नवादा: बिहार के नवादा जिले में एक ऐतिहासिक विरोध प्रदर्शन देखने को मिला, जहां गोविंदपुर प्रखंड के सरकंडा गांव के निवासियों ने आगामी विधानसभा चुनावों का बहिष्कार करने का ऐलान कर दिया। मकर संक्रांति के अवसर पर ग्रामीणों ने जागरूकता रैली निकालकर एकजुटता के साथ नारा दिया – "पुल नहीं तो वोट नहीं!"
70 सालों का इंतजार, फिर भी अधूरा सपना!
सरकंडा गांव के निवासियों की संकरी नदी पर पुल निर्माण की मांग पिछले 70 वर्षों से अधूरी है। ग्रामीणों का कहना है कि हर चुनाव के दौरान राजनीतिक दल पुल बनाने का वादा तो करते हैं, लेकिन जीत के बाद कोई भी नेता वादों को हकीकत में नहीं बदलता।
यह मुद्दा कोई नया नहीं है, बल्कि बिहार में बुनियादी सुविधाओं के अभाव की एक पुरानी कहानी है। स्वतंत्रता के बाद से आज तक सरकंडा गांव के लोग पुल के बिना हर साल बरसात में परेशानियों का सामना कर रहे हैं।
क्या हैं ग्रामीणों की मुख्य परेशानियां?
संकरी नदी पर पुल न होने की वजह से—
- बरसात में जलभराव: नदी लबालब भर जाती है, जिससे गांव का मुख्य मार्ग कट जाता है।
- शिक्षा प्रभावित: बच्चों का स्कूल जाना मुश्किल हो जाता है।
- स्वास्थ्य सेवाएं बाधित: गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाना चुनौतीपूर्ण बन जाता है।
- आपातकालीन स्थिति में जान का खतरा: कई मामलों में समय पर इलाज न मिलने से लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है।
मकर संक्रांति पर जोरदार प्रदर्शन!
मकर संक्रांति के मौके पर ग्रामीणों ने एक जागरूकता रैली निकाली, जिसमें बड़ी संख्या में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों ने भाग लिया। "पुल नहीं तो वोट नहीं" का नारा लगाते हुए लोगों ने संकल्प लिया कि जब तक पुल का निर्माण नहीं होगा, तब तक कोई भी राजनीतिक दल को वोट नहीं दिया जाएगा।
इतिहास में भी गूंजे हैं ऐसे विरोध!
बिहार में इस तरह के बहिष्कार पहले भी देखे गए हैं। 2015 के विधानसभा चुनावों में भी राज्य के कई इलाकों में सड़क और पुल जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में लोगों ने चुनाव बहिष्कार किया था।
प्रशासन का क्या कहना है?
गोविंदपुर पंचायत के सरपंच और स्थानीय प्रशासन ने स्थिति को गंभीरता से लेते हुए आश्वासन दिया है कि—
- जल्द ही पुल निर्माण की प्रक्रिया शुरू होगी।
- पंचायत और जिला स्तर पर मामला आगे बढ़ाया जाएगा।
- ग्रामीणों को आश्वस्त किया जा रहा है कि उनकी मांगें पूरी की जाएंगी।
क्या होगा चुनावों पर असर?
"पुल नहीं तो वोट नहीं" जैसे आंदोलन का असर विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है। अगर ग्रामीण अपनी बात पर अड़े रहे तो इस क्षेत्र के मतदाता चुनावों का बहिष्कार कर सकते हैं, जिससे राजनीतिक दलों पर दबाव बढ़ सकता है।
ग्रामीणों का कहना – अब बस बहुत हुआ!
सरकंडा के ग्रामीणों का कहना है—
"70 सालों से वादे सुनते आ रहे हैं, लेकिन अब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हुए हैं। अगर हमारी मांगें नहीं मानी गईं, तो इस बार हम चुनाव का पूरी तरह बहिष्कार करेंगे।"
कब मिलेगा इंसाफ?
सरकंडा गांव का यह आंदोलन बिहार में बुनियादी सुविधाओं की कमी को उजागर करता है। सवाल यह है कि क्या सरकार और प्रशासन इस बार ग्रामीणों की आवाज सुनेंगे या फिर यह विरोध प्रदर्शन भी चुनावी वादों के बीच दबकर रह जाएगा?