Jharkhand Statement Controversy: मंत्री ने खुले मंच से बोला संविधान के खिलाफ, मचा बवाल
झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन के विवादित बयान ने राज्य में नया राजनीतिक भूचाल ला दिया है। संविधान को शरियत से नीचा बताने के आरोप में विपक्ष हमलावर हो गया है। जानिए क्या है पूरा मामला और इतिहास में पहले कब-कब उड़ी संवैधानिक मर्यादाएं।

झारखंड की राजनीति इन दिनों उबाल पर है। वजह है राज्य के एक मंत्री का मंच से दिया गया वो बयान, जिसने न केवल संवैधानिक मर्यादाओं की धज्जियां उड़ाई, बल्कि पूरे राज्य में एक नई बहस को जन्म दे दिया। मंत्री हफीजुल हसन ने एक जनसभा के दौरान शरियत कानून को संविधान से ऊपर बताते हुए जो टिप्पणी की, उसने भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को हिला दिया है।
क्या है पूरा मामला?
राज्य के मंत्री हफीजुल हसन ने हाल ही में एक जनसभा में कहा कि “हमारे लिए शरियत सबसे ऊपर है, संविधान बाद में आता है।” यह बयान जैसे ही सामने आया, विपक्षी दल खासतौर पर बीजेपी ने इसे सीधा राष्ट्रद्रोह करार दिया और सड़कों पर उतर गई।
पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा ने इसे लोकतंत्र और संविधान पर सीधा हमला बताते हुए कहा, "जो मंत्री शपथ लेते हैं संविधान की रक्षा करने की, वही अब उसे रौंद रहे हैं। हेमंत सरकार को अब तय करना होगा कि वो भारत के संविधान के साथ है या कट्टरपंथियों के साथ।"
इतिहास की परतें भी खुलीं...
यह पहला मौका नहीं है जब किसी मंत्री ने संविधान को लेकर विवादास्पद बयान दिया हो। आज़ादी के बाद से लेकर अब तक समय-समय पर संविधान और धर्म के बीच टकराव की स्थितियां सामने आती रही हैं। 1951 में पहला ऐसा मामला तब उठा जब मद्रास हाई कोर्ट ने मंदिर प्रवेश के अधिकारों पर संविधान को सर्वोच्च ठहराया था। ऐसे ही अनेक मामलों ने भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत किया, लेकिन अब झारखंड में वही जड़ें कमजोर करने की कोशिश हो रही है।
धरना, प्रदर्शन और सियासी घमासान
शनिवार को रांची में भाजपा कार्यकर्ताओं ने ज़ोरदार धरना प्रदर्शन किया। पुराने उपायुक्त कार्यालय के सामने हजारों लोग जुटे। पूर्व सीएम मधु कोड़ा, पूर्व सांसद गीता कोड़ा, पूर्व मंत्री बड़कुंवर गगराई, और भाजपा जिला अध्यक्ष संजय पांडे जैसे दिग्गज नेताओं ने मंच से साफ-साफ कहा, "अगर ऐसे बयानों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो झारखंड की जनता सड़कों पर उतर आएगी।"
धरने के दौरान राज्यपाल के नाम एक ज्ञापन भी सौंपा गया जिसमें हफीजुल हसन को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की गई। प्रदर्शन में रंजन प्रसाद, मुकेश सिंह, रवि शंकर विश्वकर्मा, अनु विश्वकर्मा और जूली खत्री समेत दर्जनों वरिष्ठ कार्यकर्ता शामिल रहे।
बहुसंख्यक समाज को लेकर चेतावनी
पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने कहा, "झारखंड और बंगाल में बहुसंख्यकों के साथ जो हो रहा है, वो अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। रामनवमी और होली जैसे त्योहारों पर जानबूझकर पत्थरबाजी होती है, क्या ये योजनाबद्ध तुष्टिकरण नहीं है?" उन्होंने सरकार को खुली चेतावनी दी कि अगर हिंदू समाज की आस्था का सम्मान नहीं हुआ, तो जनाक्रोश संभालना मुश्किल हो जाएगा।
राजनीतिक दलों की दो टूक
पार्टी नेता अनूप सुल्तानिया ने तीखा हमला बोलते हुए कहा, "अब समाज को बांटने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। भाजपा संसद से सड़क तक इस कट्टर सोच का विरोध करेगी।" इसी सुर में रामानुज शर्मा और गीता बलमुचू ने कहा कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए अब चुप्पी खतरनाक है।
क्या कार्रवाई करेगी सरकार?
अब बड़ा सवाल यही है कि क्या हेमंत सोरेन सरकार इस विवादास्पद मंत्री पर कोई ठोस कदम उठाएगी या फिर वोटबैंक की सियासत में चुप्पी साधे रखेगी? विपक्ष अब इसे 2024 चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारी में है।
झारखंड में एक मंत्री के बयान से उठी आग अब राजनीतिक जंगल में फैल चुकी है। संविधान, शरियत और धर्म के बीच छिड़ी इस लड़ाई में जीत किसकी होगी, ये आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा। लेकिन इतना तय है कि झारखंड की राजनीति अब एक नए मोड़ पर पहुंच चुकी है—जहां संवैधानिक प्रतिबद्धता और धार्मिक कट्टरता की सीधी टक्कर हो चुकी है।
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