Ranchi Scam: पेयजल विभाग में 160 करोड़ का गबन! पांच साल तक सिस्टम को चूना लगाता रहा 'गठजोड़'

रांची के पेयजल और स्वच्छता विभाग में 2019 से 2024 तक 160 करोड़ रुपये के घोटाले का खुलासा हुआ है। जांच में इंजीनियरों और कोषागार अधिकारियों की मिलीभगत उजागर हुई है।

Apr 8, 2025 - 09:43
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Ranchi Scam: पेयजल विभाग में 160 करोड़ का गबन! पांच साल तक सिस्टम को चूना लगाता रहा 'गठजोड़'
Ranchi Scam: पेयजल विभाग में 160 करोड़ का गबन! पांच साल तक सिस्टम को चूना लगाता रहा 'गठजोड़'

रांची, झारखंड – पेयजल और स्वच्छता विभाग, जो आम जनता को साफ पानी पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाता है, अब खुद घोटाले के गंदे पानी में डूबता नजर आ रहा है।
वर्ष 2019 से 2024 तक के दौरान इस विभाग में लगभग 160 करोड़ रुपये के भारी-भरकम गबन की परतें अब खुलने लगी हैं।

इस सनसनीखेज खुलासे की पुष्टि वित्त विभाग की सात सदस्यीय अंतर विभागीय जांच कमेटी ने की है, जिसने जांच के बाद रिपोर्ट में इंजीनियरों और कोषागार के अफसरों की मिलीभगत की पुष्टि की है।

160 करोड़ का खेल कैसे हुआ?

कार्यपालक अभियंता, स्वर्णरेखा शीर्ष प्रमंडल, रांची कार्यालय के ज़रिए वर्ष 2019-20 से 2023-24 तक करीब 160 करोड़ रुपये के कार्यों का भुगतान किया गया।
लेकिन जांच रिपोर्ट में सामने आया कि इसमें से कई फर्जी बिलों और अवैध निकासी के ज़रिए पैसे का गबन किया गया।

विशेष तौर पर डीडीओ कोड RNCDWSS 001 के तहत तीन करोड़ रुपये से अधिक की अवैध निकासी दर्ज की गई है।

इस कोड से:

  • 2019-20 में 2.71 करोड़ रुपये

  • 2018-19 में 5.10 लाख रुपये

  • 2022-23 में 9.01 लाख रुपये

  • कुल मिलाकर 34.15 लाख रुपये की सीधी चोरी सामने आई है।

इतिहास की परतें: ये पहला मामला नहीं!

अगर झारखंड के घोटालों के इतिहास पर नजर डालें, तो 2006 का मधु कोड़ा घोटाला, 2012 का चारा घोटाला, और अब 2024 में पेयजल विभाग घोटाला, यह सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा।

हर बार ‘विकास’ के नाम पर आम आदमी की जेब से पैसे निकालकर सिस्टम के अंदर के लोग ही लूट लेते हैं

ऑडिट की सिफारिश और नए खुलासों की उम्मीद

जांच कमेटी ने 2012-13 से लेकर 2023-24 तक विशेष ऑडिट कराने की सिफारिश की है।
इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि निलंबित रोकड़पाल संतोष कुमार जिस-जिस प्रमंडल में कार्यरत रहे, वहां भी विशेष जांच कराई जाए।

इसके अलावा गोंदा, रांची पूर्व, नागरिक अंचल और अधीक्षण अभियंता कार्यालयों की भी गहराई से ऑडिट कराना ज़रूरी बताया गया है।

डीडीओ की भूमिका सवालों के घेरे में

जांच कमेटी का मानना है कि डीडीओ यानी व्ययन और निकासी पदाधिकारी की भूमिका बेहद संदिग्ध है।
अक्सर डीडीओ की मंजूरी के बिना सरकारी पैसों की निकासी संभव नहीं होती, ऐसे में सवाल उठता है कि —
क्या यह पूरा घोटाला उच्च स्तर से संरक्षित था?

जनता के पैसों की बर्बादी, जवाबदेही कौन तय करेगा?

ये मामला सिर्फ एक घोटाले का नहीं, बल्कि सिस्टम की उस नाकामी का आइना है, जो आम आदमी के विश्वास को हर दिन तोड़ता है।

जब सरकारें 'हर घर जल योजना' जैसे स्लोगन देती हैं और उनके भीतर के विभाग ही जल को कम, पैसा बहाने में लगे हों — तो सवाल उठना लाज़मी है:
क्या पानी भी अब भ्रष्टाचार में डूब चुका है?

अब आगे क्या?

  • क्या इस रिपोर्ट के बाद किसी बड़े अधिकारी पर कार्रवाई होगी?

  • क्या इस पूरे घोटाले के मास्टरमाइंड तक पहुंचा जाएगा या मामला फाइलों में दफन हो जाएगा?

  • क्या जनता को कभी ये जानने मिलेगा कि उनका पैसा कहां और कैसे बर्बाद हुआ?

इन सवालों के जवाब शायद आने वाले कुछ महीनों में मिलें, लेकिन तब तक 160 करोड़ की यह कहानी सिर्फ एक और घोटाले की फेहरिस्त में जुड़ चुकी है।

आपका क्या मानना है? क्या सरकारी विभागों में पारदर्शिता की उम्मीद अब भी की जा सकती है?

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Manish Tamsoy मनीष तामसोय कॉमर्स में मास्टर डिग्री कर रहे हैं और खेलों के प्रति गहरी रुचि रखते हैं। क्रिकेट, फुटबॉल और शतरंज जैसे खेलों में उनकी गहरी समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता उन्हें एक कुशल खेल विश्लेषक बनाती है। इसके अलावा, मनीष वीडियो एडिटिंग में भी एक्सपर्ट हैं। उनका क्रिएटिव अप्रोच और टेक्निकल नॉलेज उन्हें खेल विश्लेषण से जुड़े वीडियो कंटेंट को आकर्षक और प्रभावी बनाने में मदद करता है। खेलों की दुनिया में हो रहे नए बदलावों और रोमांचक मुकाबलों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें एक बेहतरीन कंटेंट क्रिएटर और पत्रकार के रूप में स्थापित करती है।