Telangana forest protest: कांचा गाचीबोवली में IT पार्क के लिए चल रहे बुलडोजर, छात्रों और पर्यावरणविदों में उबाल
तेलंगाना सरकार द्वारा हैदराबाद के पास कांचा गाचीबोवली जंगल में IT पार्क बनाने के लिए 400 एकड़ क्षेत्र में पेड़ों की कटाई से पर्यावरणविद, HCU छात्र और स्थानीय लोग नाराज़। जानवरों का विस्थापन और जैव विविधता पर संकट।

हैदराबाद: तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से सटे कांचा गाचीबोवली जंगल में इन दिनों बुलडोजर की आवाजें पेड़ों की सरसराहट को दबा रही हैं। राज्य सरकार की ओर से यहां 400 एकड़ जंगल भूमि पर IT पार्क बनाने की योजना पर काम शुरू हो चुका है। लेकिन इसके विरोध में उठ रही आवाजें अब राज्यव्यापी आंदोलन का रूप लेती दिख रही हैं।
जंगल जहां हजारों जीवों का घर
कांचा गाचीबोवली का यह इलाका न सिर्फ हरियाली से भरा है, बल्कि यहां 200 से अधिक पक्षी प्रजातियां, जानवर, और प्राकृतिक संरचनाएं जैसे मशरूम रॉक, बफ़ेलो लेक और पीकॉक लेक भी मौजूद हैं। यह क्षेत्र वर्षों से प्राकृतिक जैव विविधता का केंद्र रहा है और इसे लेकर स्थानीय लोगों की भावनाएं गहरी जुड़ी हुई हैं।
सरकार का उद्देश्य क्या है?
तेलंगाना सरकार, मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के नेतृत्व में, इस जंगल को साफ कर वहां एक आधुनिक IT पार्क विकसित करना चाहती है। सरकार का मानना है कि इससे राज्य की डिजिटल इकोनॉमी को बूस्ट मिलेगा और रोज़गार के नए अवसर बनेंगे।
हालांकि, राज्य सरकार यह भी दावा कर रही है कि परियोजना के तहत पर्यावरण प्रबंधन योजना (EMP) तैयार की गई है और ऐतिहासिक चट्टानों जैसी संरचनाओं को बचाया जाएगा।
HCU छात्रों का विरोध और स्थानीय लोगों की नाराज़गी
हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (HCU) के छात्रों ने इस जंगल कटाई के खिलाफ जोरदार विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि यह कदम पर्यावरण के साथ अन्याय है और इससे हजारों जानवरों का विस्थापन होगा।
HCU छात्रों के अलावा स्थानीय पर्यावरणविद और नागरिक संगठन भी इस कार्रवाई को “विकास के नाम पर विनाश” बता रहे हैं।
भाजपा नेता ने क्या कहा?
भाजपा नेता द्वारिका शर्मा ने तेलंगाना सरकार की इस नीति पर सवाल उठाते हुए कहा:
“अगर सरकार को IT पार्क बनाना है तो वह ऐसी जमीन तलाशे जहां जंगल न हो। जंगलों को उजाड़कर विकास करना नैतिक और पर्यावरणीय रूप से गलत है।”
उन्होंने सरकार से आग्रह किया कि वैकल्पिक स्थानों की पहचान कर पर्यावरण संतुलन बनाए रखा जाए।
जंगल की जमीन पर किसका अधिकार?
दिलचस्प बात यह है कि इस जमीन को लेकर तेलंगाना राज्य सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच लंबे समय से विवाद चल रहा है। दोनों पक्ष इस भूमि पर अपना दावा करते रहे हैं, जिससे स्थिति और भी जटिल हो गई है।
क्या है पर्यावरणविदों की मांग?
पर्यावरणविदों का कहना है कि अगर यह जंगल नष्ट हुआ, तो इसके प्रभाव स्थानीय जलवायु, पक्षी प्रवास, वन्यजीवों के आवास और कार्बन संतुलन पर गंभीर होंगे। वे चाहते हैं कि इस क्षेत्र को अर्बन फॉरेस्ट या इको टूरिज्म ज़ोन के रूप में संरक्षित किया जाए, जिससे विकास और संरक्षण दोनों साथ चल सकें।
Telangana forest protest अब केवल एक स्थानीय मामला नहीं रहा। यह उस बड़े सवाल की ओर इशारा करता है — क्या विकास की राह हमेशा हरियाली की कुर्बानी से ही गुजरती है?
जैसे-जैसे आवाजें तेज़ हो रही हैं, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार क्या रुख अपनाती है। क्या वह पर्यावरण के साथ संतुलन बनाते हुए विकास की ओर बढ़ेगी, या फिर विरोध को दरकिनार कर 'प्रगति' की बुलडोज़र चलाती रहेगी?
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