Asanbani Corruption : करोड़ों की लागत से बना अंडरपास बना ग्रामीणों की मुसीबत, बारिश में तैरता है विकास
टाटा-खड़गपुर रेलखंड के आसनबनी स्टेशन पर करोड़ों की लागत से बना अंडरपास बारिश के पानी से भर जाता है, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। छह महीने पहले उद्घाटन हुआ था, अब जलजमाव से बनी मुसीबत।

पूर्वी सिंहभूम: कभी जिस अंडरपास को ग्रामीणों के लिए "सुविधा का रास्ता" बताया गया था, आज वही आसनबनी रेलवे स्टेशन के पास बना करोड़ों का अंडरपास ग्रामीणों के लिए रोज़ की मुसीबत बन गया है। हल्की सी बारिश होती है, और पूरा अंडरपास पानी से लबालब भर जाता है। यही नहीं, यह पानी धीरे-धीरे कमर तक पहुंचता है, जिसमें लोग फिसलकर घायल हो रहे हैं।
छह महीने पहले हुआ था उद्घाटन
टाटा-खड़गपुर रेलखंड पर आसनबनी रेलवे स्टेशन के समीप यह अंडरपास छह महीने पहले ही ग्रामीणों को समर्पित किया गया था। इसका उद्देश्य था – रेलवे फाटक पर लगने वाले जाम और जानलेवा कटिंग से मुक्ति दिलाना। लेकिन अब यह सुविधा लोगों की परेशानी का कारण बन चुकी है।
बरसात में तैरता है भ्रष्टाचार
नारायणपुर निवासी विश्वनाथ महतो बताते हैं कि आसनबनी पंचायत के डोरकासाई, खुर्शी, बांधडीह, बोडाडीह, रागडीह और काशीडीह गांवों के लोग इस स्टेशन से रोज़ाना जमशेदपुर और हावड़ा की ओर यात्रा करते हैं। उनके लिए अंडरपास से गुजरना अब खतरनाक बन चुका है। बरसात के दिनों में यहां पानी का जमाव इतना हो जाता है कि लोग अपनी जान जोखिम में डालकर ट्रेन पकड़ने के लिए निकलते हैं।
इतिहास दोहराया जा रहा है?
ऐसे मामले झारखंड में पहले भी देखे गए हैं, जहां करोड़ों की योजनाएं बारिश के पहले झोंके में ढह गईं। 2018 में हजारीबाग में बने एक ओवरब्रिज की दीवार गिरने का मामला हो या 2021 में धनबाद में बना ड्रेनेज सिस्टम जो पहली बारिश में उफान मार गया – हर बार कहानी एक ही है: अधूरी योजना, घटिया निर्माण और जवाबदेही का अभाव।
निकासी की व्यवस्था है नदारद
इस अंडरपास में पानी निकासी की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। कोई पंप नहीं, कोई ड्रेनेज सिस्टम नहीं। करोड़ों खर्च कर सिर्फ एक ढांचा खड़ा कर दिया गया – जिसका वास्ता ज़मीन की हकीकत से नहीं है।
गिरते हैं लोग, बढ़ती है समस्या
स्थानीय लोगों की शिकायतें अब प्रशासन तक पहुंच रही हैं, लेकिन समाधान नदारद है। ग्रामीणों के अनुसार, कई बार बुज़ुर्ग और बच्चे पानी में गिर चुके हैं, बाइक सवार लोग फिसलकर चोटिल हो चुके हैं।
जनता पूछ रही है – जवाब कौन देगा?
आख़िर किसने इस अंडरपास का निर्माण स्वीकृत किया? किन इंजीनियरों ने इसका निरीक्षण किया? क्या निर्माण के समय बरसाती जल निकासी पर कोई ध्यान नहीं दिया गया? और अगर दिया गया, तो आज यह पानी क्यों नहीं निकल रहा?
राजनीतिक प्रतिक्रिया और चुप्पी
अब तक किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस मुद्दे पर खुलकर बयान नहीं दिया है। सवाल उठता है कि जो परियोजना "विकास के नाम पर" करोड़ों रुपये निगल गई, उसका असली लाभ किसे मिला?
आख़िर में सवाल वही – कब मिलेगी मुक्ति?
आसनबनी का यह अंडरपास अब ग्रामीणों के लिए विकास का नहीं, भ्रष्टाचार और लापरवाही का प्रतीक बन चुका है। लोगों की मांग है कि जल्द से जल्द जलनिकासी की समुचित व्यवस्था की जाए, नहीं तो ये अंडरपास एक दिन किसी बड़ी दुर्घटना की वजह बन सकता है।
जब तक ये व्यवस्था दुरुस्त नहीं होती, "विकास" तैरता ही रहेगा – पानी में, भ्रष्टाचार में और जनता की उम्मीदों में।
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