झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: जमीनी कार्यकर्ताओं में बगावत का माहौल
झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की रणभेरी बज चुकी है। एनडीए और इंडिया गठबंधन में बगावत के सुर सुनाई दे रहे हैं। जानें खरसावां और सरायकेला सीटों का हाल।
22 अक्टूबर 2024: झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में सभी दल जुट गए हैं। एनडीए और इंडिया दोनों गठबंधन ने अपनी रणनीति तैयार कर ली है। जहां एनडीए ने प्रत्याशियों के नाम लगभग फाइनल कर दिए हैं, वहीं इंडिया गठबंधन में अब भी जिच बरकरार है।
हालात किसी भी दल के लिए अच्छे नहीं हैं। दोनों ही दलों ने जमीनी नेताओं और कार्यकर्ताओं की जगह पैराशूट प्रत्याशियों को तरजीह दी है। इसकी वजह से बगावत के सुर मुखर होने लगे हैं। खासकर, सरायकेला और खरसावां विधानसभा सीट पर स्थिति गंभीर हो गई है।
खरसावां सीट पर पिछले दस साल से झामुमो का कब्जा है। 2014 में झामुमो के दशरथ गगराई ने भाजपा के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को हराया था। तब से यह सीट झामुमो के पास है। इस बार भी गगराई की दावेदारी मजबूत है, हालांकि झामुमो ने प्रत्याशियों की घोषणा नहीं की है।
भाजपा ने अपनी पहली सूची जारी कर दी है, जिसमें खरसावां से पैराशूट उम्मीदवार सोनाराम बोदरा को टिकट दिया गया है। बोदरा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन के साथ भाजपा में प्रवेश किया। लेकिन, पार्टी के डेढ़ दर्जन स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस टिकट को लेकर नाराजगी जताई है। पूर्व विधायक मंगल सिंह सोय ने प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को पत्र लिखकर चुनाव की जिम्मेदारियों से मुक्त रहने का आग्रह किया है।
बोदरा जिला परिषद अध्यक्ष हैं और उनकी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है। लेकिन, क्या वह जमीनी कार्यकर्ताओं के बिना चुनाव जीत पाएंगे? यह देखने वाली बात होगी।
वहीं, खरसावां सीट पर टिकट की उम्मीद लगाए बैठे गणेश माहली ने खुली बगावत कर दी है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भाजपा के खिलाफ बिगुल फूंकते हुए चुनावी रणनीति बनाई है। वे अब झामुमो से टिकट की जुगत भिड़ाने में जुट गए हैं।
सरायकेला से भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन को टिकट दिया है। चंपाई ने 2014 और 2019 में गणेश माहली को हराया था। अब दोनों अलग-अलग दलों से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। हालांकि, माहली का झामुमो में टिकट अभी फाइनल नहीं हुआ है।
इस सीट पर भाजपा के एक और बागी बास्को बेसरा ने भी झामुमो जॉइन किया है। दोनों के नामों के चलते झामुमो के जमीनी कार्यकर्ताओं में नाराजगी बढ़ गई है।
चंपाई के पार्टी छोड़ने के बाद युवा नेता कृष्णा बास्के और डब्बा सोरेन ने झामुमो को संजीवनी दी। लेकिन, जैसे ही माहली और बेसरा का नाम चर्चा में आने लगा, कार्यकर्ताओं में मायूसी छाने लगी।
भाजपा और झामुमो दोनों के कार्यकर्ताओं के लिए ये चुनाव आसान नहीं होने वाले हैं। दोनों दलों के उम्मीदवारों को नाराज कार्यकर्ताओं का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि ये नेता अपनी पार्टी की जड़ों को कैसे मजबूत करते हैं और बगावत के माहौल को कैसे संभालते हैं।
जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, स्थिति और भी रोचक होती जाएगी।
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