Jamshedpur Vijay Divas: विद्यालयों में विजय संदेश से गूंजे शौर्य और पराक्रम की गाथाएँ!
जमशेदपुर में विजय दिवस के अवसर पर विद्यालयों में पूर्व सैनिकों द्वारा 'विजय संदेश' सुनाया गया, जिसमें 1971 के युद्ध और भारतीय सेना की वीरता की कहानी बच्चों को बताई गई। जानें इस कार्यक्रम के बारे में!
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जमशेदपुर: 16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की ऐतिहासिक विजय की 53वीं वर्षगांठ के अवसर पर विजय दिवस का आयोजन शहर भर के विद्यालयों में धूमधाम से किया गया। अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद, जमशेदपुर द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बच्चों को 1971 के युद्ध की वीरता और शौर्य की कहानी सुनाई गई, जिसे उन्होंने बड़े ध्यान से सुना और दिलों में सम्मान की भावना महसूस की। इस विशेष अवसर पर 'विजय संदेश' पढ़कर भारत की सैनिक पराक्रम को जीवित रखा गया।
क्या था विजय संदेश?
कार्यक्रम की शुरुआत में पूर्व सैनिकों और शिक्षा क्षेत्र के प्राचायों ने छात्रों को 'विजय संदेश' पढ़कर सुनाया, जिसमें उन्होंने युद्ध की गाथाओं को जीवंत किया। एक प्रसिद्ध कविता "इतनी सी बात हवाओं को बताए रखना..." के माध्यम से, उन्होंने बच्चों को समझाया कि हमारे शहीदों ने किस तरह देश की आज़ादी और सुरक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित किया।
इस विजय गाथा में बच्चों को बताया गया कि किस प्रकार, युद्ध के बाद पाकिस्तान के जनरल नियाजी ने 93,000 सैनिकों के साथ भारत के लेफ्टिनेट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के समक्ष आत्मसमर्पण किया था। यह ऐतिहासिक क्षण न केवल पाकिस्तान के लिए अपमान का कारण बना, बल्कि बांग्लादेश के अस्तित्व के रूप में एक नया देश भी बना दिया।
विजय दिवस के आयोजन में किसने लिया भाग?
अखिल भारतीय पूर्व सैनिक सेवा परिषद की ओर से आयोजित इस कार्यक्रम में जमशेदपुर के लगभग पांच स्कूलों के विद्यार्थियों ने भाग लिया। इनमें AIWC Academy, Bariyahi, St. Joshel High School, Netaji Subhash Bose Residential High School, Hindustan Mit Mandal, Golmuri और NTTF Golmuri प्रमुख थे।
कार्यक्रम में पूर्व सैनिक वरुण कुमार, सुखविंदर सिंह, उमेश कुमार सिंह, सत्य प्रकाश, रमेश राय, और सत्यप्रकाश सिंह जैसे वीरों ने विजय संदेश पढ़कर उन वीर शहीदों की यादों को ताजा किया जिन्होंने 1971 के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
1971 का युद्ध: भारतीय सेना की वीरता की कहानी
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 दुनिया के इतिहास में सबसे शौर्यपूर्ण युद्धों में से एक था। इस युद्ध ने भारत की सैन्य रणनीति, सैनिकों की वीरता और उनके अदम्य साहस को पूरी दुनिया के सामने रखा। सिर्फ 14 दिनों में, भारतीय सेना ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को आत्मसमर्पण करने पर मजबूर कर दिया और बांग्लादेश के रूप में एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ। यह युद्ध न केवल भारतीय सेना के वीरता की गाथा था, बल्कि यह भूगोल को भी बदलने वाला क्षण था।
शहर भर में इस युद्ध को याद करते हुए छात्रों को बताया गया कि यह पहली बार था जब एक सेना ने न सिर्फ इतिहास रचा, बल्कि दुनिया के नक्शे पर एक नया देश बना दिया। विजय दिवस के इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य युवाओं में भारतीय सेना की शौर्य और पराक्रम को जीवित रखना था।
शहीदों को श्रद्धांजलि और शौर्य पराक्रम यात्रा
कार्यक्रम के अंत में, भारत माता की जय और वीर शहीद अमर रहें के उद्घोष से वातावरण में ओज भर दिया गया। संगठन के अध्यक्ष विनय यादव और महामंत्री जितेंद्र सिंह ने कार्यक्रम का नेतृत्व किया।
इसके बाद, 22 दिसंबर को पूर्व सैनिक सेवा परिषद द्वारा शौर्य पराक्रम यात्रा निकाली जाएगी, जो विजय दिवस के शौर्यमय अवसर पर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेगी।
क्या हम अपने वीर सैनिकों को हमेशा याद रखेंगे?
विजय दिवस का यह आयोजन न केवल 1971 के युद्ध की महानता को याद करने का अवसर था, बल्कि यह हमारे सैनिकों की शौर्य और वीरता को भी जीवित रखने का एक प्रयास था। ऐसे आयोजनों से हमें यह सिखने को मिलता है कि हम अपने देश की आज़ादी और सुरक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पित करने वाले वीरों को कभी नहीं भूल सकते।
आप भी शहीदों को नमन करें और भारतीय सेना की वीरता की इस गाथा को अपने बच्चों और युवाओं तक पहुंचाएं।
क्या आप मानते हैं कि हमें हमेशा अपने वीर सैनिकों को याद रखना चाहिए? अपने विचार साझा करें!
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