Nawada Training: इमरजेंसी रिस्पांस और सीपीआर सत्र से सीखे जीवन बचाने के तरीके
नवादा में जिला प्रशासन और रेडक्रॉस के संयुक्त प्रयास से आयोजित सीपीआर और इमरजेंसी रिस्पांस सत्र में जीवन रक्षक तकनीकों का व्यावहारिक प्रशिक्षण। जानें प्राथमिक चिकित्सा के इन उपायों की पूरी जानकारी।
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नवादा के डीआरडीए सभागार में आज जिला प्रशासन, रेडक्रॉस और रोटरी नवादा के संयुक्त प्रयास से सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) और इमरजेंसी रिस्पांस पर एक व्यावहारिक सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र में उपस्थित अधिकारियों और कर्मियों को जीवन बचाने के महत्वपूर्ण तरीकों की जानकारी दी गई।
कार्यक्रम का उद्घाटन उप विकास आयुक्त श्रीमती प्रियंका रानी ने दीप प्रज्वलित कर किया। वहीं, मेदांता अस्पताल पटना के निदेशक डॉ. किशोर झुनझुनवाला ने सत्र का संचालन किया और सीपीआर प्रक्रिया का विस्तृत प्रशिक्षण दिया।
सीपीआर क्या है और क्यों है महत्वपूर्ण?
सीपीआर का अर्थ है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन। यह एक प्राथमिक चिकित्सा तकनीक है, जो जीवन बचाने में बेहद कारगर साबित होती है। डॉ. झुनझुनवाला ने बताया कि सीपीआर का उपयोग तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत हो या वह बेहोश हो जाए।
सीपीआर से हार्ट अटैक, डूबने, दम घुटने, या बिजली का झटका लगने जैसी स्थितियों में व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। उन्होंने यह भी बताया कि यदि सही समय पर सीपीआर दिया जाए, तो मरीज के बचने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
सीपीआर देने की प्रक्रिया
डॉ. झुनझुनवाला ने सीपीआर की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया:
- मरीज को ठोस जगह पर लिटाएं।
- घुटनों के बल बैठकर उसकी नाक और गले की जांच करें।
- यदि नाक या गले में रुकावट हो, तो उसे साफ करें।
- छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस का अनुपात 30:2 होना चाहिए।
- छाती पर दबाव डालने के लिए दोनों हाथों को सीधा रखें।
- कृत्रिम सांस देने के लिए नाक बंद कर मुंह से सांस दें।
- बच्चों के लिए सीपीआर करते समय केवल दो उंगलियों से दबाव डालें।
डॉ. झुनझुनवाला ने इस तकनीक को व्यावहारिक रूप से भी दिखाया, जिससे प्रतिभागियों को इसे बेहतर तरीके से समझने में मदद मिली।
इमरजेंसी रिस्पांस का महत्व
कार्यक्रम में इमरजेंसी रिस्पांस की भूमिका पर भी चर्चा की गई। यह बताया गया कि आपातकालीन स्थिति में त्वरित प्रतिक्रिया से कई जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। उदाहरण के तौर पर,
- बिजली का झटका: मरीज को तुरंत सीपीआर दें।
- डूबने की घटना: कृत्रिम सांस देकर फेफड़ों में ऑक्सीजन पहुंचाएं।
- दम घुटना: माउथ-टू-माउथ रेस्पिरेशन का उपयोग करें।
सत्र की विशेषताएं
इस कार्यक्रम में उपस्थित अधिकारियों ने न केवल सीपीआर सीखा, बल्कि इसे पुतलों पर प्रैक्टिकल तौर पर भी आजमाया। प्रतिभागियों ने पहली बार इस तरह की जीवन रक्षक तकनीकों का व्यावहारिक अनुभव किया।
डॉ. झुनझुनवाला ने यह भी बताया कि सीपीआर देते समय धैर्य और सटीकता बनाए रखना बेहद जरूरी है। मरीज की छाती का ऊपर-नीचे होना यह दर्शाता है कि प्रक्रिया सही ढंग से हो रही है।
इतिहास से सीख: प्राथमिक चिकित्सा का विकास
प्राथमिक चिकित्सा का इतिहास 18वीं सदी से जुड़ा है, जब पहली बार आपातकालीन चिकित्सा प्रक्रियाओं को संगठित रूप से लागू किया गया। सीपीआर जैसी तकनीक का आधिकारिक इस्तेमाल 20वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ। आज, यह दुनिया भर में जीवन बचाने की सबसे प्रभावी तकनीकों में से एक मानी जाती है।
क्या कहते हैं प्रतिभागी?
कार्यक्रम में शामिल अधिकारियों और कर्मियों ने इसे बेहद उपयोगी बताया। उन्होंने कहा,
"यह प्रशिक्षण न केवल हमारे पेशेवर जीवन में बल्कि निजी जीवन में भी मददगार साबित होगा।"
नवादा में आयोजित यह सत्र जीवन रक्षक तकनीकों की जागरूकता बढ़ाने का एक सराहनीय प्रयास है। सीपीआर और इमरजेंसी रिस्पांस जैसे उपायों से न केवल मरीज को राहत मिलती है, बल्कि कई बार उसकी जान भी बचाई जा सकती है।
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