Birni Action: वन विभाग ने ध्वस्त किया अवैध निर्माण, विवाद बढ़ा

बिरनी प्रखंड के बाराडीह पंचायत में वन विभाग ने पिपराडीह में वनभूमि पर बन रहे घर को जेसीबी से गिरा दिया। जानें इस कार्रवाई का पूरा मामला और पीड़ित की प्रतिक्रिया।

Dec 3, 2024 - 11:27
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Birni Action: वन विभाग ने ध्वस्त किया अवैध निर्माण, विवाद बढ़ा
Birni Action: वन विभाग ने ध्वस्त किया अवैध निर्माण, विवाद बढ़ा

बिरनी प्रखंड के बाराडीह पंचायत के पिपराडीह गांव में वन विभाग ने अवैध रूप से वनभूमि पर बनाए जा रहे घर को ध्वस्त करने की कार्रवाई की। यह कार्रवाई वन विभाग के रेंजर एसके रवि के नेतृत्व में हुई। इस पूरे मामले ने गांव में चर्चा का विषय बना दिया है, और स्थानीय निवासियों के बीच कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्या था पूरा मामला?

पिपराडीह में कलीम अंसारी और तुलसी तुरी नामक दो स्थानीय निवासी वनभूमि पर नया घर बना रहे थे।

  • गुप्त सूचना का खुलासा:
    वन विभाग को गुप्त सूचना मिली कि ये लोग वन भूमि पर घर बना रहे हैं, जो पूरी तरह से अवैध था।
  • पहले की चेतावनी:
    वन विभाग ने पहले ही घर बना रहे लोगों को चेतावनी दी थी कि वे ऐसा न करें। लेकिन चेतावनी के बावजूद निर्माण कार्य रुका नहीं।

वन विभाग की कार्रवाई का तरीका

वन विभाग ने वरीय अधिकारियों के निर्देश पर जेसीबी मशीन का उपयोग करके अवैध निर्माण को ध्वस्त कर दिया।

  • कर्मचारियों की भूमिका:
    इस कार्रवाई में वन विभाग के कर्मचारी अनु सोरेन, सुमित कुमार सिंह, और श्रुति कुमारी शामिल थे।

पीड़ित का बयान

घटना के बाद कलीम अंसारी ने कहा कि वन विभाग ने बिना किसी नोटिस के उनके घर को गिरा दिया।

  • नोटिस की कमी:
    पीड़ित ने शिकायत की कि उन्हें पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था और अचानक घर को तोड़ दिया गया।

इतिहास और वन भूमि विवाद

इस तरह के मामले पहले भी भारत के विभिन्न हिस्सों में सामने आ चुके हैं। वन भूमि पर अवैध निर्माण करना एक गंभीर मुद्दा है, जो पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय वन्य जीवन के लिए खतरा बन सकता है।

  • वन अधिकार अधिनियम:
    वन विभाग की यह कार्रवाई वन अधिकार अधिनियम के तहत की गई है, जिसमें वनभूमि का अवैध उपयोग रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश दिए गए हैं।

वह सवाल जो बाकी रह गया

अब सवाल यह उठता है कि क्या वन विभाग को कार्रवाई से पहले नोटिस देना चाहिए था, जैसा कि कलीम अंसारी ने आरोप लगाया?

  • स्थानीय दृष्टिकोण:
    कुछ गांववासियों का कहना है कि वन विभाग ने कड़ी कार्रवाई करने के बजाय समझाने का प्रयास करना चाहिए था।
  • प्रशासनिक दृष्टिकोण:
    वन विभाग के अधिकारी मानते हैं कि यह कार्रवाई पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी थी।

कानूनी पक्ष और आगे की कार्रवाई

इस प्रकार के मामलों में, पीड़ितों के पास अदालत में जाने का विकल्प होता है।

  • कानूनी सलाह:
    विशेषज्ञों का कहना है कि पीड़ितों को सलाह दी जाती है कि वे वन अधिकार से संबंधित मामलों में कानूनी कार्रवाई कर सकते हैं।

आपकी राय क्या है?

क्या आपको लगता है कि वन विभाग को इस तरह की कार्रवाई से पहले नोटिस देना चाहिए था? नीचे अपनी राय साझा करें।

बिरनी प्रखंड में हुई इस घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि वन विभाग को ऐसे मामलों में कैसे और कब कार्रवाई करनी चाहिए। यह भी एक मौका है कि भविष्य में बेहतर समाधान के लिए प्रशासन और स्थानीय लोगों के बीच संवाद बढ़ाया जाए।

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