Jamshedpur Encroachment Drama: आदिवासियों की शमशान भूमि पर कब्जे की कोशिश, रातों-रात बनाई दीवार तोड़ी

जमशेदपुर के उलीडीह थाना क्षेत्र में आदिवासियों की शमशान भूमि पर भूमाफियाओं द्वारा अतिक्रमण की कोशिश की गई, जिसके विरोध में आदिवासी समुदाय ने अवैध दीवार और टीना ढहा दिया। प्रशासन की चुप्पी से गुस्से में हैं स्थानीय लोग।

Apr 14, 2025 - 14:05
 0
Jamshedpur Encroachment Drama: आदिवासियों की शमशान भूमि पर कब्जे की कोशिश, रातों-रात बनाई दीवार तोड़ी
Jamshedpur Encroachment Drama: आदिवासियों की शमशान भूमि पर कब्जे की कोशिश, रातों-रात बनाई दीवार तोड़ी

सोमवार की सुबह जब जमशेदपुर के उलीडीह थाना क्षेत्र में आदिवासियों ने शमशान भूमि पर बनी अवैध दीवार को तोड़ा, तब तक प्रशासन की आंखें खुली भी नहीं थीं। सवाल ये है कि क्या आदिवासी समुदाय की जमीन पर भूमाफियाओं का कब्जा अब ‘आस्था’ की ओट में जायज हो चुका है? या फिर प्रशासन की चुप्पी किसी मिलीभगत की कहानी कह रही है?

अतिक्रमण की रात और टूटती सुबह

स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि कुछ भूमाफिया तत्वों ने रातों-रात उनकी शमशान भूमि पर अवैध रूप से चहारदीवारी और टीना की संरचना खड़ी कर दी। सुबह होते ही जब गांववालों को इस अतिक्रमण की भनक लगी, तो गुस्से में उबलते समुदाय ने एकजुट होकर अवैध दीवार को ढहा दिया।

यह कोई पहली घटना नहीं है। वर्षों से झारखंड में आदिवासी जमीनों पर कब्जे की कोशिशें होती रही हैं। लेकिन इस बार मामला भावनाओं से जुड़ा है—शमशान भूमि की पवित्रता से खिलवाड़ किया गया है।

इतिहास में झांकें तो...

झारखंड की आदिवासी संस्कृति में ‘मातृभूमि’ और ‘शवभूमि’ दोनों ही अत्यंत पवित्र माने जाते हैं। मुण्डा, संथाल और हो समुदायों में शमशान भूमि को देवस्थान के बराबर माना जाता है। ऐसे में इस जमीन पर अवैध कब्जा सिर्फ कानूनी नहीं, सांस्कृतिक अपराध भी है।

प्रशासन की चुप्पी पर सवाल

आदिवासी समाजसेवी और संरक्षक दीपक सुई ने इस विषय में एसडीओ और डीसी को पहले ही सूचित कर दिया था। उन्होंने अतिक्रमण की तस्वीरें, वीडियो और लोकेशन प्रशासन को सौंप दी थी। बावजूद इसके, न तो कोई जांच हुई, न ही कोई कार्रवाई।

दीपक सुई ने तीखे शब्दों में कहा, "अगर प्रशासन हमारी जमीन की रक्षा नहीं करेगा, तो हमें खुद खड़ा होना पड़ेगा। हमारी आस्था से बड़ा कोई कानून नहीं हो सकता।"

आदिवासी अस्मिता की लड़ाई

यह केवल जमीन का मामला नहीं है। यह आदिवासी अस्मिता, उनके संस्कार, और उनके सांस्कृतिक अधिकारों की लड़ाई है। एक समुदाय जो सैकड़ों वर्षों से जंगल, जमीन और जल से जुड़ा रहा है, आज अपनी ही मिट्टी से बेदखल किया जा रहा है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि यह सिर्फ शुरुआत है। यदि प्रशासन ने इस पर समय रहते ठोस कार्रवाई नहीं की, तो वे उग्र आंदोलन करने पर विवश होंगे।

क्या अब कानून जागेगा?

झारखंड में आदिवासी जमीन की सुरक्षा के लिए CNT और SPT एक्ट जैसे कठोर कानून हैं। फिर भी बार-बार ऐसे मामले सामने आना इन कानूनों की उपयोगिता पर सवाल खड़े करता है। आखिर ऐसी ज़मीनों पर रातों-रात निर्माण कैसे हो जाता है? प्रशासन की निगरानी प्रणाली क्या पूरी तरह फेल हो चुकी है?

अंतिम सवाल

क्या आदिवासी समुदाय को अब अपनी जमीन बचाने के लिए खुद कानून हाथ में लेना होगा? या फिर प्रशासन जागेगा और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई कर इस समुदाय का भरोसा फिर से कायम करेगा?

What's Your Reaction?

like

dislike

love

funny

angry

sad

wow

Nihal Ravidas निहाल रविदास, जिन्होंने बी.कॉम की पढ़ाई की है, तकनीकी विशेषज्ञता, समसामयिक मुद्दों और रचनात्मक लेखन में माहिर हैं।