Murshidabad Violence: वक्फ संशोधन कानून के विरोध में दंगे से कांपा बंगाल, ममता सरकार पर उठे सवाल!
मुर्शिदाबाद हिंसा ने बंगाल को हिला दिया है। वक्फ कानून के विरोध की आड़ में हुई आगजनी और दंगे पर अब केंद्र सरकार की नजर। क्या लगेगा राष्ट्रपति शासन?

पश्चिम बंगाल का मुर्शिदाबाद जिला एक बार फिर सुर्खियों में है—इस बार वक्फ संशोधन कानून के विरोध में हुई भयावह हिंसा की वजह से। सरकार, प्रशासन और सियासत तीनों पर सवाल उठ रहे हैं, और लोगों के आक्रोश की आंच अब कोलकाता तक पहुंच चुकी है।
पिछले कुछ दिनों में राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) और राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस के मुर्शिदाबाद दौरे ने जो तस्वीर सामने रखी है, उसने पूरे देश को झकझोर दिया है। हिंसा के पीड़ितों की ज़ुबानी सुनकर ऐसा लग रहा है मानो राज्य सरकार घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं थी। लोगों को अपने ही राज्य में शरणार्थियों की तरह जीवन बिताना पड़ रहा है, और उनके दर्द की कोई सुनवाई नहीं हो रही।
दंगा या प्रायोजित हिंसा?
वक्फ संशोधन कानून के विरोध की आड़ में जो कुछ हुआ, वह सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था। यह सुनियोजित हिंसा की शक्ल में सामने आया। भीड़ ने दुकानों को जलाया, घरों को तोड़ा और निर्दोषों को निशाना बनाया। राज्यपाल से मुलाकात के दौरान पीड़ितों ने बताया कि स्थानीय पुलिस और प्रशासन मूकदर्शक बना रहा।
अधिक चौंकाने वाली बात यह रही कि राज्य सरकार ने राज्यपाल को पीड़ितों से मिलने से मना करने की सलाह दी थी, जो कि खुद अपने आप में एक संवैधानिक सवाल उठाता है।
इतिहास गवाह है, बंगाल कई बार जल चुका है
यह पहली बार नहीं है जब पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा हुई हो। 2013 में कालीचक (मालदा) में भी धार्मिक उन्माद ने विकराल रूप लिया था। 2018 में बशीरहाट और 2021 में चुनाव के बाद बर्धमान और नंदीग्राम जैसे इलाकों में भी ऐसी ही घटनाएं सामने आई थीं। लेकिन इस बार की हिंसा ने ना सिर्फ लोगों को बेघर किया, बल्कि एक बार फिर राज्य की कानून व्यवस्था पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है।
सरकार के लिए 'गले की हड्डी' क्यों बन चुकी है मुर्शिदाबाद हिंसा?
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार पहले से ही विपक्ष के आरोपों और केंद्रीय एजेंसियों की जांच के घेरे में है। अब मुर्शिदाबाद की हिंसा ने उनकी छवि पर और सवाल खड़े कर दिए हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला आने वाले समय में लोकसभा चुनावों को भी प्रभावित कर सकता है। क्योंकि यह दंगा एक ऐसी स्क्रिप्ट बन चुका है, जिसे न तो सरकार पूरी तरह से नकार सकती है, और न ही इसकी जिम्मेदारी से बच सकती है।
क्या केंद्र सरकार अब राष्ट्रपति शासन की ओर बढ़ेगी?
लोगों का विश्वास अब राज्य सरकार पर से उठ चुका है। पलायन कर रहे पीड़ितों का एक ही संदेश है – “सरकार कठोर कदम उठाए।”
ऐसे में केंद्र सरकार के पास राष्ट्रपति शासन लागू करने का विकल्प भी खुला है। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत यदि राज्य में संवैधानिक मशीनरी फेल हो जाए, तो केंद्र सरकार दखल दे सकती है।
क्या यह वही समय है? क्या अब ममता सरकार को चेतावनी देने की जरूरत है?
राज्यपाल की चुप्पी भी सवालों के घेरे में
जहां एक ओर राज्यपाल बोस ने पीड़ितों से मुलाकात की, वहीं उनका अगला कदम अभी तक स्पष्ट नहीं है। क्या वह केंद्र को रिपोर्ट सौंपेंगे? क्या राष्ट्रपति शासन की सिफारिश की जाएगी? इन सवालों के जवाब अभी आने बाकी हैं, लेकिन बंगाल की सियासत में तूफान उठना तय है।
आम जनता का सवाल – हमारा कसूर क्या था?
हिंसा के शिकार लोगों का कहना है कि वे किसी पक्ष में नहीं थे, फिर भी उनके घर जलाए गए, दुकानें लूटी गईं और जान पर बन आई। कई परिवार आज भी रातें शिविरों में गुजार रहे हैं, जबकि राज्य सरकार से मदद की कोई खबर नहीं है।
अब क्या होगा?
जैसे-जैसे यह मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में गर्मा रहा है, यह स्पष्ट हो गया है कि मुर्शिदाबाद हिंसा कोई छोटी घटना नहीं थी। यह एक ऐसा राजनीतिक ज्वालामुखी है, जो आने वाले समय में बड़ा विस्फोट कर सकता है।
राज्य सरकार को अब सिर्फ सफाई देने से काम नहीं चलेगा—अब उसे जिम्मेदारी लेनी होगी।
What's Your Reaction?






