऐसा मेल विरला है
महात्मा हंसराज जयंती केवल एक स्मरण दिवस नहीं था, यह सांस्कृतिक जागरूकता और वैदिक मूल्यबोध का कार्यक्रम था। बच्चों ने इस दिन को न केवल हर्षोल्लास से मनाया, बल्कि इसे एक सीख की तरह आत्मसात भी किया।
अगर आज का युवा वैदिक विचारों से प्रेरित होकर आगे बढ़ता है, तो भारत का भविष्य भी उतना ही उज्ज्वल होगा जितना महात्मा हंसराज जी का दृष्टिकोण था।
यही उद्देश्य था इस कार्यक्रम का—ज्ञान, संस्कार और समर्पण की त्रिवेणी बनाना!
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