Shibu Soren Birthday Celebration: शिबू सोरेन का 81वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया, क्या है गुरुजी की आगामी योजनाएं?
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। जानिए उनके संघर्ष, राज्य के विकास और हेमंत सोरेन की योजनाओं के बारे में!
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद गुरुजी शिबू सोरेन का 81वां जन्मदिन झारखंड में धूमधाम से मनाया गया। शिबू सोरेन, जो झारखंड अलग राज्य आंदोलन के प्रमुख अगुवाओं में से एक रहे हैं, आज भी राज्य की राजनीति में एक मजबूत पहचान रखते हैं। उनके जन्मदिन के इस खास मौके पर उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उन्हें शुभकामनाएं दीं और उनका आशीर्वाद प्राप्त किया।
इस समारोह में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, बहू समेत पूरे परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। जन्मदिन के इस मौके पर 81 पाउंड का विशाल केक काटा गया और खुशियों के इस पल को परिवार और समर्थकों ने मिलकर मनाया। शिबू सोरेन ने अपनी शुभकामनाओं में कहा कि उनका सपना है कि झारखंड खुशहाल हो और राज्य के हर नागरिक का कल्याण हो। उनके चेहरे पर मुस्कान और आशीर्वादों का यह अद्वितीय पल उनके जीवन के संघर्ष और प्रेरणा को दर्शाता है।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा: संघर्ष से सफलता तक
गुरुजी शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के एक संथाली परिवार में हुआ था। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिससे झारखंड राज्य का गठन हुआ। शिबू सोरेन की संघर्ष यात्रा में महाजनी प्रथा और कटनी आंदोलन जैसे मुद्दे भी शामिल हैं, जिन पर उन्होंने सरकार से संघर्ष किया।
शिबू सोरेन की राजनीतिक पहचान 1977 में टूंडी सीट से हुई, हालांकि उस समय वे विधानसभा चुनाव हार गए थे। लेकिन उनके नेतृत्व में झारखंड के आदिवासी समुदाय की आवाज उठी, और इस संघर्ष ने उन्हें दिशोम गुरु का दर्जा दिलवाया। इसके बाद 1980 में उन्होंने दुमका सीट से पहली बार संसद में कदम रखा और उसके बाद उन्होंने कई बार लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में वे दुमका लोकसभा सीट से संसद पहुंचे।
इसके अलावा, शिबू सोरेन राज्यसभा के सांसद भी रहे और उन्होंने 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री का पद भी संभाला। 2 मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल 9 दिन बाद ही उन्हें पद से हटा दिया गया। हालांकि, 27 अगस्त 2008 को एक बार फिर से वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन 11 जनवरी 2009 को उन्हें तमाड़ सीट से हार का सामना करना पड़ा और वे मुख्यमंत्री पद से हट गए।
हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की भूमिका
शिबू सोरेन का संघर्ष हमेशा जारी रहा, लेकिन उनके बाद झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में उनका बेटा हेमंत सोरेन लगातार 6 साल से कार्य कर रहे हैं। हेमंत सोरेन ने झारखंड के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई हैं और राज्य को आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से मजबूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं।
गुरुजी शिबू सोरेन की आगामी योजनाएं
शिबू सोरेन के 81वें जन्मदिन के मौके पर यह साफ है कि वे राज्य के विकास में अपनी भूमिका निभाने के लिए संकल्पित हैं। उनकी दृष्टि झारखंड को एक खुशहाल और समृद्ध राज्य बनाने की है, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर मिल सके।
गुरुजी शिबू सोरेन का संघर्ष केवल एक राज्य की सीमाओं तक ही नहीं, बल्कि उनके लिए यह एक पूरे समाज और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था। उनके संघर्ष की कहानी राज्य की राजनीति में एक अहम मील का पत्थर है। अब जब उनका बेटा हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं, तो यह देखना होगा कि गुरुजी की विरासत और उनकी योजनाओं का क्या प्रभाव राज्य के विकास में पड़ेगा।
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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन का 81वां जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। जानिए उनके संघर्ष, राज्य के विकास और हेमंत सोरेन की योजनाओं के बारे में!
