India GDP Growth Slips: भारत में सुस्ती के संकेत, 2025 के लिए 6.4% GDP ग्रोथ अनुमान!
वित्त वर्ष 2025 के लिए भारत का जीडीपी अनुमान 6.4% रखा गया है, जो पिछले साल की तुलना में कम है। यह आर्थिक मंदी और चुनौतीपूर्ण आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है। जानें इस बदलाव के कारण और भविष्य पर इसका असर।
भारत में आर्थिक सुस्ती के संकेत बढ़ते जा रहे हैं। वित्त वर्ष 2025 के लिए नेशनल इनकम के पहले अग्रिम अनुमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में महज 6.4% की वृद्धि का अनुमान है, जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में बड़ा गिरावट है। यह अनुमान 2023-24 में देखी गई 8.2% की ग्रोथ से बहुत कम है, और सरकार के लिए यह एक चिंता का विषय बन गया है।
क्या हैं ये आंकड़े?
भारत सरकार ने मंगलवार को वित्त वर्ष 2024-25 के लिए जीडीपी के अग्रिम आंकड़े जारी किए हैं। इन आंकड़ों के अनुसार, आगामी वित्तीय वर्ष में भारत का GDP 6.4% बढ़ने की संभावना जताई जा रही है। यह पिछले चार सालों का सबसे कम ग्रोथ अनुमान है, जो साफ संकेत देता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था धीमी पड़ने जा रही है।
कम होते हुए GDP अनुमान
इन अनुमानों से पहले, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपनी ओर से वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 6.6% की जीडीपी ग्रोथ का अनुमान लगाया था। अब, सरकार का अनुमान इससे भी कम है, जोकि आर्थिक मंदी के बढ़ते खतरे को दर्शाता है। विशेष रूप से, वित्त वर्ष 2024 की जुलाई-सितंबर तिमाही में 5.4% की कम ग्रोथ दर ने नीति निर्माताओं को चौंका दिया, और इसके बाद RBI ने भी अपने पूर्वानुमान को 7.2% से घटाकर 6.6% कर दिया।
क्या कारण हैं मंदी के?
एक्सपर्ट्स मानते हैं कि इस गिरावट के पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले, कृषि क्षेत्र में धीमी वृद्धि और वैश्विक मंदी के असर को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। लेकिन यह भी सच है कि भारतीय सरकार के लिए आर्थिक मंदी को थामने का काम अब और मुश्किल हो गया है।
मूलभूत क्षेत्रों में क्या बदलाव हो सकता है?
गैर-कृषि क्षेत्र, जैसे कि विनिर्माण (manufacturing) और सेवाएँ (services), भी अपेक्षाकृत अधिक वृद्धि की उम्मीद नहीं जता रहे हैं। लेकिन फिर भी, सरकार ने यह अनुमान लगाया है कि कृषि क्षेत्र में 3.8% की वृद्धि हो सकती है, जो पिछले साल के 1.4% से ज्यादा है। वहीं, विनिर्माण क्षेत्र में 8.6% और सेवा क्षेत्र में 7.3% की वृद्धि की उम्मीद जताई गई है।
क्या इसका असर उपभोक्ता खर्च पर पड़ेगा?
उपभोक्ता खर्च पर भी असर दिखाई दे सकता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2025 के दौरान निजी अंतिम उपभोग व्यय (PFCE) में 7.3% की वृद्धि हो सकती है, जबकि पिछले वर्ष यह 4% रही थी। वहीं, सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (GFCE) में 4.1% की वृद्धि का अनुमान है। इससे साफ है कि आर्थिक सुधार की कोशिशों में सरकार के लिए नया बजट तैयार करना एक कठिन कार्य हो सकता है।
क्या हमें भविष्य में और गिरावट की संभावना है?
वित्त वर्ष 2024-25 के लिए इस अनुमानों के जारी होते ही यह स्पष्ट हो गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय हो सकता है। सरकार और नीति निर्माता इस संकट से उबरने के लिए क्या कदम उठाते हैं, यह समय बताएगा। लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि मंदी को टालने के लिए ठोस और मजबूत कदम उठाने होंगे, अन्यथा जीडीपी में और गिरावट देखने को मिल सकती है।
क्या हमें अब भी उम्मीद रखनी चाहिए?
इतिहास में भी कई बार भारतीय अर्थव्यवस्था ने मुश्किल हालातों का सामना किया है। हालांकि इस समय की स्थिति चुनौतीपूर्ण है, लेकिन भारतीय सरकार और आरबीआई ने आर्थिक सुधारों और कदमों को लागू करने के लिए कई प्रयास किए हैं। अगले कुछ महीनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि ये उपाय कितना असरदार साबित होते हैं और क्या भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से गति पकड़ पाती है।
अंत में
वित्त वर्ष 2025 के लिए जीडीपी ग्रोथ का अनुमान 6.4% तक घटने के संकेत साफ तौर पर दिखा रहे हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक कठिन दौर से गुजरने वाली है। हालांकि, ये आंकड़े हमें केवल एक दिशा दिखाते हैं; असली चुनौती उन उपायों को लागू करने में है, जो मंदी की इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए जरूरी हैं।
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