Jharkhand Jobs 75 Percent Reservation : HC ने रोका Reservation, Local Jobs पर हेमंत सरकार को बड़ा झटका

झारखंड हाईकोर्ट ने राज्य के स्थानीय निवासियों के लिए 75% प्राइवेट नौकरियों के आरक्षण पर रोक लगाई। जानिए क्या है अदालत की दलील और इस फैसले के पीछे की वजह।

Dec 14, 2024 - 09:28
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Jharkhand Jobs 75 Percent Reservation : HC ने रोका Reservation, Local Jobs पर हेमंत सरकार को बड़ा झटका
Jharkhand: HC ने रोका Reservation, Local Jobs पर हेमंत सरकार को बड़ा झटका

झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन सरकार को बड़ा झटका लगा है। राज्य के स्थानीय लोगों के लिए निजी क्षेत्र में 75% नौकरियों का आरक्षण लागू करने की सरकार की योजना पर झारखंड हाईकोर्ट ने गुरुवार को रोक लगा दी। यह फैसला सरकार के लिए बड़ा कानूनी झटका माना जा रहा है, क्योंकि इसे स्थानीय युवाओं को रोजगार दिलाने की सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी योजना माना जा रहा था।

क्या था कानून और किसने किया चुनौती?

हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड निजी क्षेत्र में स्थानीय अभ्यर्थियों को रोजगार अधिनियम, 2021 पारित किया था। इसके तहत, राज्य में ऐसे सभी निजी नियोक्ता (एंप्लॉयर), जिनके पास 10 या उससे अधिक कर्मचारी हैं, उन्हें ₹40,000 मासिक वेतन तक की 75% नौकरियां स्थानीय निवासियों के लिए आरक्षित करनी थीं।

लेकिन, इस कानून को झारखंड लघु उद्योग संघ और अन्य याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह कानून न केवल संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, बल्कि उद्योग जगत पर भी अनुचित दबाव बनाता है।

कोर्ट ने क्यों लगाई रोक?

मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह कानून भारतीय संविधान के भाग III का उल्लंघन करता है, जो सभी नागरिकों को मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,
"झारखंड सरकार ऐसा कानून नहीं बना सकती जो निजी नियोक्ताओं के अधिकारों को प्रतिबंधित करे।"

अदालत ने यह भी कहा कि किसी प्राइवेट एंप्लॉयर को खुली भर्ती प्रक्रिया के अधिकार से वंचित करना, जिसमें ₹40,000 से कम वेतन वाले कर्मचारियों को शामिल किया जाए, संविधान की सीमाओं के बाहर है।

स्थानीय लोगों के लिए रोजगार की चुनौती

झारखंड में स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार की समस्या लंबे समय से बहस का मुद्दा रही है। राज्य में खनिज संपदा की प्रचुरता के बावजूद औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन की गति धीमी है। ऐसे में यह कानून सरकार की कोशिश थी कि स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता मिले।
हालांकि, अदालत के इस फैसले ने सरकार की इस कोशिश को बड़ा झटका दिया है।

कानून पर क्या थे तर्क?

याचिकाकर्ताओं ने अदालत में यह दलील दी कि झारखंड सरकार ने निजी नियोक्ताओं से स्थानीय कर्मचारियों की जानकारी मांगनी शुरू कर दी थी, और न देने पर दंडात्मक कार्रवाई की धमकी दी जा रही थी।
इसके अलावा, यह भी कहा गया कि इस कानून के लागू होने से निवेशकों का भरोसा कम होगा, जिससे राज्य में औद्योगिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

आरक्षण पर इतिहास और अन्य राज्यों का रुख

भारत में आरक्षण की परंपरा 1950 में संविधान के लागू होने के साथ शुरू हुई थी। मूल रूप से यह नीति अनुसूचित जातियों और जनजातियों के लिए बनाई गई थी, लेकिन समय के साथ इसे अन्य वर्गों और क्षेत्रों तक बढ़ाया गया।
हाल ही में, हरियाणा सरकार ने भी निजी क्षेत्र में 75% आरक्षण का कानून लागू किया है, लेकिन इसे भी कानूनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। झारखंड सरकार का यह कानून इन्हीं प्रयासों का हिस्सा था, लेकिन अदालत के हस्तक्षेप ने इसे रोक दिया।

सरकार की अगली रणनीति क्या होगी?

हेमंत सोरेन सरकार ने अदालत के इस फैसले पर निराशा व्यक्त की है। सरकार अब सुप्रीम कोर्ट जाने की योजना बना सकती है। मुख्यमंत्री ने अपने बयान में कहा है कि,
"हमारा उद्देश्य केवल राज्य के युवाओं को रोजगार दिलाना है। यह लड़ाई लंबी होगी, लेकिन हम अपने लोगों के लिए प्रयास करते रहेंगे।"

क्या कहता है औद्योगिक क्षेत्र?

उद्योग जगत के विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के कानूनों से प्रतिस्पर्धा और उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। निवेशक राज्य में रोजगार सृजन के लिए तभी आते हैं जब उन्हें काम करने की स्वतंत्रता मिले। अदालत का फैसला इस संदर्भ में उद्योगों के लिए राहत की तरह देखा जा रहा है।

झारखंड की जनता की प्रतिक्रिया

अदालत के इस फैसले ने झारखंड की जनता में मिश्रित प्रतिक्रियाएं पैदा की हैं। जहां कुछ लोग इसे सरकार की नीतियों की विफलता मान रहे हैं, वहीं अन्य का कहना है कि स्थानीय युवाओं को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।

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