Dr. B.R. Ambedkar Tribute: साकची में डॉ. अंबेडकर की 135वीं जयंती पर हुआ भव्य कार्यक्रम, संविधान निर्माता को किया नमन

साकची के पुराने कोर्ट परिसर में डॉ. भीमराव अंबेडकर की 135वीं जयंती पर माल्यार्पण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सैकड़ों लोग जुटे, संविधान निर्माता के योगदान को किया गया याद।

Apr 14, 2025 - 14:02
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Dr. B.R. Ambedkar  Tribute: साकची में डॉ. अंबेडकर की 135वीं जयंती पर हुआ भव्य कार्यक्रम, संविधान निर्माता को किया नमन
Dr. B.R. Ambedkar Tribute: साकची में डॉ. अंबेडकर की 135वीं जयंती पर हुआ भव्य कार्यक्रम, संविधान निर्माता को किया नमन

झारखंड के जमशेदपुर स्थित साकची के पुराने कोर्ट परिसर में आज एक अलग ही नजारा देखने को मिला।
135वीं अंबेडकर जयंती के अवसर पर यहां हजारों की भीड़ उमड़ी।
हर कोई एक ही मकसद से आया था—संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धांजलि देने।

नेता दिनेश साव विशेष रूप से इस अवसर पर माल्यार्पण करने पहुंचे।
उनके साथ समाज के सभी वर्गों के लोग डॉ. अंबेडकर की प्रतिमा के समक्ष
फूलों से भरे हाथ और गर्व से भरा सीना लेकर खड़े थे।

डॉ. अंबेडकर: सिर्फ नाम नहीं, भारत के आत्मसम्मान की पहचान

डॉ. भीमराव अंबेडकर का नाम सुनते ही आज भी संविधान, अधिकार और सामाजिक न्याय की छवि बनती है।
1910 से 1956 तक का उनका संघर्ष सिर्फ उनके लिए नहीं था—बल्कि पूरे भारत के दबे-कुचले वर्गों के लिए था।

वे पहले दलित थे जिन्होंने कोलंबिया यूनिवर्सिटी और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से उच्च शिक्षा प्राप्त की।
1950 में जब भारतीय संविधान लागू हुआ, तो इसके प्रमुख वास्तुकार के तौर पर अंबेडकर का नाम हमेशा के लिए अमर हो गया।

आज जब नेता, छात्र, महिलाएं और बच्चे 135वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे,
तो वह सिर्फ एक परंपरा नहीं, बल्कि एक आत्मिक आभार था।

दिनेश साव बोले—"अंबेडकर की सोच आज भी प्रासंगिक है"

कार्यक्रम में शामिल हुए नेता दिनेश साव ने मंच से कहा—

"आज हम जो भी अधिकारों की बात करते हैं,
चाहे वो शिक्षा का अधिकार हो, या सम्मान से जीने का हक—ये सब डॉ. अंबेडकर की देन है।
उन्होंने संविधान में वो ताकत दी, जिससे आम आदमी भी सर उठा कर जी सकता है।"

उन्होंने लोगों से अपील की कि
"अंबेडकर सिर्फ एक दिन के श्रद्धासुमन से नहीं, उनकी विचारधारा को अपनाकर ही सच्चा सम्मान दिया जा सकता है।"

साकची कोर्ट परिसर में दिखी सामाजिक एकता की झलक

इस कार्यक्रम की एक खास बात ये रही कि यहां हर जाति, हर धर्म और हर वर्ग के लोग शामिल हुए।
यह नजारा आज के समाज में एक खूबसूरत संदेश छोड़ गया—
"अंतर सिर्फ जन्म का होता है, अधिकार सबके बराबर हैं।"

महिलाओं ने पारंपरिक पोशाकों में नारे लगाए—
"जय भीम! संविधान जिंदाबाद!"

बच्चों ने अंबेडकर के विचारों पर भाषण दिए और उनके जीवन पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई।

इतिहास में पहली बार नहीं, बार-बार होता रहा है ऐसा सैलाब

झारखंड के कई हिस्सों में अंबेडकर जयंती पर इस तरह के आयोजन होते रहे हैं,
लेकिन साकची का यह आयोजन विशेष इसलिए था क्योंकि
यहां की जनता ने अपने स्तर पर इस कार्यक्रम को जन आंदोलन बना दिया।

हर गली, हर नुक्कड़ पर आज बस एक ही चर्चा थी—
"बाबा साहेब की सोच आज भी जिंदा है।"

डॉ. अंबेडकर की वो बातें जो आज भी सिखाने लायक हैं:

  1. "शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो।"

  2. "जो समुदाय अपनी इतिहास नहीं जानता, वो समुदाय कभी इतिहास नहीं बना सकता।"

  3. "हम भारतीय हैं, भारत भारतियों का है, और रहेगा।"

आज जब सामाजिक न्याय की बात होती है,
आरक्षण की बहस होती है, या महिलाओं के अधिकारों की आवाज उठती है,
तो हर कोई बाबा साहेब की लिखी उस संविधान की किताब की तरफ देखता है
जिसने भारत को वास्तव में एक लोकतंत्र बनाया।

अंबेडकर को सिर्फ याद नहीं, अपनाना होगा

इस बार की अंबेडकर जयंती सिर्फ फूलों और भाषणों की रस्म नहीं रही।
यह दिन बना एक प्रेरणा का प्रतीक,
जहां हर कोई समझ रहा था कि
भारत का भविष्य अंबेडकर की सोच को अपनाने में ही है।

क्या आप तैयार हैं उस सोच को अपनाने के लिए?

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।