Chakulia Tiger News: बाघिन के खौफ से जंगल सूना, वन विभाग की तैयारी फेल

सिमलीपाल अभयारण्य से भागकर चाकुलिया पहुंची बाघिन जीनत के खौफ से जनजीवन अस्त-व्यस्त। वन विभाग की कोशिशें नाकाम। जानें पूरी घटना और ऑपरेशन की हर जानकारी।

Dec 14, 2024 - 20:09
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Chakulia Tiger News: बाघिन के खौफ से जंगल सूना, वन विभाग की तैयारी फेल
Chakulia Tiger News: बाघिन के खौफ से जंगल सूना, वन विभाग की तैयारी फेल

चाकुलिया, 14 दिसंबर 2024: ओडिशा के सिमलीपाल अभयारण्य से भागकर चाकुलिया के राजाबासा जंगल में पहुंची बाघिन जीनत ने इलाके में दहशत फैला दी है। पिछले छह दिनों से वन विभाग की टीमें उसे पकड़ने में नाकाम साबित हो रही हैं। इस बाघिन के कारण आसपास के गांवों में खौफ और असमंजस का माहौल बना हुआ है।

ग्रामीणों का जीवन अस्त-व्यस्त

राजाबासा जंगल में बाघिन की मौजूदगी के कारण आसपास के ग्रामीण जंगल में जाने से बच रहे हैं। मवेशियों को चराने ले जाना भी खतरे से खाली नहीं है। स्थिति यह है कि विद्यालयों और आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चों की उपस्थिति काफी कम हो गई है।

वन विभाग ने ध्वनि विस्तारक यंत्रों के माध्यम से ग्रामीणों को सतर्क रहने और अपने घरों से बाहर न निकलने की हिदायत दी है। लोग न तो जंगल में जाने की हिम्मत जुटा पा रहे हैं और न ही खेतों में काम कर पा रहे हैं।

वन विभाग की रणनीति

वन विभाग की टीमों ने बाघिन को पकड़ने के लिए राजाबासा साल जंगल में दो भैंसों को शिकार के रूप में बांधा है। योजना यह है कि बाघिन भैंसों का शिकार करने आए, और वन विभाग की टीम उसे ट्रैंक्विलाइजर गन से बेहोश करके पकड़ सके।

इस ऑपरेशन में ओडिशा और झारखंड की वन विभाग की टीमें शामिल हैं। दिन-रात की मेहनत के बावजूद बाघिन को पकड़ने में सफलता नहीं मिल पाई है।

सिमलीपाल से राजाबासा तक का सफर

बाघिन जीनत का असली घर सिमलीपाल टाइगर रिजर्व है, जो ओडिशा का प्रसिद्ध वन्यजीव अभयारण्य है। सिमलीपाल को 1973 में भारत के पहले टाइगर प्रोजेक्ट के तहत संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था। यह क्षेत्र बाघों, हाथियों और दुर्लभ वनस्पतियों के लिए जाना जाता है।

ऐतिहासिक रूप से, बाघों का इलाका इंसानों के साथ संघर्ष का कारण रहा है। सिमलीपाल से जंगलों के रास्ते चाकुलिया के राजाबासा जंगल तक बाघिन का आना बताता है कि जानवरों और इंसानों के बीच दूरी अब सिकुड़ रही है।

ग्रामीणों की चिंता बढ़ती जा रही है

राजाबासा जंगल के आसपास बसे कालियाम पंचायत के गांवों में दहशत का माहौल है। ग्रामीणों का कहना है कि बाघिन को पकड़ने में हो रही देरी उनकी जिंदगी और आजीविका दोनों पर भारी पड़ रही है।

ग्रामीणों ने कहा कि वन विभाग को इस ऑपरेशन में और भी कारगर तरीके अपनाने चाहिए। बाघिन के डर से लोग रातों को सो नहीं पा रहे हैं और हर समय सतर्क रहने को मजबूर हैं।

क्या कहते हैं वन्यजीव विशेषज्ञ?

वन्यजीव विशेषज्ञों का मानना है कि जंगली जानवरों के प्राकृतिक आवास सिकुड़ने के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं। इंसानी गतिविधियों के कारण बाघों जैसे जानवर अपने इलाके से बाहर आ रहे हैं।

यह बाघिन जंगल में शिकार के लिए आई है, लेकिन अब इसे वापस सिमलीपाल भेजना वन विभाग के लिए चुनौती बन गया है।

बाघिन पकड़ने का ऑपरेशन

वन विभाग ने राजाबासा जंगल में कई कैमरा ट्रैप लगाए हैं। साथ ही, बाघिन को ट्रैक करने के लिए ड्रोन कैमरे भी इस्तेमाल किए जा रहे हैं। लेकिन, जंगल के घने इलाके में बाघिन का मूवमेंट टीमों की पहुंच से बाहर है।

वन विभाग की टीमों का कहना है कि वे हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। लेकिन, बाघिन को नुकसान पहुंचाए बिना उसे पकड़ना प्राथमिकता है।

बाघिन जीनत को पकड़ने के लिए चल रहा यह ऑपरेशन न केवल वन विभाग के लिए, बल्कि ग्रामीणों के लिए भी तनावपूर्ण स्थिति है। इस घटना ने इंसानों और वन्यजीवों के बीच बढ़ते संघर्ष की समस्या को फिर से उजागर कर दिया है।

क्या बाघिन को जल्द पकड़ा जाएगा, या यह ऑपरेशन और लंबा खिंचेगा? इस सवाल का जवाब सभी जानना चाहते हैं।

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Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।