Chaibasa : चिरिया खदान में आदिवासियों के लिए 75% रोजगार की मांग, प्रबंधन को सौंपा गया ज्ञापन

चाईबासा के चिरिया खदान में स्थानीय आदिवासियों को 75% रोजगार की गारंटी और ठेका मजदूरों के लिए पीएफ, वेज स्लिप, और बोनस की मांग को लेकर प्रदर्शन किया गया। प्रबंधन के साथ हुई बातचीत में कई मुद्दों पर चर्चा हुई।

Aug 23, 2024 - 14:36
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Chaibasa : चिरिया खदान में आदिवासियों के लिए 75% रोजगार की मांग, प्रबंधन को सौंपा गया ज्ञापन
Chaibasa : चिरिया खदान में आदिवासियों के लिए 75% रोजगार की मांग, प्रबंधन को सौंपा गया ज्ञापन

चाईबासा, 24 अगस्त: पश्चिमी सिंहभूम जिले के मनोहरपुर प्रखंड स्थित चिरिया खदान में स्थानीय आदिवासियों के लिए रोजगार और मजदूरों के हक की मांग को लेकर शुक्रवार को एक बड़ा प्रदर्शन किया गया। आदिवासी समुदाय के लोगों ने जुलूस निकालकर खदान प्रबंधन को ज्ञापन सौंपा। उनकी प्रमुख मांगें 75% रोजगार की गारंटी, ठेका मजदूरों को पीएफ रसीद, वेज स्लिप, और बोनस देने को लेकर थीं।

प्रदर्शन का कारण: प्रदर्शनकारियों का कहना है कि चिरिया खदान में काम करने वाले अधिकतर मजदूर बाहरी हैं, जिससे स्थानीय आदिवासियों का पलायन बढ़ रहा है। जॉन मिरन मुंडा, जो इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे, ने कहा, "सेल खदान में पहले हाथ से माइनिंग और लोडिंग का काम होता था, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता था। अब खदान में मशीनों का इस्तेमाल बढ़ गया है और बाहरी लोगों को नौकरी मिल रही है। इससे आदिवासी मजबूरन पलायन कर रहे हैं।"

प्रबंधन के साथ वार्ता: जॉन मिरन मुंडा ने प्रबंधन के साथ वार्ता के दौरान कहा कि "चिरिया खदान एशिया का दूसरा सबसे बड़ा खदान है और यहां से सबसे ऊंचे ग्रेड का लौह अयस्क मिलता है। पहले, खदान में स्थानीय मजदूरों से काम करवाया जाता था, लेकिन अब मशीनों का इस्तेमाल और बाहरी लोगों की बहाली से स्थानीय लोगों को रोजगार से वंचित किया जा रहा है।"

प्रबंधन ने अपनी सफाई में कहा कि वर्तमान में केवल एक खदान चालू है, जबकि पहले छह खदानें चालू थीं। इसलिए वे अधिक रोजगार नहीं दे पा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि "हम लोग पैसा लेकर किसी की भी बहाली नहीं करते हैं। सारा बहाली परीक्षा के माध्यम से होती है और यह पूरे भारत के लिए होती है।"

मजदूरों के हक की मांग: प्रदर्शनकारियों ने यह भी आरोप लगाया कि खदान में काम करने वाले ठेका मजदूरों को उनका हक नहीं मिल रहा है। मजदूरों को न तो पीएफ रसीद दी जा रही है, न ही वेज स्लिप और बोनस मिल रहा है। प्रबंधन ने कहा कि इस मामले की जांच की जाएगी और मजदूरों को उनके अधिकार दिलाने की कोशिश की जाएगी।

खदान बंद होने का मुद्दा: प्रबंधन ने यह भी खुलासा किया कि 2026 के बाद खदान बंद हो जाएगा, जिससे सभी रोजगार समाप्त हो जाएंगे। जॉन मिरन मुंडा ने कहा कि "हम केंद्र सरकार से मांग करेंगे कि बंद खदान को दोबारा चालू किया जाए ताकि आदिवासी लोगों का पलायन रोका जा सके।"

आंदोलन का समर्थन: इस प्रदर्शन में स्थानीय नेता भी शामिल थे। मानसिंह त्रिया, जिला परिषद सदस्य प्रेम हेंब्रम, और लक्ष्मी टूटी ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया और कहा कि "हमारी मांगें जायज हैं और प्रबंधन को इन्हें गंभीरता से लेना चाहिए।"

 चिरिया खदान में रोजगार और मजदूरों के अधिकारों को लेकर यह आंदोलन आने वाले दिनों में और भी बड़ा रूप ले सकता है। स्थानीय आदिवासी समुदाय ने साफ कर दिया है कि वे अपने हक के लिए लड़ाई जारी रखेंगे। प्रबंधन ने उनकी मांगों को वरीय अधिकारियों तक पहुंचाने का आश्वासन दिया है, लेकिन यह देखना बाकी है कि उनकी मांगें कब और कैसे पूरी होती हैं।

यह घटना न केवल आदिवासियों के हक की लड़ाई है, बल्कि पूरे क्षेत्र के आर्थिक और सामाजिक संरचना को भी प्रभावित कर रही है। अगर खदान बंद होती है, तो इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। स्थानीय लोग सरकार से उम्मीद कर रहे हैं कि वे जल्द ही इस मामले में हस्तक्षेप करेंगे और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा करेंगे।

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Team India मैंने कई कविताएँ और लघु कथाएँ लिखी हैं। मैं पेशे से कंप्यूटर साइंस इंजीनियर हूं और अब संपादक की भूमिका सफलतापूर्वक निभा रहा हूं।