Jharkhand Crisis: 5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से शव लेकर गांव पहुंचे लोग, सड़क के बिना जी रहे लोग

झारखंड के गांव में सड़कों के अभाव में 5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते पर शव लेकर पहुंचे ग्रामीण, जानिए प्रशासन के विकास के दावों की सच्चाई और ग्रामीणों की दयनीय स्थिति।

Nov 19, 2024 - 10:05
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Jharkhand Crisis: 5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से शव लेकर गांव पहुंचे लोग, सड़क के बिना जी रहे लोग
5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से शव लेकर गांव पहुंचे लोग, सड़क के बिना जी रहे लोग

झारखंड में विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही है। मनोहरपुर के गुदड़ी प्रखंड में एक और दुखद तस्वीर सामने आई है, जो विकास के नाम पर उठाए गए सरकारी दावों की पोल खोलती है। एक दुखद घटना में, लोंगाबेड़ा गांव के ग्रामीणों को 12 वर्षीय बच्चे का शव कंधों पर उठाकर 5 किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से गांव तक लाने को मजबूर होना पड़ा। कारण? गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है।

इस तस्वीर ने साफ तौर पर यह दिखा दिया कि झारखंड में विकास के जो दावे किए जाते हैं, वे कहीं से भी वास्तविक नहीं हैं। यह घटना न केवल प्रशासन की लापरवाही का एक उदाहरण है, बल्कि गांववालों की विवशता का भी दर्पण है।

कैसे हुई यह घटना?

लोंगाबेड़ा गांव के नेलसन तोपनो के बेटे मनोज समीर तोपनो की तबीयत कुछ दिन पहले खराब हो गई थी। इलाज के लिए परिजनों ने उसे टाटा भेजा था, लेकिन 14 नवंबर को उसकी मृत्यु हो गई। शव को लेकर परिजन उसी दिन गीतिलूली पहुंचे, जो गांव से लगभग 5 किलोमीटर दूर था। यहां एक वाहन से शव लाया गया, लेकिन गांव तक पहुंचने के लिए कोई सड़क नहीं थी, जिससे वाहन शव को आगे नहीं ले जा सका।

इसके बाद परिजनों और ग्रामीणों ने बांस और रस्सी का सहारा लिया और शव को कांधों पर उठाकर पथरीली पहाड़ी रास्ते से 5 किलोमीटर का सफर तय किया। गांव पहुंचने के बाद शव का दाह संस्कार किया गया। यह घटना ना सिर्फ दुखद थी, बल्कि झारखंड के विकास के वास्तविक हालात को भी उजागर करती है।

गांववाले किस मुश्किल से गुजर रहे हैं?

गांववालों का कहना है कि सड़क नहीं होने के कारण किसी भी आपातकालीन स्थिति में उन्हें बहंगी पर या फिर कंधों पर मरीजों को ले जाना पड़ता है। यहां तक कि कई बार समय पर अस्पताल पहुंचने के कारण मरीज की मौत तक हो जाती है। यह विकास की विफलता का स्पष्ट उदाहरण है।

क्या हो रहा था सड़कों के निर्माण के दौरान?

ग्रामीणों का कहना है कि 2023 के जून माह में गांव से मुख्य सड़क तक सड़क निर्माण के लिए शिलान्यास किया गया था। सड़क निर्माण कार्य तेजी से शुरू हुआ, लेकिन कुछ ही समय बाद यह कार्य बंद कर दिया गया। कई जगहों पर मिट्टी काटकर छोड़ दिया गया और सड़क निर्माण का कार्य अधूरा छोड़ दिया गया।

बरसात के दौरान स्थिति और गंभीर हो गई। जहां पहले कुछ ग्रामीण साइकिल से यात्रा कर सकते थे, वहीं अब वहां भी पैदल यात्रा करनी पड़ रही है। इससे ग्रामीणों को दुर्घटनाओं का डर बना रहता है। ग्रामीणों का कहना है कि सड़क निर्माण कार्य को जल्द पूरा किया जाए, ताकि उन्हें थोड़ी राहत मिल सके और वे अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में थोड़ी सहूलत पा सकें।

क्या प्रशासन अब जागेगा?

ग्रामीणों ने प्रशासन से अपील की है कि सड़क निर्माण का कार्य जल्द शुरू कर उसे पूरा किया जाए। यह एक अहम मुद्दा है, जिसे अगर समय रहते हल नहीं किया गया, तो और भी ग्रामीणों को ऐसी ही दयनीय स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।

झारखंड की सरकार को अब इस मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है, ताकि ग्रामीणों को सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं मिल सकें। क्या प्रशासन इसे अहम मुद्दा मानेगा या फिर यह सिर्फ एक और राजनीतिक वादा बनकर रह जाएगा?

विकास की सच्चाई: सरकारी दावे और ग्रामीणों की दयनीय स्थिति

यह घटना सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि झारखंड के कई ग्रामीण इलाकों की सड़क समस्या को उजागर करती है। झारखंड में विकास के बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं, लेकिन गांवों की वास्तविक स्थिति इससे बिल्कुल अलग है। सड़क का अभाव गांववालों के लिए कठिनाइयों का कारण बन गया है।

आखिरकार, यह सवाल खड़ा होता है कि क्या झारखंड की सरकार इन समस्याओं का हल निकालेगी या फिर विकास के नाम पर सिर्फ वादे किए जाएंगे? यह घटना साफ तौर पर दिखाती है कि विकास का दावा और वास्तविकता में बहुत अंतर है, जो कि ग्रामीणों के जीवन पर सीधा असर डालता है।

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