Jharkhand Politics: भाजपा छोड़ झामुमो में शामिल हुए ताला मरांडी, सियासी गलियारों में मचा हलचल
झारखंड की राजनीति में बड़ा उलटफेर, भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने पार्टी से इस्तीफा देकर झामुमो का दामन थाम लिया। जानिए उन्होंने क्यों छोड़ी बीजेपी और क्या हैं इसके पीछे के असली कारण।

झारखंड की राजनीति में एक बार फिर बड़ा भूचाल देखने को मिला है। भाजपा के कद्दावर नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने पार्टी से इस्तीफा देकर झामुमो की सदस्यता ग्रहण कर ली है। इस कदम ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है और कई नए सवालों को जन्म दे दिया है।
सियासी पटल पर अचानक आए इस बदलाव ने न केवल भाजपा के भीतर असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है, बल्कि यह भी साफ कर दिया है कि झारखंड की राजनीति में आने वाले दिनों में समीकरण तेजी से बदल सकते हैं।
भाजपा से क्यों हुए अलग?
ताला मरांडी ने नेता प्रतिपक्ष एवं प्रदेश अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी को एक औपचारिक पत्र भेजते हुए लिखा कि उन्होंने गहन विचार-विमर्श और व्यक्तिगत कारणों के चलते पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा देने का निर्णय लिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम उन्होंने बिना किसी दुर्भावना के उठाया है और वह भाजपा द्वारा दिए गए अवसरों के लिए आभार व्यक्त करते हैं।
लेकिन सूत्रों की मानें तो यह सिर्फ "व्यक्तिगत कारण" नहीं है, बल्कि लंबे समय से चल रहे वैचारिक मतभेद और पार्टी में उपेक्षा की भावना इसके पीछे प्रमुख कारण हैं।
झामुमो में क्यों शामिल हुए?
इस्तीफे के कुछ ही घंटों बाद ताला मरांडी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की सदस्यता ग्रहण कर ली। उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के भोगनाडीह कार्यक्रम में मंच साझा करते हुए झामुमो में शामिल होने की घोषणा की।
यह वही झामुमो है जिसके साथ ताला मरांडी के रिश्ते दशकों पुराने हैं। भाजपा में आने से पहले भी वे क्षेत्रीय राजनीति से जुड़े रहे हैं और आदिवासी हितों को लेकर मुखर रहे हैं। झामुमो में उनकी वापसी को "घर वापसी" भी कहा जा रहा है।
इतिहास भी गवाह है
ताला मरांडी झारखंड भाजपा का एक बड़ा चेहरा माने जाते थे। वे संथाल परगना से आते हैं, जो झारखंड की राजनीति में एक निर्णायक भूमिका निभाता है। 2014 में वे झारखंड विधानसभा के अध्यक्ष भी रहे और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद तक पहुंचे।
लेकिन समय के साथ-साथ उनका प्रभाव धीरे-धीरे घटता गया और उन्हें संगठन में हाशिए पर धकेल दिया गया। यही असंतोष अब सामने आ गया है।
राजनीतिक मायने
झारखंड में 2024 लोकसभा चुनाव और फिर 2025 विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। ऐसे में एक आदिवासी चेहरे का पार्टी छोड़कर प्रतिद्वंद्वी दल में जाना भाजपा के लिए झटका है और झामुमो के लिए एक बड़ी जीत।
यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या ताला मरांडी झामुमो में कोई अहम भूमिका निभाते हैं, और क्या वे भाजपा के अंदर और असंतुष्ट नेताओं को भी अपने साथ जोड़ते हैं।
ताला मरांडी का झामुमो में जाना सिर्फ एक व्यक्ति का राजनीतिक ट्रांसफर नहीं, बल्कि झारखंड के सत्ता समीकरणों में संभावित बदलाव की शुरुआत है। भाजपा को इस झटके से उबरने के लिए अंदरूनी समीकरणों की गंभीर समीक्षा करनी होगी, वरना यह बर्फीला तूफान और गहरा सकता है।
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