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इस समारोह में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन, बहू समेत पूरे परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। जन्मदिन के इस मौके पर 81 पाउंड का विशाल केक काटा गया और खुशियों के इस पल को परिवार और समर्थकों ने मिलकर मनाया। शिबू सोरेन ने अपनी शुभकामनाओं में कहा कि उनका सपना है कि झारखंड खुशहाल हो और राज्य के हर नागरिक का कल्याण हो। उनके चेहरे पर मुस्कान और आशीर्वादों का यह अद्वितीय पल उनके जीवन के संघर्ष और प्रेरणा को दर्शाता है।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा: संघर्ष से सफलता तक
गुरुजी शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड के एक संथाली परिवार में हुआ था। झारखंड अलग राज्य के आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, जिससे झारखंड राज्य का गठन हुआ। शिबू सोरेन की संघर्ष यात्रा में महाजनी प्रथा और कटनी आंदोलन जैसे मुद्दे भी शामिल हैं, जिन पर उन्होंने सरकार से संघर्ष किया।
शिबू सोरेन की राजनीतिक पहचान 1977 में टूंडी सीट से हुई, हालांकि उस समय वे विधानसभा चुनाव हार गए थे। लेकिन उनके नेतृत्व में झारखंड के आदिवासी समुदाय की आवाज उठी, और इस संघर्ष ने उन्हें दिशोम गुरु का दर्जा दिलवाया। इसके बाद 1980 में उन्होंने दुमका सीट से पहली बार संसद में कदम रखा और उसके बाद उन्होंने कई बार लोकसभा में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। 1989, 1991, 1996, 2002, 2004, 2009 और 2014 में वे दुमका लोकसभा सीट से संसद पहुंचे।
इसके अलावा, शिबू सोरेन राज्यसभा के सांसद भी रहे और उन्होंने 2004 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार में कोयला मंत्री का पद भी संभाला। 2 मार्च 2005 को वे पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन केवल 9 दिन बाद ही उन्हें पद से हटा दिया गया। हालांकि, 27 अगस्त 2008 को एक बार फिर से वे मुख्यमंत्री बने, लेकिन 11 जनवरी 2009 को उन्हें तमाड़ सीट से हार का सामना करना पड़ा और वे मुख्यमंत्री पद से हट गए।
हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की भूमिका
शिबू सोरेन का संघर्ष हमेशा जारी रहा, लेकिन उनके बाद झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में उनका बेटा हेमंत सोरेन लगातार 6 साल से कार्य कर रहे हैं। हेमंत सोरेन ने झारखंड के विकास के लिए कई योजनाएं बनाई हैं और राज्य को आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण से मजबूत बनाने के लिए कदम उठाए हैं।
गुरुजी शिबू सोरेन की आगामी योजनाएं
शिबू सोरेन के 81वें जन्मदिन के मौके पर यह साफ है कि वे राज्य के विकास में अपनी भूमिका निभाने के लिए संकल्पित हैं। उनकी दृष्टि झारखंड को एक खुशहाल और समृद्ध राज्य बनाने की है, जहां हर व्यक्ति को समान अवसर मिल सके।
गुरुजी शिबू सोरेन का संघर्ष केवल एक राज्य की सीमाओं तक ही नहीं, बल्कि उनके लिए यह एक पूरे समाज और संस्कृति की रक्षा का प्रश्न था। उनके संघर्ष की कहानी राज्य की राजनीति में एक अहम मील का पत्थर है। अब जब उनका बेटा हेमंत सोरेन राज्य के मुख्यमंत्री हैं, तो यह देखना होगा कि गुरुजी की विरासत और उनकी योजनाओं का क्या प्रभाव राज्य के विकास में पड़ेगा।
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